दुनिया भर में हवाओं का चलना मद्धम पड़ रहा है। यह हवा की गति के रूप में तुरंत स्पष्ट नहीं हो सकता, जो एक स्थानीय घटना है। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि हवा के वैश्विक स्तर पर शांत होने से हमारे जीवन के तकरीबन हर पहलू पर असर पड़ता है। खासतौर से अप्रत्याशित वर्षा, अत्यधिक गर्मी और तूफानों के रूप में यह दिख रहा है। हवा का ठहराव पवन ऊर्जा उत्पादन और विमानन क्षेत्र को भी प्रभावित करता है। सबूत ग्लोबल वार्मिंग और हवा के शांत होने के बीच एक स्पष्ट संबंध दिखाते हैं। क्या यह जलवायु मॉडल में एक गायब कड़ी हो सकता है? डाउन टू अर्थ, हिंदी के अक्टूबर अंक की आवरण कथा का पहले भाग में आपने पढ़ा, आवरण कथा, थमती हवाएं: जब न चली हवा तो... जबकि दूसरे भाग में आपने पढ़ा, आवरण कथा, थमती हवाएं: विनाशकारी है हवाओं का रुख बदलना, वैज्ञानिकों ने चेताया । अब पढ़ें अगला भाग
पृथ्वी की सतह के पास हवा की गति में कमी को वैज्ञानिक भाषा में ग्लोबल टेरेस्ट्रियल स्टिलिंग यानी वैश्विक स्थलीय शांति के तौर पर जाना जाता है। लेकिन इस शब्द में शांति एक धोखा है, सिर्फ कहने के लिए है। वैसे तो वैज्ञानिकों ने इस घटना की खोज हाल के वर्षों में 2000 के दशक में की है लेकिन कुछ अनुमानों के मुताबिक इसने पहले ही वैश्विक मौसम पैटर्न में स्थायी परिवर्तन ला दिया है।
यूरोप को ही ले लीजिए। इस क्षेत्र में 2017 से ही किसी न किसी जगह पर हीटवेव और सूखा पड़ रहा है। इसके एक संभावित कारण के रूप में तूफान प्रणालियों का कमजोर होना हो सकता है जो समुद्र से जमीन तक पश्चिम से पूर्व दिशा में ठंडी और नम हवा लाती हैं।
इजरायल के रेहोवोट स्थित वाइजमान इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के रेई चेम्के और नीदरलैंड्स के व्रीजे यूनिवर्सिटेट एम्स्टर्डम में क्लाइमेट एक्स्ट्रीम्स एंड सोसाइटल रिस्क के प्रोफेसर डिम कॉउमू ने जलवायु मॉडल का इस्तेमाल करके विश्लेषण किया है कि पूर्व-औद्योगिक युग से लेकर अबतक तूफानों ने कैसे व्यवहार किया है।
अप्रैल 2024 में नेचर में प्रकाशित चेम्के का विश्लेषण दिखाता है कि वार्मिंग ने उत्तरी गोलार्द्ध में 30 डिग्री और 60 डिग्री अक्षांशों के बीच गर्मियों के तूफानों को कमजोर कर दिया है।
हवाओं में परिवर्तन का एक और ऐसा प्रभाव अंटार्कटिका में 2016 से समुद्री बर्फ के रिकॉर्ड कम विस्तार हैं। 2023 में बर्फीले महाद्वीप ने 1.70 करोड़ वर्ग किलोमीटर पर अपने सबसे कम समुद्री बर्फ का विस्तार देखा, जो दीर्घकालिक औसत से 14.6 लाख वर्ग किमी कम है।
अप्रैल 2024 में ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे और नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च, इंडिया द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि हवा के पैटर्न में परिवर्तन ने सर्दियों के समय बर्फ के धीमे विस्तार में भूमिका निभाई और कुछ मामलों में बर्फ के पिघलने और सिकुड़ने का भी कारण बना।
वैज्ञानिकों ने एमंडसन सागर के निम्न दबाव क्षेत्र के पूर्व की ओर स्थानांतरण का अध्ययन किया है जिसने वेडेल सागर क्षेत्र में तेज उत्तरी हवाएं पैदा की हैं। असामान्य उत्तरी हवाओं के कारण तापमान अधिक रहा और बर्फ के किनारे को अपनी सामान्य स्थिति से दक्षिण में रहने के लिए मजबूर किया।
