आंकड़ों की मानें तो जनवरी से अगस्त के बीच कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा, जब बढ़ते तापमान ने नया रिकॉर्ड न बनाया हो; फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

जलवायु इतिहास का सबसे गर्म वर्ष होगा 2024, पार हो सकती है 1.5 डिग्री सेल्सियस की लक्ष्मण रेखा

इंसान द्वारा दर्ज जलवायु इतिहास में यह पहला मौका है जब कोई वर्ष बढ़ते तापमान की 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा रेखा को तोड़ देगा

Lalit Maurya

हर गुजरते दिन के साथ तापमान बढ़ने का सिलसिला जारी है। इस साल में कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा, जिसने बढ़ते तापमान का रिकॉर्ड न तोड़ा हो। दुनिया में हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि हम इंसान ही नहीं दूसरे जीव और यहां तक की पेड़ पौधे भी बढ़ते तापमान से त्रस्त हैं। फसलें बर्बाद हो रही हैं और इसका खामियाजा सारी मानव जाति को भुगतना पड़ रहा है।

इस बीच कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) से जुड़े वैज्ञानिकों ने बढ़ते तापमान को लेकर एक ओर नया खुलासा किया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु इतिहास में 2024 के अब तक के सबसे गर्म वर्ष के रूप में शुमार होना करीब-करीब तय हो गया है।

बता दें कि इससे पहले 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था, जब बढ़ता तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.48 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया था।

वहीं वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि 2024 डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर सकता है। औद्योगिक पैमाने पर जीवाश्म ईंधन का उपयोग शुरू होने के बाद यह पहला मौका है जब बढ़ता तापमान इस सीमा तक पहुंचा है।

अंदेशा जताया जा रहा है कि इस साल बढ़ता तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.59 डिग्री सेल्सियस अधिक रह सकता है।

गौरतलब है कि यह आंकड़े अगले सप्ताह अजरबैजान में जलवायु परिवर्तन पर होने वाले जलवायु शिखर सम्मेलन कॉप-19 से ठीक पहले जारी किए गए हैं। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र के “फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी)” का 29वां “कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप 29)” सम्मेलन 11 नवंबर 2024 से अजरबैजान की राजधानी बाकू में शुरू हो रहा है।

उम्मीद जताई जा रही है कि इस शिखर सम्मेलन में जलवायु वित्त पर विशेष तौर पर ध्यान दिया जाएगा। हालांकि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत ने इस वार्ता की उम्मीदों को कम कर दिया है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इस बढ़ते तापमान के लिए काफी हद तक इंसान ही जिम्मेवार हैं। हालांकि इसमें कहीं न कहीं अल नीनों जैसी प्राकृतिक घटनाओं ने भी योगदान दिया है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक इस साल के पहले दस महीनों में वैश्विक तापमान इतना अधिक रहा है कि अंतिम दो महीनों में तापमान में बहुत बड़ी गिरावट ही इस रिकॉर्ड को बनने से रोक सकेगी।

थमने का नाम ही नहीं ले रहा बढ़ता तापमान

कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने अपने आंकड़ों में आशंका जताई है कि इस साल तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.59 डिग्री सेल्सियस अधिक रह सकता है। यहां 'औद्योगिक काल से पहले' का मतलब 1850 से 1900 के बीच की अवधि है, जब हम मनुष्यों ने जीवाश्म ईंधन को बड़े पैमाने पर जलाना शुरू किया था।

इस बारे में कॉपरनिकस की उप निदेशक सामंथा बर्गेस का कहना है कि वैश्विक तापमान का यह रिकॉर्ड, एक नया मील का पत्थर है।

यह बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि 2015 में हुए पेरिस समझौते के तहत करीब 200 देशों ने तापमान में हो रही वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस में सीमित रखने का वादा किया था। इस लक्ष्य का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दुष्प्रभावों से मानव जाति को बचाना था।

बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने भी चेताया है कि अगर मौजूदा नीतियों में बदलाव न किया गया तो सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि तीन डिग्री सेल्सियस की सीमा को भी पार कर सकती है।

बता दें कि 2024 की शुरूआत में ही अल नीनों के चलते स्थिति और बदतर हो गई थी। अल नीनों की यह घटना 2023 के मध्य में बनी थी, जिसका प्रभाव अप्रैल 2024 तक दर्ज किया गया। हालांकि इसके बाद भी कई महीनों तक तापमान बेहद गर्म बना रहा। कॉपरनिकस द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले सप्ताह में, वैश्विक औसत तापमान ने हर दिन वर्ष के इस समय के लिए नए रिकॉर्ड बनाए हैं।

आंकड़ों के मुताबिक इस साल के पहले आठ महीनों में से कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा जब बढ़ते तापमान ने नया रिकॉर्ड न बनाया हो। वहीं यदि पिछले 16 महीनों में 15 बार वैश्विक तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। हालांकि इस साल अब तक का दूसरा सबसे गर्म सितम्बर दर्ज किया गया। जब बढ़ता तापमान सामान्य से 1.54 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया था।

वहीं अक्टूबर भी इतिहास का अब तक का दूसरा सबसे गर्म अक्टूबर रहा, जब तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.65 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया है। देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर बढ़ते इस तापमान के लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं, जो जलवायु परिवर्तन की कड़वी सच्चाई को जानते हुए भी बढ़ते प्रदूषण और उत्सर्जन की रोकथाम के लिए अब तक ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।