मासिक पत्रिका डाउन टू अर्थ, हिंदी मासिक पत्रिका की आवरण कथा "हर पल मुश्किल" को तीन कड़ियों को यहां प्रकाशित किया जा रहा है। पहले कड़ी में आपने पढ़ा -
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भविष्य में यदि दुनिया 2 डिग्री सेल्सियस और गर्म होती है तो 80 करोड़ लोगों के लिए भारी काम की अवधि आधी हो जाएगी। यह बात 1 मार्च, 2024 को वन अर्थ नामक जर्नल में प्रकाशित एक रिव्यू पेपर में कही गई है। शोधकर्ताओं ने गर्मी के प्रभाव को कम करने का सबसे अच्छा तरीका मानवीय गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना बताया है जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन को धीमा कर देगा। लेकिन यहां यह भी कहा गया है कि कई संस्थागत और व्यक्तिगत कोशिशें भी गर्मी के जोखिम को कम कर सकती हैं और इससे श्रमिकों पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है। यह अध्ययन ऐसे समय में आया है जब दुनिया भर के कई क्षेत्र भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में चल रही एल नीनो घटना के कारण बढ़े हुए तापमान के चलते लू से जूझ रहे हैं।
ध्यान रहे कि एल नीनो के कारण दुनिया के कई क्षेत्रों में सामान्य से अधिक तापमान और लू की संख्या बढ़ रही है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार वर्तमान एल नीनो का यदि रिकॉर्ड देखें तो यह अब तक के 5 सबसे अधिक प्रभावी एल नीनो में से एक है। हालांकि डब्ल्यूएमओ ने कहा है कि यह एल नीनो अब कमजोर हो रहा है लेकिन इसका प्रभाव फिलहाल बना रहेगा।
शोधकर्ताओं ने पाया कि पूर्व-औद्योगिक काल (1850-1900) से अब तक 1.1 डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि हो चुकी है। अध्ययन में ऊष्मा तनाव के कारण विशेष रूप से जीडीपी के संदर्भ में आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया गया है। अध्ययन में बताया गया है कि उष्णकटिबंधीय पश्चिम अफ्रीका, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में 3-5 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है।
गर्मी बढ़ाने वाले कारक
गर्म वातावरण के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। इनमें भूमि उपयोग में बदलाव और विभिन्न सिंचाई विधियां मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। हालांकि इनमें सिंचाई विधियों का प्रभाव थोड़ा अधिक जिम्मेदार है। शुष्क जलवायु वाले शहरी क्षेत्रों जैसे स्थानों में सिंचाई से ठंडक हो सकती है। ग्रामीण कृषि क्षेत्रों में यह वायुमंडलीय नमी के स्तर को बढ़ा सकती है, जिससे आर्द्र गर्मी की संभावना बढ़ जाती है।
चेन्नई स्थित अन्ना विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रमुख कोरियन जोसेफ कहते हैं, “शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि उपयोग में भिन्नता शहरी क्षेत्रों के स्थानीय मौसम में परिवर्तन ला सकती है।” तेजी से बढ़ते शहरी क्षेत्रों के लिए बढ़ती आबादी और बुनियादी ढांचे के दबाव के कारण भूमि उपयोग और भूमि आवरण में परिवर्तन, शहरी मौसम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैसे-जैसे किसी शहर का विस्तार होता है, शहर के मानवजनित स्रोतों से निकलने वाली गर्मी भी बढ़ती जाती है जो इसे अपने आसपास के ग्रामीण व कम विकसित क्षेत्रों की तुलना में काफी गर्म बनाती है। यह शहरी स्थानीय मौसम की एक ऐसी स्थिति है जिसे शहरी हीट आइलैंड प्रभाव कहा जाता है। हीट आइलैंड घटना का मुख्य कारण भूमि की सतह में परिवर्तन और मानवजनित अपशिष्ट ऊष्मा में वृद्धि है।