अंटार्कटिक के सबसे बड़े हिमचट्टान रॉस आइस शेल्फ में एक मजबूत वायुमंडलीय ब्लॉक पैटर्न ने तेज उत्तरी हवाओं, बढ़ते तापमान और बर्फ के विस्तार को प्रभावित किया। वेडेल सागर और रॉस आइस शेल्फ स्थित पश्चिम अंटार्कटिक आइस शीट एक क्लाइमेट टिपिंग पॉइंट है।
अमेरिका की नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी और ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में भविष्य के क्लाइमेट प्रोजेक्शन में हवा के महत्व पर रोशनी डाली गई है। वैज्ञानिकों ने उष्णकटिबंधीय प्रशांत में जटिल वार्मिंग पैटर्न को मॉडल करने का प्रयास किया, जिसमें पूर्वी और पश्चिमी प्रशांत जल गर्म हो रहे थे और भूमध्य रेखा के पास मध्य प्रशांत थोड़ा ठंडा प्रभाव दिखा रहा था।
इसके लिए, उन्होंने ऐतिहासिक डेटा को वर्तमान मॉडल में सेट किया लेकिन उस पैटर्न को फिर से उत्पन्न नहीं कर सके जिसका उन्होंने पर्यवेक्षण किया था। नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के न्यूज पोर्टल में समुद्री, पृथ्वी और वायुमंडलीय विज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर और अध्ययन की सह-लेखक सारा लार्सन को उद्धृत करते हुए लिखा गया है, “ये मॉडल वायुमंडल और महासागर की प्रतिक्रिया का अनुकरण करते हैं जिसे हम “एक्सटर्नल फोर्सिंग” कहते हैं, जो कि ग्रीनहाउस गैसें और वायुमंडल में एरोसोल जैसी चीजें हैं।”
शोधकर्ताओं ने फिर दो मॉडल चलाए-एक जिसमें हवाएं एक्सटर्नल फोर्सिंग की वजह से बदल गईं, और एक “डिकपल्ड” मॉडल, जिसमें हवाएं पूर्व-औद्योगिक युग की तरह रहीं और एक्सटर्नल फोर्सिंग की प्रतिक्रिया में नहीं बदलीं। जिस मॉडल में हवाएं बदल गईं, वार्मिंग रुझानों ने उन रुझानों का पालन किया जिनका अवलोकन किया गया था। लार्सन ने बताया, ‘हम जानते हैं कि हवा अति महत्वपूर्ण है, लेकिन यह खोज अधिक सटीक मॉडल बनाने के लिए भूमध्यरेखीय महासागरीय प्रक्रियाओं और थर्मल संरचनाओं का बेहतर अनुकरण करने की तत्काल जरूरत की ओर इशारा करती है।”
डाउन टू अर्थ ने जिन वैज्ञानिकों से बातचीत की, उन्होंने कहा कि सटीक क्लाइमेट प्रोजेक्शन मुश्किल है क्योंकि हवाओं के लिए केवल 40-50 वर्षों का डेटा है। अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी में जियोफीजिकल साइंसेज की प्रोफेसर टिफनी शॉ कहती हैं, “हम पूरी तरह से नहीं समझते कि भूमि की सतहों पर बहने वाली हवाओं के साथ क्या हो रहा है क्योंकि हम सबसे छोटे पैमाने पर हवाओं को सही ढंग से मॉडल करने में सक्षम नहीं हैं।”
चेम्के समझाते हैं, “यदि आप साहित्य से गुजरते हैं तो आपको मानव उत्सर्जन और वार्मिंग के प्रभावों पर अधिक अध्ययन मिलेंगे जो सामान्य रूप से भूमि के वार्मिंग या विशेष रूप से आर्कटिक के समुद्री बर्फ के नुकसान और समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसी ऊष्मागतिक प्रक्रियाओं पर हैं।” इसका कारण यह है कि इन प्रक्रियाओं के लिए वैश्विक वार्मिंग का संकेत बहुत अधिक स्पष्ट है। हवाओं और हवा प्रणालियों के लिए संकेत इतना स्पष्ट नहीं है क्योंकि यह स्वाभाविक रूप से बहुत कोलाहल वाली प्रणाली है।
