पर्माफ्रोस्ट एक "टिपिंग पॉइंट" पर है। यह जलवायु प्रणाली का एक ऐसा हिस्सा है जो तापमान की बहुत भारी सीमा तक पहुंचने पर दूसरी अवस्था में चला जाता है।  फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

जलवायु परिवर्तन का निर्णायक बिन्दु है पर्माफ्रोस्ट का पिघलना?

आर्कटिक के नम या सूखे होने से बादल बनने पर असर पड़ता है, जो बदले में ग्रह के ऊर्जा संतुलन को प्रभावित करता है, इसका असर पृथ्वी के अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ सकता है

Dayanidhi

आर्कटिक बाकी जगहों की तुलना में लगभग चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है। बहुत ज्यादा तापमान पहले से ही स्थायी रूप से जमी हुई जमीन, जिसे पर्माफ्रोस्ट के नाम से जाना जाता है, को पिघला रहा है। यह मिट्टी में मौजूद कार्बन को कार्बन डाइऑक्साइड या मीथेन के रूप में वायुमंडल में पहुंचा रहा है, जिससे दुनिया भर में तापमान में बढ़ोतरी हो रही है।

शोध पत्र में वैज्ञानिकों के हवाले से कहा गया है कि पर्माफ्रोस्ट एक "टिपिंग पॉइंट" पर है। यह जलवायु प्रणाली का एक ऐसा हिस्सा है जो तापमान की बहुत भारी सीमा तक पहुंचने पर दूसरी अवस्था में चला जाता है। लेकिन पर्माफ्रोस्ट को लेकर यह किस तरह का बदलाव कर सकता है?

मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर मेटेरोलॉजी (एमपीआई-एम) के शोधकर्ताओं ने आर्कटिक में होने वाली प्रक्रियाओं की जांच-पड़ताल की है। जहां आर्कटिक में ये प्रक्रियाएं एक तरफ अचानक होती हैं और दूसरी तरफ इन्हें फिर पहले जैसा नहीं किया जा सकता है, जो टिपिंग पॉइंट के लिए दो सामान्य मानदंड भी है।

शोध के निष्कर्ष में कहा गया है कि पर्माफ्रोस्ट का बड़े पैमाने पर पिघलना तापमान में वृद्धि के साथ यह धीरे-धीरे होने वाली प्रक्रिया है। शोधकर्ता ने शोध पत्र के हवाले से कहा कि हमें अपने जलवायु मॉडल में अचानक टिपिंग नहीं दिखती है।

हालांकि पर्माफ्रोस्ट से होने वाले कार्बन के नुकसान को अभी भी बदलाव नहीं जा सका है। एक बार पर्माफ्रोस्ट वाली मिट्टी पिघल जाती है तो उसमें मौजूद कार्बन का टूटना या अपघटन जारी रहता है, भले ही दुनिया भर में तापमान स्थिर ही क्यों न हो जाए, इसलिए बाद में भी टिपिंग होने की आशंका बनी रहती है।

स्थानीय स्तर पर टिपिंग

स्थानीय स्तर पर फिर न बदले जा सकने वाला बदलाव भी अचानक हो सकते हैं। शोध में थर्मोकार्स्ट परिदृश्यों का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है, जो तब बनते हैं जब पर्माफ्रोस्ट ढह जाता है और झीलें बन जाती हैं। ये झीलें थर्मल ऊर्जा को जमीन में गहराई तक पहुंचाती हैं, जो पर्माफ्रोस्ट के पिघलने और उसमें मौजूद कार्बन के अपघटन को तेज करती हैं।

कभी-कभी अचानक बदलाव चरम घटनाओं, जैसे कि लू या हीटवेव और बाढ़ से भी शुरू हो सकते हैं। यह स्थानीय या क्षेत्रीय रूप से पारिस्थितिक तंत्र को बदल सकता है। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि इसके एक चेन रिएक्शन या लगातार होने वाले बदलाव पूरे आर्कटिक पर असर डाले।

जैसा कि शोध में दिखाया गया है, इनमें से कई तरह के बदलावों का पता पृथ्वी के अवलोकन के माध्यम से लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, उपग्रह उपकरण अंतरिक्ष से अचानक होने वाले धंसाव और जल स्तर में होने वाले बदलावों को माप सकते हैं।

शोध में कहा गया है कि शोधकर्ता इस आंकड़े से संभावित शुरुआती चेतावनी के इशारों को निकालने के लिए अलग-अलग तरीकों का अनुसरण कर रहे हैं जो टिपिंग का संकेत देते हैं।

इन प्रयासों को नए उपग्रह उत्पादों द्वारा सहायता मिल सकती है, जैसे कि हाल ही में लॉन्च किए गए सेंटिनल-1सी द्वारा प्रदान किए गए उत्पाद जो यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ईएसए द्वारा संचालित की जाती है।

पूरी दुनिया पर किस तरह का होगा असर?

सर्वे इन जियोफिजिक्स नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार, दुनिया भर की जलवायु पर जल विज्ञान में बदलाव के प्रभाव को इस बात पर चर्चा में अनदेखा किया गया है कि क्या पर्माफ्रोस्ट एक टिपिंग पॉइंट है।

शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से बताया गया है कि आर्कटिक के नम या सूखे होने से बादल बनने पर असर पड़ता है, जो बदले में ग्रह के ऊर्जा संतुलन को प्रभावित करता है। ये बदलाव पृथ्वी के अन्य क्षेत्रों को प्रभावित कर सकते हैं, जिसमें अमेजन का इलाका और साहेल शामिल हैं, जिन्हें टिपिंग पॉइंट भी माना जाता है।

कुल मिलाकर इस बात का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि पर्माफ्रोस्ट एक टिपिंग पॉइंट है, लेकिन इस बात को नकारा भी नहीं जा सकता है।

किसी भी तरह से, आर्कटिक में जो वर्तमान में बदलाव देखे जा रहे हैं वे चिंताजनक हैं। शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि अगले चरण का उद्देश्य पर्माफ्रोस्ट और अन्य संभावित टिपिंग पॉइंट की भूमिका को बेहतर ढंग से समझना है।