परिवार का पेट भरने के लिए भीषण गर्मी में मशक्कत करती महिला; फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

क्या बढ़ते तापमान और भीषण गर्मी का सामना करने के लिए तैयार हैं दिल्ली, फरीदाबाद, बंगलूरू जैसे शहर?

सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव (एसएफसी) ने अपनी नई रिपोर्ट “इस इंडिया रेडी फॉर अ वार्मिंग वर्ल्ड” में पड़ताल की है

Lalit Maurya

दुनिया के दूसरे हिस्सों की तरह भारत में भी जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान का असर खुल कर सामने आने लगा है। 2025 में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला जब लू और भीषण गर्मी का कहर समय से पहले ही दस्तक देने लगा। ऐसे में बड़ा सवाल है कि किया भारतीय शहर इस बढ़ते तापमान और गर्मी का सामना करने के लिए तैयार हैं?

सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव (एसएफसी) ने अपनी नई रिपोर्ट “इस इंडिया रेडी फॉर अ वार्मिंग वर्ल्ड” में इस बात की पड़ताल की है कि भारतीय शहर भीषण गर्मी के बढ़ते दुष्प्रभावों से निपटने के लिये किस हद तक तैयार हैं। रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले कुछ वर्षों में लू का कहर कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा।

ऐसे में अगर इस मुद्दे पर गंभीरता से गौर न किया गया तो भीषण गर्मी और लू की वजह से होने वाली मौतों में भारी इजाफा हो सकता है। गौरतलब है कि आईएमडी ने पुष्टि की है कि पिछले 125 वर्षों में फरवरी में कभी इतनी गर्मी नहीं पड़ी जितनी इस साल 2025 में दर्ज की गई है।

इस रिपोर्ट में भारत के नौ प्रमुख शहरों बेंगलूरू, दिल्ली, फरीदाबाद, ग्वालियर, कोटा, लुधियाना, मेरठ, मुम्बई और सूरत को शामिल किया गया है। इन शहरों में भारत की कुल शहरी आबादी का 11 फीसदी से ज्यादा हिस्सा रहता है। रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से कुछ शहर तो ऐसे हैं जो भविष्य में बढ़ती गर्मी से बुरी तरह जूझ रहे होंगे। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह भारतीय शहरों में भीषण गर्मी से निपटने की नीतियों के क्रियान्वयन का अपनी तरह का पहला आकलन है।

रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से कुछ शहर भविष्य में भीषण गर्मी और लू के बेहद गंभीर खतरे का सामना करने को मजबूर होंगें। इसके बावजूद भारतीय शहरों में बढ़ती गर्मी से बचने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं वे बस तात्कालिक राहत देने तक ही सीमित हैं। मतलब की आने वाले वर्षों में बढ़ती गर्मी से बचाव के दीर्घकालिक समाधान या तो न के बराबर हैं और जहां हैं भी वो भी बेहद कमजोर हैं।

रिपोर्ट में इन नौ शहरों में गर्मी से बचाव के लिए निर्धारित कार्य योजना को लागू करने के लिए जिम्मेवार नगर, जिला तथा राज्य स्तर के अधिकारियों के साथ कुल 88 साक्षात्कार किए गए। चूंकि गर्मी से निपटने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के साझा सहयोग की आवश्यकता होती है। इसलिए आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य, शहरी नियोजन और श्रम विभाग के प्रतिनिधियों के साथ-साथ शहर तथा जिला प्रशासन के नुमाइंदों से भी बातचीत की गई है।

बढ़ते तापमान के साथ बढ़ रहा है गर्मी और लू का कहर

रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की गई है कि इन सभी शहरों ने लू और भीषण गर्मी के दौरान होने वाले जान-माल के नुकसान को रोकने के लिए तात्कालिक उपाय किए गए हैं।

इसका मतलब है कि पीने के पानी की उपलब्धता को बढ़ाना, पानी का छिड़काव, ओआरएस, मजदूरों के लिए छाया, काम के घंटों में बदलाव करना और अस्पतालों की तैयारियों में सुधार जैसे उपायों पर तो ध्यान दिया जा रहा है, लेकिन भविष्य में बढ़ते तापमान और गर्मी से निपटने के लिए उनके पास पर्याप्त दीर्घकालिक योजनाओं का अभाव है।

हीट एक्शन प्लान जैसी योजनाओं को भी न तो सही तरीके से लागू किया जा रहा है और न ही उन पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है।

अगर ये उपाय ठीक से काम कर रहे हैं, तो यह प्रगति दर्शाती है कि 2013 में देश के पहली हीट एक्शन प्लान के बाद से महज दस वर्षों में शहरों ने बुनियादी जीवन-रक्षक उपायों को अपना लिया है, जोकि एक सकारात्मक पहल है।

दूसरी तरफ यदि दीर्घकालिक उपायों की बात करें तो लोगों को भीषण गर्मी से बचाने के महत्वपूर्ण कदम सभी शहरों में नहीं उठाए गए हैं। इनमें सबसे ज्यादा जोखिम वाले लोगों के लिए कूलिंग की व्यवस्था, खोए हुए काम के लिए बीमा, लू के दौरान बेहतर अग्निशमन सेवाएं और भीषण गर्मी में बिजली जाने की विफलताओं को रोकने के लिए मजबूत ग्रिड जैसे उपाय करीब-करीब सभी शहरों से नदारद हैं।