ध्यान रहे कि जब इमारतों और सड़कों का भूमि आवरण हरित स्थान की जगह ले लेता है तो सतह और वायुमंडल के तापीय, विकिरण, नमी और वायु गतिकीय गुण बदल जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि शहरी निर्माण सामग्री में आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अलग-अलग तापीय (ताप क्षमता और तापीय चालकता) और विकिरण (परावर्तन और उत्सर्जन) गुण होते हैं। ग्रामीण सतहों की तुलना में शहरी सतहों पर सूर्य की ऊर्जा अधिक अवशोषित और संग्रहित होती है। इसके अलावा, इमारतों की ऊंचाई और जिस तरह से उन्हें बनाया जाता है, वह दिन के दौरान निर्माण सामग्री द्वारा अवशोषित सूर्य की ऊर्जा के रात में बाहर निकलने की दर को प्रभावित करता है। इसका परिणाम यह होता है कि शहरी क्षेत्र, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बहुत धीमी गति से ठंडे होते हैं, जिससे तुलनात्मक रूप से हवा का तापमान अधिक बना रहता है। इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों में आसपास के गैर-शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक ऊर्जा की मांग होती है और यह मानवजनित ताप हीट आइलैंड प्रभाव को और बढ़ा देता है। उदाहरण के लिए गत 29 मई 2024 को दिल्ली में गर्मी के कारण राजधानी में बिजली की मांग 8,302 मेगावाट जा पहुंची। यह दिल्ली के इतिहास की अब तक की सबसे उच्चतम मांग है। पिछला रिकॉर्ड 22 जून 2022 को था, तब बिजली की मांग 7,695 मेगावाट थी। यदि राजधानी की बिजली मांग की भयावहता आंकनी है तो 10 साल पहले 2014 में बिजली की मांग से की जा सकती है, जब गर्मी में 5,925 मेगावाट की मांग हुई थी।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शहरी केंद्र, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में लू के प्रति अधिक संवेदनशील हैं? इस संबंध में अन्रा विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रमुख जोसेफ कोरियन कहते हैं, “शहरी क्षेत्रों की बनावट हीटवेव के प्रभाव को और बढ़ाती है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच मुख्य अंतर पूर्व निर्मित बुनियादी ढांचे की उपस्थिति है।” वह कहते हैं कि इनमें बंद कमरे, कम हरियाली और कम नमी वाले स्थान अधिक होते हैं। नतीजतन, सतह पर अवशोषित सूर्य की अधिक ऊर्जा वायुमंडल को गर्म करने में चली जाती है और इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में रात के दौरान शहरी क्षेत्रों में हवा का तापमान बढ़ जाता है।
इसके अलावा, निर्माण सामग्री के ऊष्मीय गुणों के कारण शहरी क्षेत्रों में गर्मी, मिट्टी के घरों या कृषि स्थलों की तुलना में अधिक होती है। यह गर्मी, जो रात के समय बढ़ती है, शहरी घरों के भीतर रुक सी जाती है, जिससे रात के समय तापमान अधिक हो जाता है। इसलिए, एक शहरी क्षेत्र में बनी रहने वाली लू, ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में अधिक प्रभावित करती है। ध्यान रहे कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पिछले 5 दशकों के लिए भूमि की सतह के तापमान के विश्लेषण से पता चला है कि जैसे-जैसे क्षेत्र में शहरी विस्तार बढ़ा और इससे भूमि का सतही तापमान ( लैंड सर्फेस टैम्परेचर/एलएसटी) बढ़ रहा है। यह वृद्धि उनके रात के समय के तापमान से अधिक है। सूर्यास्त के बाद से सूर्योदय तक के समय में एलएसटी में लगभग 4.0-5.0 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है।
शहरों में अर्बन हीट आइलैंड (यूएचआई) प्रभाव जो एक ऐसी घटना है जिसके कारण गर्मी निर्मित क्षेत्रों (बिल्ट एरिया) में रुक जाती है और इससे गर्मी बढ़ जाती है। यूएचआई का प्रभाव जंगलों में जैसे अधिक नम जलवायु में सबसे गंभीर रूप से पड़ता है, वहीं शुष्क जलवायु में कम गंभीर है और रेगिस्तानी शहरों में सबसे कम गंभीर रूप से पड़ता है। कोरियन बताते हैं कि भविष्य में एशिया और अफ्रीका के कई क्षेत्रों में जनसंख्या में वृद्धि के कारण बड़ी संख्या में श्रमिकों को आर्द्र गर्मी का सामना करना पड़ेगा। उत्तर भारत में इन दिनों हर एक की जुबां पर एक ही सवाल है कि यहां इतनी गर्मी क्यों पड़ रही है? इसका जवाब अरब सागर के गर्भ में छिपा है। अरब सागर से उत्तर-पश्चिम भारत की ओर गर्म हवाएं चल रही हैं, जो पिछले कुछ वर्षों में समुद्र द्वारा अवशोषित की गई रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी का ही परिणाम हैं।
