सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपने नए विश्लेषण में जानकारी दी है कि दीपावली की मध्य रात्रि को यानी 31 अक्टूबर को पीएम 2.5 का स्तर 603 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया। आंकड़ों के मुताबिक यह 2022 और 2023 में दीपावली के दिन दर्ज प्रदूषण के चरम स्तर से भी 13 फीसदी अधिक था।
बता दें कि साल 2022 में दीपावली का त्यौहार 24 अक्टूबर को जबकि 2023 में 12 नवंबर को मनाया गया था। रिपोर्ट से पता चला है कि सीजन की पहली धुंध दीपावली के दिन देखी गई, साथ ही पिछले दिनों की तुलना में वायु प्रदूषण में भारी और तीव्र वृद्धि दर्ज की गई।
गौरतलब है कि इस साल पीएम 2.5 का स्तर दीपावली के पांच दिन पहले ही धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हो गया था। इसमें 28 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2024 के बीच 46 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।
सीएसई ने अपने विश्लेषण में यह भी जानकारी दी है कि इस साल दीपावली की रात आठ से सुबह आठ बजे के बीच पीएम2.5 का स्तर 2022 में दीपावली की समान अवधि की तुलना में 34 फीसदी अधिक रहा। इस दौरान प्रदूषण के इन महीन कणों का स्तर 289 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से बढ़कर 386 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया। इतना ही नहीं इस साल दीपावली से पहले की सात रातों में दर्ज औसत प्रदूषण की तुलना में दीपावली की रात प्रदूषण दोगुने से ज्यादा था।
सीएसई विश्लेषण के मुताबिक इस साल दीपावली पर प्रदूषण का एक अनूठा पैटर्न देखने को मिला। जहां रात में पीएम2.5 का स्तर तेजी से बढ़ा, लेकिन अगले दिन तेजी से घट भी गया। 31 अक्टूबर की दोपहर को, वायु गुणवत्ता का स्तर पहले ही खराब श्रेणी में था। लेकिन आधी रात तक यह गंभीर स्तर पर पहुंच गया और सुबह तक उच्च स्तर पर बना रहा।
हालांकि पिछले वर्षों की तुलना इस बार प्रदूषण के स्तर में तेजी से गिरावट आई। पिछले वर्षों के विपरीत धुंध कई दिनों तक नहीं छाई रही। वहीं अगले दिन दोपहर तक पीएम 2.5 का स्तर और घटकर 97 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक आ गया।
अनुकूल मौसम के चलते तेजी से आई प्रदूषण में गिरावट
इसके कारणों पर नजर डालें तो रिपोर्ट के मुताबिक इस साल दिवाली के दिन प्रदूषण के देर से बढ़ने और जल्दी खत्म होने में अनुकूल वातावरण ने भी मदद की। विश्लेषण से पता चला है कि इसमें पर्याप्त हवा के साथ-साथ प्राकृतिक वेंटिलेशन और गर्म मौसम ने भी मदद की। आशंका है कि इस साल अक्टूबर का महीना अब तक के सबसे गर्म अक्टूबरों से एक हो सकता है।
दिलचस्प बात यह है कि इस साल दीपावली में दिन के समय (सुबह छह से शाम चार बजे के बीच) वायु प्रदूषण का स्तर तुलनात्मक रूप से अधिक रहा। गौरतलब है कि इस दौरान पीएम 2.5 का औसत स्तर पिछले साल दिवाली के दिन के औसत से 92 फीसदी अधिक था। पिछले साल, सर्दियों ने भी इसपर असर डाला था, जिसने प्रदूषण को जमीन के नजदीक रहने में मदद की।
प्रदूषण में यह वृद्धि स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर उच्च प्रदूषण को दर्शाती है, स्थिति खेतों में जलाई जा रही पराली से और बदतर हो गई।
सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की है कि दीपावली की रात शहर के कई इलाकों में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। इसकी वजह से शहर में लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बढ़ गया। इस साल दीपावली की रात दिल्ली में 38 वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों में से नौ पर पीएम 2.5 का स्तर 900 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के पार पहुंच गया।
इस दौरान सबसे ज्यादा स्तर नेहरू नगर में 994 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया। वहीं आनंद विहार में 992, पूसा में 985, वजीरपुर में 980 और जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में 963 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। इसी तरह ओखला, सीआरआरआइ मथुरा रोड, करणी सिंह स्टेडियम, लोदी रोड और सिरी फोर्ट में भी ऐसी ही स्थिति थी।
सीएसई रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि इस साल दीपावली की रात नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) का स्तर पिछले साल की तुलना में अधिक था। देखा जाए तो पिछले तीन वर्षों में दीवापली और उससे पहले की रातों में यह चलन जारी है। देखा जाए तो यह वृद्धि त्यौहार से ठीक पहले भारी यातायात और भीड़भाड़ का संकेत देती है। इस दौरान एनओ2 का सबसे ज्यादा स्तर आईटीओ पर दर्ज किया गया।
जहां रात के समय इसका औसत स्तर 182 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया। इसके बाद जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में 104 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर, जबकि पटपड़गंज में 101 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। वहीं लोधी रोड पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर सबसे कम महज दो माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था।
इस साल दीपावली के दौरान खेतों में आग लगने की घटनाओं में भी तेजी से वृद्धि देखी गई। नतीजन उत्तर-पश्चिम की ओर से आने वाली हवाएं कहीं ज्यादा धुंआ लाइ। इनकी वजह से दिल्ली में प्रदूषण का स्तर 27 फीसदी बढ़ गया। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 30 अक्टूबर को आग लगने की घटनाएं 60 थी, जो 31 अक्टूबर तक बढ़कर 605 पर पहुंच गई।
पराली जलाने की इन घटनाओं में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी पंजाब की 80 फीसदी की रही। इसके बाद उत्तर प्रदेश में 13 फीसदी , वहीं हरियाणा में पराली जलाने की सात फीसदी घटनाएं दर्ज की गई। 31 अक्टूबर को दिन में उत्तर-पश्चिमी हवाएं चलीं, जिससे दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर पराली जलाए जाने का असर और बढ़ गया।
इस साल अक्टूबर के गर्म मौसम और अनुकूल वातावरण ने रात के समय प्रदूषण को तेजी से खत्म करने में मदद की और लंबे समय तक रहने वाली धुंध को बनने से रोका। हालांकि रिपोर्ट में सर्दियों के साथ प्रदूषण में भी इजाफा होने की आशंका जताई गई है। सदियों में ठंडा और शांत मौसम प्रदूषण को रोके रखता है, जिससे धुंध तेजी से और घनी होती जाएगी।
यह बेहद महत्वपूर्ण है कि इस बार, दिल्ली की वायु गुणवत्ता 'खराब' से 'बहुत खराब' हो गई, जबकि प्रदूषण में पराली जलाए जाने की हिस्सेदारी एक से तीन फीसदी के बीच रही। इससे पता चलता है कि प्रदूषण के स्थानीय स्रोत भी गहरा असर डाल रहे हैं। ऐसे में इनपर जल्द से जल्द प्रभावी कार्रवाई की आवश्यकता है।