अमेरिका की लीहाइ यूनिवर्सिटी में पेलियो-क्लाइमेट साइंटिस्ट जॉर्डन टी अबेल जैसे कुछ वैज्ञानिकों ने इसलिए महासागर के तल से डस्ट कोर जैसे प्रॉक्सी डेटा सेट पर भरोसा किया है। लेकिन समस्या ये है कि इन डेटा सेट की भी अपनी सीमाएं हैं। अबेल कहते हैं, “लेकिन ऐसे डेटा सेट केवल हमें अतीत के बारे में जानकारी देने और भविष्य कैसा दिख सकता है, इसके बारे में संकेत देने में ही इस्तेमाल किए जा सकते हैं। जैसे-जैसे आप समय में पीछे जाते हैं, हमारे पास ये प्रॉक्सी रिकॉर्ड्स कम होते जाते हैं।”
हवाओं के अध्ययन में काफी प्रगति की जा रही है, जिसमें ग्राफिकल प्रोसेसिंग यूनिट, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से जलवायु और मौसम मॉडल में सुधार हो रहा है, लेकिन हवा प्रणालियों को समझने की मौलिक समस्या और वे भविष्य में कैसे बदलने जा रहे हैं, लंबे समय तक और सटीक डेटासेट जरूरी हैं।
चेम्के कहते हैं,“हवाओं का अच्छा डेटा प्राप्त करना एक समस्या है, क्योंकि हमें ये स्थान और समय के हिसाब से लगातार चाहिए। हम हवा की गति को मापने के लिए एक गुब्बारा हवा में छोड़ते हैं, लेकिन ये बहुत कारगर नहीं हैं। आप वास्तव में उससे हवा के पैटर्न की गणना नहीं कर सकते।”
कुछ क्षेत्रों जैसे हिंद महासागर क्षेत्र के ऊपर हवाओं का उपग्रह माप भी खोजना मुश्किल है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी, पुणे के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल कहते हैं, “हिंद महासागर क्षेत्र में हवा या संबंधित कारकों के कई सैटेलाइट ऑब्जर्वेशन नहीं हैं। यह क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की निगरानी और ट्रैकिंग के लिए एक समस्या बन जाता है।”
उदाहरण के लिए, समूचे चक्रवात की तकरीबन रियल-टाइम तस्वीरों का मिलना अभी भी काफी मुश्किल है। कोल बताते हैं, “हम आम तौर पर चक्रवात के आधे या तीन-चौथाई हिस्से को देख और विश्लेषण कर सकते हैं। इससे चक्रवातों के तेजी से तीव्र होने और अधिकतम हवा की गति दोनों का पूर्वानुमान नहीं लगा सकते। ये दोनों पैरामीटर चक्रवात के रास्ते में लोगों को सटीक शुरुआती चेतावनी प्रदान करने के लिए जरूरी हैं।”
भारत में मानसून वर्षा का पूर्वानुमान लगाने में भी यही समस्या है। मानसून हवाओं की गति का विश्लेषण अभी भी सटीक नहीं है, जिससे वर्षा के वितरण और चरम वर्षा घटनाओं का अनुमान लगाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
कोल कहते हैं, “बेहतर भविष्यवाणी के लिए हिंद महासागर क्षेत्र को देखने के लिए कम से कम तीन उपग्रहों की जरूरत है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के उपग्रहों में से एक, स्काटसैट-1, हवा वेक्टर डेटा का अवलोकन और रिकॉर्ड करता है, लेकिन हम वर्तमान में विश्लेषण के लिए इस डेटा तक पहुंचने में सक्षम नहीं हैं। इसरो के पास हवाओं पर डेटा तक पहुंच के लिए आसानी से उपलब्ध कोई व्यवस्था नहीं है।”
