हिमालयी राज्य उत्तराखंड को एक भीषण मानसूनी दौर ने बुरी तरह प्रभावित किया है। 5 और 6 अगस्त के बीच राज्य में सामान्य से 421 प्रतिशत अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई, जो एक चौंकाने वाला आंकड़ा है। केवल 5 अगस्त को उत्तरकाशी जिले में लगभग सात घंटों में 100 मिमी से अधिक वर्षा हुई।
वहीं, आपदा स्थल धराली के आसपास के क्षेत्रों में कुछ ही घंटों में 400 मिमी से अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई। यह मात्रा लंदन हीथ्रो में पूरे साल में होने वाली कुल वर्षा के लगभग दो-तिहाई के बराबर है।
हिमालयी क्षेत्रों में भारी बारिश, अचानक बाढ़ और भूस्खलन कोई नई बात नहीं है। विशेषकर तब, जब मानसून की गतिविधि "ब्रेक मानसून" चरण में प्रवेश कर जाती है। इस चरण में मध्य भारत में मानसून कमजोर पड़ जाता है और हिमालय की ओर खिसक जाता है, जिससे अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों से भारी मात्रा में नमी इन पहले से ही संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों में जमा हो जाती है।
इन पहाड़ी इलाकों की तीव्र ढलानें और संकरी नदी घाटियां वर्षा के प्रभाव को कई गुना बढ़ा देती हैं, जिससे तेज बारिश के तुरंत बाद भीषण बाढ़ और भूस्खलन होते हैं।
उत्तरकाशी के धाराली गांव के चारों ओर की खड़ी ढलानों ने मानो एक फिसलपट्टी का काम किया, जिसने कीचड़ और मलबे को तेजी से नीचे की ओर धकेल दिया और वह एक घातक आपदा में बदल गया।
जैसे 2024 में केरल के वायनाड में मानसूनी तबाही हुई थी, वैसे ही अब हिमालय भी मानसून के दौरान तबाही का केंद्र बनते जा रहे हैं। हम इस समय एक ऐसे दौर के साक्षी हैं जहां एक अत्यधिक गर्म, नमी से भरा वातावरण नाज़ुक पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्रों से टकरा रहा है।
जलवायु परिवर्तन इन अत्यधिक घटनाओं को और भी तीव्र बना रहा है, क्योंकि अब मानसूनी तूफान गर्म वातावरण में बनते हैं, जो अधिक नमी समेट कर उसे कम समय में जमीन पर उंडेल देते हैं और इसका परिणाम होता है: फ्लैश फ्लड यानी अचानक तीव्र बाढ़ और भूस्खलन।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन पहाड़ी क्षेत्रों में रियल-टाइम मौसम निगरानी और प्रभावी चेतावनी प्रणालियों का घोर अभाव है। जब ऐसी चरम घटनाएं अब सामान्य होती जा रही हैं, तब हम मानो आंखें मूंदकर आपदा की ओर बढ़ रहे हैं। खतरा दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। इसे नजरअंदाज करना अब जानलेवा कीमत पर पड़ रहा है।