जलवायु में आते बदलावों की वजह से तेजी से पिघलती बर्फ, फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

आर्कटिक: जनवरी 2025 में दर्ज की गई अब तक की दूसरी सबसे कम समुद्री बर्फ

1981 से 2010 के औसत की तुलना में देखें तो जनवरी 2025 में समुद्री बर्फ का विस्तार 12.9 लाख वर्ग किलोमीटर कम था

Lalit Maurya

नए अमेरिकी विश्लेषण से पता चला है कि जनवरी 2025 के दौरान आर्कटिक क्षेत्र में जमा समुद्री बर्फ अपने अब तक के दूसरे सबसे निचले स्तर तक पहुंच गई। इस दौरान ग्रीनलैंड के आसपास के क्षेत्रों में तापमान सामान्य से कहीं अधिक गर्म था।

वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव दोनों क्षेत्रों में 19वीं सदी के उत्तरार्ध से तापमान करीब तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। तापमान में हो रही यह वृद्धि वैश्विक औसत की तुलना में कहीं अधिक है।

अमेरिका के नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर (एनएसआईडीसी) के मुताबिक आर्कटिक में जमा समुद्री बर्फ दिसंबर में अपने रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई। वहीं जनवरी 2025 के दौरान भी यह रिकॉर्ड निचले स्तर के करीब ही रहा। साझा आंकड़ों से पता चला है कि जनवरी 2025 में समुद्री बर्फ का औसत विस्तार 1.313 करोड़ वर्ग किलोमीटर रिकॉर्ड किया गया।

यह दूसरा मौका है जब जनवरी में आर्कटिक में जमा समुद्री बर्फ का विस्तार इतना कम दर्ज किया गया है। इससे पहले जनवरी 2018 में समुद्री बर्फ का विस्तार इससे कम था। यह उस निचले रिकॉर्ड से 50,000 वर्ग किलोमीटर अधिक थी। हालांकि 1981 से 2010 के औसत की तुलना में देखें तो जनवरी 2025 में समुद्री बर्फ का विस्तार 12.9 लाख वर्ग किलोमीटर कम था।

एनएसआईडीसी के मुताबिक आर्कटिक में जमा बर्फ बड़ी तेजी से पिघल रही है। हालात यह है कि हर जनवरी हम करीब 41,000 वर्ग किलोमीटर बर्फ खो रहे हैं।

1981 से 2010 के औसत की तुलना में देखें तो आर्कटिक में प्रति दशक बर्फ में 2.8 फीसदी की गिरावट आ रही है। वहीं यदि 1979 से देखें तो आर्कटिक जनवरी के दौरान अब तक 18.8 लाख वर्ग किलोमीटर बर्फ खो चुका है। आकार के लिहाज से देखें यह क्षेत्र अलास्का से भी बड़ा है।

एनएसआईडीसी के मुताबिक हालांकि अमेरिका में इस दौरान मौसम ठंडा था, लेकिन जनवरी में आर्कटिक का अधिकांश हिस्सा सामान्य से कहीं अधिक गर्म रहा। रिपोर्ट से पता चला है कि उत्तरी ग्रीनलैंड और मध्य अलास्का में तापमान विशेष रूप से कहीं ज्यादा रहा, जहां जनवरी 2025 में तापमान सामान्य से आठ डिग्री सेल्सियस अधिक था।

गौरतलब है कि ग्रीनलैंड अमेरिका और यूरोप के बीच मौजूद है। समय के साथ यह और अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है क्योंकि आर्कटिक की बर्फ पिघलने से शिपिंग के नए मार्ग बन रहे हैं। बता दें कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी ग्रीनलैंड को अमेरिका का हिस्सा बनाने में अपनी रुचि जताई थी, जहां खनिज और तेल के विशाल भंडार मौजूद हैं।

2024 में दूसरी बार इतना गर्म रहा आर्कटिक

अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने पुष्टि की है कि पिछले साल आर्कटिक की सतह का तापमान अब तक का दूसरा सबसे गर्म रिकॉर्ड किया गया।

देखा जाए तो दुनिया में बढ़ते तापमान के साथ-साथ ध्रुवों पर जमा बर्फ तेजी से पिघल रही है। इसकी वजह से समुद्र कहीं ज्यादा गर्मी सोख रहे हैं। नतीजन हवा गर्म हो रही है, जो बर्फ को कहीं अधिक पिघलने में मदद कर रही है। नतीजन आर्कटिक क्षेत्र तेजी से गर्म हो रहा है।

2023 में जारी एक अध्ययन से पता चला है कि आर्कटिक में गर्मियों के दौरान जमा बर्फ की परत 2030 तक गायब हो सकती है। मतलब की यह अनुमान से एक दशक पहले ही गायब हो जाएगी। यह किसी त्रासदी से कम नहीं। वैज्ञानिकों ने अंदेशा जताया है कि उत्सर्जन में गिरावट भी इसे बदल नहीं पाएगी।

वैज्ञानिकों का दावा है कि अगले एक दशक से भी कम वक्त में आर्कटिक क्षेत्र पहली बार 'बर्फ मुक्त' हो सकता है, इसका मतलब है कि हम आर्कटिक में नई जलवायु के गवाह बनने वाले हैं। अध्ययन के मुताबिक 2050 तक आर्कटिक में दिखने वाली बर्फ, गर्मियों के मौसम में पूरी तरह गायब हो जाएगी।

इस तेजी से पिघलती बर्फ का सीधा असर आर्कटिक में रहने वाली प्रजातियों पर भी पड़ रहा है। ध्रुवीय भालु भी इन्हीं प्रजातियों में से एक हैं, जिन्हें अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए समुद्री बर्फ की आवश्यकता होती है।

अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्री बर्फ में कमी आई है। इसकी वजह से 1979 से 2021 के बीच कनाडा के हडसन खाड़ी में ध्रुवीय भालुओं की संख्या में करीब आधी गिरावट आई है।