आमतौर पर मई के महीने में भारत के उत्तर-पश्चिम और मध्य क्षेत्र लू के थपेड़ों से ग्रस्त रहते हैं। लेकिन मौजूदा लू असाधारण रूप से आमजन को “सजा” देने वाली लग रही है। गर्मी का तात्कालिक मौसम संबंधी कारण पश्चिम एशिया में अरब प्रायद्वीप से राजस्थान और उत्तर-पश्चिम भारत के बाकी हिस्सों की ओर बहने वाली गर्म हवाएं हैं।
यह पिछले कुछ दशकों में समुद्र की बढ़ती गर्मी के कारण है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे में जलवायु अध्ययन के प्रोफेसर रघु मुर्तुगुडे ने डाउन टू अर्थ को बताया, “गर्म अरब सागर और गर्म पश्चिम एशिया से हवाएं बह रही हैं। इसलिए दिल्ली पक रही है।” मार्च 2022 में अर्थ साइंस रिव्यू जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, पिछले कुछ दशकों में अरब सागर लगभग 1.2 से 1.4 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गया है। डब्ल्यूएमओ ने कहा है कि पिछले 13 महीनों से सभी वैश्विक महासागर बेसिनों में समुद्र की सतह का तापमान रिकॉर्ड तोड़ रहा है।
यूरोपीय संघ की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा ने भी बताया कि रिकॉर्ड-उच्च सी सरफेस टेम्परेचर दुनिया भर में समुद्री हीटवेव से जुड़े थे, जिसमें उत्तरी अटलांटिक महासागर का अधिकांश भाग, भूमध्य सागर के कुछ हिस्से, मैक्सिको की खाड़ी, कैरेबियन सागर, हिंद महासागर और उत्तरी प्रशांत महासागर शामिल हैं।
एल नीनो जलवायु घटना एक अन्य कारक है जिसे अक्सर भूमि और महासागरों में रिकॉर्ड तोड़ तापमान बढ़ने के रूप में हमेशा बताया जाता है। लेकिन जुलाई 2023 में शुरू होने वाली मौजूदा एल नीनो घटना अपने अंतिम चरण में है, जिसमें ला नीना घटना की अच्छी संभावना बन पड़ रही है, जो आमतौर पर वैश्विक तापमान को ठंडा करती है। यह जुलाई और सितंबर के बीच कभी भी शुरू हो सकती है। लेकिन उत्तर-पश्चिम भारत में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की यह घटना कितनी दुर्लभ है और तेजी से गर्म हो रही दुनिया में इसकी आवृत्ति क्या होगी?
इस संबंध में मुर्तुगुडे ने कहा, “क्या यह जल्दी ही फिर से होगा, यह कहना थोड़ा मुश्किल है कि 2023 की गर्मी और 2024 की लगातार गर्मी के मामले में ऐसा संयोजन जल्द ही होगा या नहीं। ज्वालामुखी, एल नीनो, स्वच्छ हवा और ग्लोबल वार्मिंग ने मिलकर उम्मीद से कहीं अधिक तापमान को बढ़ा दिया है।” उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “हम 2023 से पहले गर्मी की स्थिति में वापस आ सकते हैं, खासकर अगर एक मजबूत ला नीना शुरू होता है और कुछ सालों तक रहता है। दुर्भाग्य से, हम इनका पूर्वानुमान लगाने में अच्छे नहीं हैं। इसलिए, यह कहना थोड़ा खतरनाक है।”
हालांकि, जून के महीने में उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में गर्मी का प्रकोप मई की ही तरह जारी है। ध्यान रहे कि आईएमडी ने जून माह में भी उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक गर्मी वाले दिनों की भी घोषणा की थी। भारत के कई हिस्सों में नमी का स्तर सामान्य से बहुत ज्यादा है। ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य तो उमस भरी गर्मी का सामना भी कर रहे हैं, जिससे निवासियों के लिए रहना असहनीय हो गया है। ऐसा देश भर में कई मौसमी प्रणालियों के द्वारा आई नमी के कारण हो रहा है, जिसे वायुमंडल और महासागरों के गर्म होने से और बढ़ावा मिल रहा है।