वहीं आंकड़ों में सुधार के लिए मौसम केंद्रों का विस्तार, शहरों में गर्मी के हॉट स्पॉट का मानचित्रण और कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने का रिवाज महज कुछ ही शहरों में देखा गया है।

जरूरी हैं दीर्घकालिक समाधान

इसी तरह शहरों में शेड, पेड़ों के आवरण को बढ़ाना, गर्मी से राहत के लिए खुली जगह छोड़ना, कूलिंग के लिए छतों पर सौर पैनल का उपयोग जैसी अन्य कार्रवाइयां उन आबादी वाले क्षेत्रों पर पर्याप्त ध्यान दिए बगैर लागू की गई हैं, जहां सबसे ज्यादा गर्मी महसूस की जाती है।

रिपोर्ट के मुताबिक दीर्घकालिक उपाय आमतौर पर स्वास्थ्य प्रणाली पर केंद्रित होते हैं। इनमें स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए गर्मी से संबंधित प्रशिक्षण और गर्मी के कारण होने वाली मौतों की निगरानी के लिए प्रणालियां तैयार करने जैसे कदम शामिल हैं। हालांकि इसके बावजूद शहरी नियोजन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में भविष्य में गर्मी से जुड़े खतरों को ठीक से शामिल नहीं किया जाता।

स्वास्थ्य प्रणालियां गर्मी से जुड़ी बीमारियों के इलाज में तो मदद करती हैं, लेकिन भीषण गर्मी को बड़ी समस्या बनने से रोकने पर ध्यान केंद्रित नहीं करती हैं।

रिपोर्ट में यह भी चेताया गया है कि आने वाले वर्षों में लू का कहर कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा। इसका मतलब है कि भविष्य में न केवल लू की घटनाएं बढ़ जाएंगी साथ ही वो पहले से कहीं ज्यादा विनाशकारी भी होंगी। ऐसे में अगर शहरी योजना में बदलाव न किया गया तो परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं।

वहीं कमजोर और असंगत दीर्घकालिक योजनाओं का मतलब है कि भविष्य में लू और भीषण गर्मी की वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा कहीं ज्यादा बढ़ सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक तापमान में वृद्धि जारी लगातार जारी है ऐसे में अल्पकालिक उपाय और समुदायों की अनुकूलन क्षमता भविष्य में इन मौतों को टालने के लिए शायद पर्याप्त न हों।

सर्वे में शामिल दो-तिहाई से ज्यादा लोगों का कहना था गर्मी से निपटने के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध है। देखा जाए तो यह अल्पकालिक उपायों पर ध्यान दिए जाने का नतीजा है जो अपेक्षाकृत कम खर्चीले और अस्थाई होते हैं। वहीं दूसरी तरफ दीर्घकालिक संरचनात्मक बदलावों के लिए समर्पित संसाधनों की जरूरत होगी।

रिपोर्ट के मुताबिक नगर निकायों, जिला और सरकारी एजेंसियों के बीच विभागों के अंदर और स्थानीय स्तर पर तालमेल की कमी भी बड़ी समस्या है। कर्मचारियों की कमी, परस्पर गतिरोध, कमजोर तकनीकी क्षमता जैसी बाधाएं भी राह में रोड़ा डाल रही हैं। वहीं गर्मी से बचाव की जो दीर्घकालिक योजनाएं बन भी रही हैं वो सिर्फ कागजों पर हैं, उन पर ठीक से अमल नहीं हो रहा है।

इससे निपटने के लिए रिपोर्ट में कुछ अहम बातें भी सुझाई गई हैं।

  • स्थानीय निकायों में हीट एक्शन प्लान को मजबूत करने की जरूरत है। इसके तहत दीर्घावधि हीट एक्शन प्लान को अनिवार्य बनाना। साथ ही हीट आइलैंड इफ्फेक्ट से जूझते क्षेत्रों को मानचित्रण करना शामिल है। शहरों में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाएं। इस तरह के निर्माण पर जोर दिया जाए जो गर्मी को कम करने में मदद करें।

  • लू से बचाव के लिए आपदा प्रबंधन कोष का उपयोग किया जाए।

  • 'हीट ऑफिसर' की नियुक्ति की जाए, और उन्हें उचित अधिकार दिए जाएं, ताकि वो संस्थागत चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकें।

  • आपदा प्रबंधन में लगी टीमों को सशक्त करने की आवश्यकता है। इसी तरह उच्च जोखिम वाले जिलों में प्रशिक्षित आपदा प्रबंधन कर्मचारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए।

  • शहरों के लिए उचित योजनाएं बनाई जाएं, जिससे जो इलाके भीषण गर्मी को झेल रहे हैं, उनके लिए तुरंत ठोस कदम उठाए जाएं।

  • योजनाओं के निर्माण के लिए जलवायु से जुड़े आंकड़ों का उपयोग किया जाए।

  • आम लोगों को गर्मी से बचाव के लिए प्रौद्योगिकी सुलभ होनी चाहिए।

वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान और आद्रता का मेल खतरे के और बढ़ा रहा है। ऐसे में सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि अगर दीर्घकालिक उपाय न किए गए तो आने वाले वर्षों में हालात और ज्यादा खराब हो सकते हैं। इससे बचाव के लिए दीर्घकालिक कदम उठाने होंगें। यदि ऐसा न किया गया तो लोगों का जीवन और जीविका दोनों खतरे में पड़ जाएंगे।