हालांकि शोध में यह भी कहा गया है कि कुछ प्रजातियां जलवायु परिवर्तन को अपेक्षा से बेहतर तरीके से सहन कर सकती हैं फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

जलवायु संकट: अगले 20 सालों में प्रजातियों की विविधता में 39 फीसदी की कमी के आसार

वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को लेकर अपने मॉडल को दुनिया भर के लगभग 25,000 स्थलीय और समुद्री प्रजातियों पर आजमाया

Dayanidhi

शोधकर्ताओं द्वारा बनाया गया एक नया मॉडल जलवायु में बदलाव के कारण विलुप्त होने की कगार में पड़ी स्थलीय और समुद्री प्रजातियों के अनुपात का फिर से जांच पड़ताल करता है। वहीं पारंपरिक मॉडलों के पूर्वानुमान इस बात की तस्दीक करते है कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में स्थानीय प्रजातियों की विविधता 2041-2060 के बीच 54 फीसदी तक कम हो सकती है।

जबकि नया मॉडल 39 फीसदी की कमी का पूर्वानुमान लगाता है। हालांकि यह अनुपात भी चिंताजनक है, शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता पर इसके प्रभाव को कम करने के लिए तत्काल उपाय किए जाने चाहिए।

यह शोध इफ्रेमर और लॉजेन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किया गया है और नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

धरती पर तापमान जहां अंटार्कटिका में लगभग -70 डिग्री सेल्सियस से लेकर भूमध्य रेखा पर +48 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तक अलग-अलग होता है। हमारी धरती पर वर्तमान में मौजूद ये जलवायु सीमाएं हमेशा विकसित हुई हैं। उदाहरण के लिए, 1,30,000 साल पहले, अंतिम इंटर-ग्लेशियल अवधि के दौरान, जलवायु गर्म थी और सदी के अंत तक हम उम्मीद कर सकते हैं कि यह उसके समान रही होगी।

इसलिए इस अवधि के दौरान विकसित होने वाली प्रजातियां आने वाले बदलावों के लिए पहले से अनुकूलित हो सकती हैं। हालांकि, अब तक, जलवायु परिवर्तन के लिए प्रजातियों की प्रतिक्रिया की भविष्यवाणी करने वाले सांख्यिकीय मॉडल ने इस संभावित पूर्व-अनुकूलन को ध्यान में नहीं रखा, जिससे पूर्वानुमान गलत हो सकते हैं।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि उष्णकटिबंधीय समुद्री या स्थलीय प्रजातियों का उदाहरण लें तो पारंपरिक सांख्यिकीय मॉडल पूर्वानुमान लगाते हैं कि यह उन जगहों पर गायब हो जाएगी जहां तापमान 48 डिग्री सेल्सियस की वर्तमान गर्म सीमा से अधिक है।

क्या यह प्रजाति 50 डिग्री सेल्सियस के वायु तापमान के साथ रह सकती है? या गर्म या नमकीन पानी में? जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में, ऐसी परिस्थितियां फिर से सामने आ सकती हैं और कुछ प्रजातियों के जलवायु क्षेत्र के विस्तार को जन्म दे सकती हैं।

जब कोई प्रजाति जलवायु परिस्थितियों से 'चिह्नित' होती है, तो वह इन परिस्थितियों के प्रति पूर्व-अनुकूलन बनाए रखती है जो हजारों या लाखों वर्षों तक चल सकता है। यदि उसका आवास ऐसी जलवायु के अनुकूल विकसित होता है जिसका अनुभव प्रजाति पहले ही कर चुकी है, तो यह पूर्व-अनुकूलन उसे इन नई जलवायु परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता प्रदान करेगा।

फ्रेमर और लॉजेन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपने मॉडल को दुनिया भर से लगभग 25,000 स्थलीय और समुद्री प्रजातियों - जिसमें जानवर और पौधे भी शामिल हैं पर आजमाया, जिसके लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) भौगोलिक वितरण मानचित्र प्रदान करता है।

भविष्य के जलवायु परिवर्तन (आईपीसीसी व सीएमआईपी5) के परिदृश्यों के साथ अपने मॉडल में इस आंकड़े को जोड़कर, उन्होंने पाया कि इनमें से 49 फीसदी प्रजातियां वर्तमान में जलवायु स्थितियों की सीमाओं से सटे जलवायु के ऐसे स्थानों में रहती हैं और उनमें से 86 फीसदी का स्थान हो सकता है वर्तमान जलवायु सीमाओं से परे हो। समुद्री प्रजातियों के लिए यह आंकड़ा बढ़कर 92 फीसदी हो जाता है।

सबसे अनोखे परिणाम स्थलीय और समुद्री प्रजातियों के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से संबंधित है। यह स्वीकार किया जाता है कि जलवायु परिवर्तन से इन क्षेत्रों में जैव विविधता का भारी नुकसान होगा, पारंपरिक मॉडलों के अनुसार 2041-2060 तक उष्णकटिबंधीय स्थलीय प्रजातियों का 54 फीसदी तक नुकसान होगा। जबकि हमारा मॉडल प्रजातियों की विविधता में 'केवल' 39 फीसदी की कमी का पूर्वानुमान लगता है।

शोधकर्ता ने शोध में कहा, हमारे मॉडलों को लगातार अपडेट करना और कुछ प्रजातियों की संभावित प्रतिक्रिया के बारे में नई परिकल्पनाएं विकसित करना महत्वपूर्ण है। यह संभावना है कि उष्णकटिबंधीय प्रजातियां पहले की तुलना में जलवायु परिवर्तन को बेहतर तरीके से सहन कर सकती हैं, तो पुराने अनुमान ठंडे, अल्पाइन और ध्रुवीय क्षेत्रों में प्रजातियों के लिए और काफी हद तक समशीतोष्ण क्षेत्रों में प्रजातियों के लिए मान्य हैं।

इसलिए की वर्तमान में इन क्षेत्रों में जो जलवायु है वह 2041 तक मौजूद नहीं रहेगी। ये प्रजातियां पहले से ही अपने जलवायु क्षेत्र की सीमा के बाहर रह रही हैं और वे काफी गर्म तापमान को सहन नहीं कर पाएंगी।