आईएमडी के अनुसार, ओडिशा और गंगा के तटीय पश्चिम बंगाल में क्रमशः 15 अप्रैल और 17 अप्रैल से ही गर्मी का सितम शुरू हो गया था और वह स्थिति अब भी बनी हुई है। वहीं दक्षिण में आंतरिक कर्नाटक में 23 अप्रैल से, पश्चिम बंगाल के उप-हिमालयी भागों में 24 अप्रैल से और अप्रैल में आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र में गर्मी की स्थिति बनी हुई है। 26 अप्रैल को केरल और बिहार में भी आश्चर्यजनक ढंग से गर्मी की लहरें चलने लगीं थीं।
महाराष्ट्र का कोंकण क्षेत्र 27 अप्रैल से ही उमस भरी गर्मी के दौर से जूझ रहा है। आईएमडी के अनुसार जब वातावरण में नमी का स्तर अधिक होता है, तो हवा नम हो जाती है और अधिक जलवाष्प को धारण नहीं कर पाती है। इससे क्षेत्र का तापमान बढ़ जाता है और ऐसी स्थिति में मनुष्यों और जानवरों में पसीना भी कम आता है। इससे शरीर का आंतरिक तापमान बढ़ जाता है क्योंकि गर्मी के बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता और इससे परेशानी बढ़ जाती है। जब ऐसी स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है, तो यह मानव स्वास्थ्य के लिए विशेषकर हृदय और मस्तिष्क दोनों के लिए घातक भी हो सकती है।
तमाम मौसमीय विषम परिस्थितियों के बाद यहां सबसे बड़ा सवाल है कि वर्तमान में वातावरण में इतनी नमी क्यों है? जलवायु वैज्ञानिक और आईएमडी के पूर्व महानिदेशक केजे रमेश ने डाउन टू अर्थ को बताया, “अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के ऊपर इस समय दो बड़े चक्रवात हैं, जो ओडिशा, पश्चिम बंगाल तथा महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में हवाएं ला रहे हैं।” चक्रवात उच्च वायुमंडलीय दबाव वाले क्षेत्र होते हैं, जहां हवाएं नीचे की ओर बहती हैं, संकुचित होती हैं और गर्म होती हैं। वे हवाएं नीचे की दिशा में चलकर और अन्य मौसम प्रणालियों को अवरुद्ध करके लू का कारण बनती हैं।
रमेश के अनुसार, प्री-मानसून अवधि के दौरान ये पूरे भारत में आम बात है। उन्होंने कहा, “ये हवाएं समुद्र से नमी को जमीन पर ला रही हैं, जिससे आंतरिक क्षेत्रों में भी सापेक्ष आर्द्रता का स्तर बढ़ रहा है।” रमेश के अनुसार, अरब सागर के ऊपर बना चक्रवात अभी भी पश्चिम एशिया में बारिश का कारण बन रहा है। इस क्षेत्र में अप्रैल के मध्य में अभूतपूर्व बारिश और बाढ़ आई थी, जिसकी वजह से तापमान में वृद्धि हुई थी।
अरब सागर के ऊपर बने चक्रवात के साथ-साथ, लगातार पश्चिमी विक्षोभ के कारण नमी भी आ रही है। ये अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय तूफान प्रणाली भूमध्य सागर क्षेत्र से ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के माध्यम से यात्रा करते हैं और उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भारत की अधिकांश सर्दियों की वर्षा लाते हैं और वसंत और गर्मियों के मौसम में गरज के साथ तूफान का कारण बनते हैं। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग और इसके परिणाम स्वरूप जलवायु परिवर्तन इन पश्चिमी विक्षोभों के चरित्र को बदल रहे हैं, वसंत और गर्मियों की ओर उनकी आवृत्ति बढ़ा रहे हैं और उन्हें दक्षिणी अक्षांशों की ओर अधिक बढ़ने का कारण बन रहे हैं।
रमेश ने बताया, “जब पश्चिमी विक्षोभ दक्षिण की ओर अधिक होते हैं, जो कि वर्तमान में हैं तो वे एंटीसाइक्लोन के साथ पश्चिमी भारत में नमी को धकेल सकते हैं।” प्रोफेसर रघु मुर्तुगुडे ने डाउन टू अर्थ को बताया, “एंटीसाइक्लोन हैं और पश्चिमी तट को गर्म उत्तरी अरब सागर से नमी मिल रही है। आंतरिक भाग को श्रीलंका के दक्षिण और बंगाल की खाड़ी से बहुत अधिक नमी मिल रही है।” वह कहते हैं कि गर्मियों में मिट्टी की नमी और सभी जल निकाय तेजी से वाष्पित हो जाते हैं और निश्चित रूप से इससे परिसंचरण होता है जो हमारे आसपास के महासागरों से नमी लाता है। गर्मी का एक डिग्री सेल्सियस 7 प्रतिशत अधिक नमी लाता है, इसलिए यह एक घातक वृद्धि है