ढाका की फिजाओं में घुला जहर; फोटो: आईस्टॉक 
वायु

बांग्लादेश में पीएम2.5 की रोकथाम से बच सकती हैं सालाना एक लाख से ज्यादा जानें

प्रदूषण के यह महीन कण एक औसत बांग्लादेशी से उसके जीवन के करीब पांच साल छीन रहे हैं

Lalit Maurya

भारत की तरह ही बांग्लादेश भी एक तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है, जो वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझ रही है। यहां बढ़ता प्रदूषण किस कदर हावी हो चुका है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2023 में बांग्लादेश को दुनिया का सबसे प्रदूषित देश घोषित किया गया था।

उस दौरान हवा में पीएम 2.5 का औसत स्तर 79.9 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया, जो बांग्लादेश द्वारा पीएम2.5 के लिए निर्धारित मानकों के दोगुने से भी अधिक था। बता दें कि बांग्लादेश ने पीएम 2.5 की सुरक्षित सीमा 35 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर निर्धारित की है। वहीं यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी मानकों के लिहाज से देखें तो बांग्लादेश में प्रदूषण का स्तर 15 गुना अधिक था।

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर ने अपनी नई रिपोर्ट में बांग्लादेश में वायु प्रदूषण की बढ़ती समस्या को उजागर किया है।   

बांग्लादेश में वायु प्रदूषण के पड़ते प्रभाव बेहद चिंताजनक हैं। यह समय से पहले होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण है। इतना ही नहीं यह एक औसत बांग्लादेशी से उसके जीवन के करीब पांच साल छीन रहा है। इस रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी अध्ययन का भी हवाला देते हुए लिखा है कि बांग्लादेश में वायु प्रदूषण दो लाख से ज्यादा मौतों से जुड़ा है।

रिपोर्ट के मुताबिक हवा में मौजूद महीन कण, जिन्हें पीएम2.5 के नाम से जाना जाता है, वो फेफड़ों और हृदय रोग सहित स्ट्रोक और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन रहे हैं। बच्चों में इसकी वजह से अस्थमा की समस्या बढ़ रही है। इतना ही नहीं इसका असर उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर भी पड़ रहा है। इसी तरह नवजात शिशुओं में, यह कम वजन और समय से पहले जन्म का कारण बन रहा है।

पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों को इससे विशेष रूप से खतरा है। आंकड़ों के मुताबिक बांग्लादेश में पीएम 2.5 के कारण होने वाले फेफड़ों के संक्रमण से हर साल 5,258 बच्चों की मृत्यु हो रही है।

स्वास्थ्य के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की भी कमर तोड़ रहा प्रदूषण

बढ़ते प्रदूषण की वजह से अस्थमा की समस्या भी पैर पसार रही है। इसकी वजह से हर साल 668,482 लोगों को आपातकालीन स्थिति में अस्पताल जाना पड़ा था। प्रदूषण की वजह से हर साल 26.3 करोड़ दिनों के बराबर काम का भी नुकसान हो रहा है।

प्रदूषण के यह महीन कण नौ लाख से ज्यादा बच्चों के समय से पहले जन्म की वजह बन रहे हैं। इतना ही नहीं जन्म के समय करीब सात लाख बच्चों के कमजोर रहने के लिए भी वायु प्रदूषण को ही जिम्मेदार ठहराया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश के शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर देखने को मिला है। प्रदूषण की वजह से बांग्लादेश में होने वाली 48 फीसदी मौतें ढाका और चटगांव में सामने आई हैं।

ग्रामीण और तटीय क्षेत्र, कम प्रदूषित हैं, इसके बावजूद वहां हवा में घुला जहर लोगों के लिए नुकसानदेह है। ऐसे में वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने से इन शहरों को भी फायदा होगा।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि प्रदूषण स्वास्थ्य के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की भी कमर तोड़ रहा है। इसकी वजह से जहां स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च बढ़ रहा है, वहीं साथ ही उत्पादकता में भी गिरावट आ रही है। आंकड़ों के मुताबिक 2019 में इसकी वजह से बांग्लादेश को 1,100 करोड़ डॉलर यानी अपनी जीडीपी के करीब पांच फीसदी हिस्से के बराबर चपत लगी थी।

रिपोर्ट में इस तथ्य को भी उजागर किया गया है कि बांग्लादेश में पीएम2.5 के स्तर को कम करने से हर साल करीब 102,456 जिंदगियां बचाई जा सकती हैं।

इसकी मदद से हृदय रोग से होने वाली 29,920, स्ट्रोक से 23,075, फेफड़ों की बीमारियों से 20,976, फेफड़ों के संक्रमण से 9,720 और फेफड़ों के कैंसर से होने वाली 3,063 मौतों को टाला जा सकता है।

रिपोर्ट में यह भी कहा है कि यदि बांग्लादेश अपने वायु गुणवत्ता मानकों (35 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) को हासिल कर लेता है, तो इससे पीएम 2.5 की वजह से होने वाली 19 फीसदी मौतों को टाला जा सकता है। मतलब की इसकी मदद से हर साल 83,236 जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। इतना ही नहीं इसकी मदद से बीमारी या समय से पहले होने वाली मृत्यु के कारण बर्बाद होने वाले वर्षों में भी 21 फीसदी की कमी आ जाएगी।  

वहीं यदि बांग्लादेश पीएम2.5 के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी दिशानिर्दशों को पूरा करने में सफल रहता है तो इसके चलते पीएम2.5 के कारण जाने वाली 79 फीसदी जिंदगियों को बचाया जा सकता है।

इससे अस्थमा की वजह से आपात स्थिति में अस्पताल जाने को मजबूर सभी मामलों को रोका जा सकता है। इतना ही नहीं प्रदूषण की वजह से हर साल खोने वाले 26.3 करोड़ दिनों को भी बचाया जा सकता है।

रिपोर्ट में वाहनों और उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता पर जोर दिया है। साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर एक निगरानी ढांचा तैयार करने की बात कही है, जो स्वास्थ्य पर मंडराते खतरे का अधिक सटीक विश्लेषण करने के लिए उपग्रह और जमीन-आधारित आंकड़ों को जोड़ता हो।

अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने की भी बात रिपोर्ट में कही गई है। इसके साथ ही कमजोर तबके पर विशेष रूप से ध्यान देने पर भी रिपोर्ट में जोर दिया गया है।

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