उपग्रह-आधारित हवा का अवलोकन 2018 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा लॉन्च किए गए प्रयोगात्मक एओलस सैटेलाइट से शुरू हुआ। शॉ का कहना है कि उपग्रह के डेटा ने यूरोप और अमेरिका के लिए भविष्यवाणी में सुधार किया।
फिर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने चक्रवात ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (सीवाईजीएनएसएस) लॉन्च किया ताकि उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के अंदर हवाओं की निगरानी की जा सके।
शा कहते हैं,“हवाओं पर डेटा इकट्ठा करने के अन्य तरीकों का भी प्रयास किया जा रहा है, जैसे कि उपग्रहों की मदद से सतह के वायुदाब को मापना जो हवा की तीव्रता और दिशा का संकेत दे सकता है। लेकिन यह भविष्यवाणी करने में सक्षम होने के लिए कि कैसे हवाएं वार्मिंग के साथ बदलने जा रही हैं, लंबे समय की अवधि में अधिक माप की आवश्यकता है और हम अभी शुरू कर रहे हैं।”
स्पष्ट वायु उथल-पुथल मजबूत हो जाएगा क्योंकि तेज जेट स्ट्रीम हवाएं ग्लोबल वार्मिंग के कारण तेज हो जाएंगी
21 मई, 2024 को सिंगापुर एयरलाइंस की उड़ान संख्या एसक्यू321 ने लंदन से सिंगापुर के अपने मार्ग पर अचानक और गंभीर वायु उथल-पुथल का सामना किया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और 71 अन्य घायल हो गए। उड़ानों में उथल-पुथल कई कारणों से हो सकती है। सबसे आम कारण रूट के साथ तूफान प्रणाली हैं, जो पायलटों को दिखाई देते हैं। इस तरह की उथल-पुथल की आशंका को देखते हुए पायलट तूफान से दूर जा सकते हैं और यात्रियों को अपनी सीट बेल्ट बांधने के लिए सतर्क कर सकते हैं। वायु उथल-पुथल की दूसरी वजह जेट स्ट्रीम में डिस्टर्बेंस है। इसकी वजह से स्पष्ट वायु उथल-पुथल होती है। ईंधन की खपत कम करने के लिए विमान जेट स्ट्रीम का अनुसरण करते हैं। पूर्व की ओर जाने वाली उड़ानें तेज हो जाती हैं और कम ईंधन का खपत करती हैं, लेकिन पश्चिम की ओर जाने वाली फ्लाइट में इसका उल्टा होता है। जो उड़ानें पश्चिम की ओर जाती हैं उनके मार्ग में जेट स्ट्रीम बाधा का काम करती है। ऐसी स्थिति में जेट स्ट्रीम हवाएं जितनी तेज होंगी, उड़ान के लिए उतने ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होगी और इसी दौरान स्पष्ट वायु उथल-पुथल महसूस होती है। प्रोजेक्शन कहता है कि जेट स्ट्रीम हवाएं (जेट स्ट्रीक) गर्म वातावरण के कारण और तेज हो जाएंगी जिससे स्पष्ट वायु उथल-पुथल और ज्यादा शक्तिशाली और ऊर्जावान हो जाएंगी। क्षोभ मंडल की ऊपरी परतों में जहां जेट स्ट्रीम मौजूद हैं, ध्रुवों की तुलना में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वार्मिंग अधिक है। इससे दो अक्षांशों के बीच घनत्व प्रवणता बढ़ जाती है, जिससे जेट स्ट्रीक की गति बढ़ जाती है। नेचर क्लाइमेट चेंज में 2023 में प्रकाशित एक पेपर के मुताबिक, वैश्विक तापमान में प्रत्येक 1° डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लिए, सबसे तेज जेट स्ट्रीक 2 प्रतिशत तेज हो जाएगी और यह औसत जेट स्ट्रीक के त्वरण का 2.5 गुना होगा। और ज्यादा गलोबल वार्मिंग के साथ जेट स्ट्रीक तेजी से तेज हो सकती हैं, जिससे हवाई दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ सकती है।