वायु

आवरण कथा, थमती हवाएं: जब न चली हवा तो...

दुनिया भर में हवाओं का चलना मद्धम पड़ रहा है। यह हवा की गति के रूप में तुरंत स्पष्ट नहीं हो सकता, जो एक स्थानीय घटना है। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि हवा के वैश्विक स्तर पर शांत होने से हमारे जीवन के तकरीबन हर पहलू पर असर पड़ता है। खासतौर से अप्रत्याशित वर्षा, अत्यधिक गर्मी और तूफानों के रूप में यह दिख रहा है। हवा का ठहराव पवन ऊर्जा उत्पादन और विमानन क्षेत्र को भी प्रभावित करता है। सबूत ग्लोबल वार्मिंग और हवा के शांत होने के बीच एक स्पष्ट संबंध दिखाते हैं। क्या यह जलवायु मॉडल में एक गायब कड़ी हो सकता है? डाउन टू अर्थ, हिंदी के अक्टूबर अंक की आवरण कथा का पहला भाग

Akshit Sangomla, Vivek Mishra, Anil Ashwani Sharma

पवन क्या है? यह सवाल आदम युग से पूछा और खोजा जा रहा है। अरस्तू ने 340 ईसापूर्व अपनी पुस्तक “मेट्रोलॉजिका” में पहली बार पवन के बारे में विवेचना करने की कोशिश की। इसके बाद 1622 ईसवी में फ्रांसिस बेकंस ने हिस्ट्री ऑफ द विंड्स में इसे समझाया।

अब भी आधुनिक युग के वैज्ञानिक इस अमूर्त, सर्वव्यापी और निरंतर गति में रहने वाली पवन की गहन खोजबीन में जुटे हैं। पवन का अर्थ है, चलती-फिरती वायु यानी जिसमें गति हो। या यूं कहें कि वातावरण में उच्च दाब क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की तरफ गति करने वाली वायु को पवन कहते हैं।

मुख्य रूप से हवा की गति पृथ्वी की सतह द्वारा सौर विकिरण के असमान अवशोषण के कारण होता है। मिसाल के तौर पर समुद्री हवा में गति तब होती है जब पानी की तुलना में जमीन तेजी से गर्म होती है और तेजी से ठंडी भी होती है।

दिन के समय में जब जमीन गर्म होती है, उसके ऊपर की हवा गर्म और कम घनी हो जाती है और ऊपर उठती है, जिससे नीचे की ओर कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। चूंकि समुद्र के ऊपर की हवा अभी भी ठंडी और घनी है, इसलिए यह वायुदाब और तापमान में असमानता को संतुलित करने के लिए जमीन की तरफ प्रवाहित होती है।

जैसे ही गर्म हवा उच्चतम स्तर तक पहुंचती है, वह ठंडी हो जाती है, घनी हो जाती है और जमीन की ओर नीचे उतरती है। अब हवा के इस सर्कुलेशन पैटर्न की वैश्विक स्तर पर कल्पना करें। पृथ्वी की वक्रता और झुकाव के कारण, ग्रह के विभिन्न भाग अलग-अलग गर्म होते हैं। हर जगह तापमान अलग -अलग होता है।

उदाहरण के लिए भूमध्य रेखा के आसपास के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र ध्रुवों की तुलना में सूरज की अधिक गर्मी प्राप्त करते हैं और उनके ऊपर का गर्म वायु द्रव्यमान ऊपर उठना शुरू हो जाता है और फिर ध्रुवों की ओर बढ़ने लगता है। लेकिन पृथ्वी का घूर्णन जो भूमध्य रेखा पर सबसे तेज और ध्रुवों के पास सुस्त है, वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण में जटिलता जोड़ता है।

एक सीधे पैटर्न में सर्कुलेशन के बजाय, वायु प्रवाह उत्तरी गोलार्द्ध में दायीं ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर विक्षेपित हो जाता है। इसकी वजह से वक्रीय यानी घुमावदार पथ बनते हैं। इस स्पष्ट विचलन को कोरिओलिस प्रभाव के नाम से जाना जाता है।

ग्लोब के तापमान में अंतर की वजह से प्रत्येक गोलार्द्ध में तीन अलग-अलग वायुमंडलीय परिसंचरण प्रणालियां जिम्मेदार हैं- हैडली सेल, फेरेल सेल और ध्रुवीय सेल जो निम्न ऊंचाई या निम्न क्षोभमंडल में होती हैं। निम्न क्षोभमंडल वायुमंडल की सबसे निचली परत है।

इनके अलावा जेट स्ट्रीम जो क्षोभमंडल की ऊपरी परतों से लगभग 10 किमी की दूरी पर सतह से क्षैतिज रूप से बहती हैं। साथ ही ये हवा प्रणालियां मौसम की स्थिति को नियंत्रित करती हैं और दुनिया भर में जीवन को आकार देती हैं। आखिर इस वायुमंडल का निर्माण कैसे हुआ होगा?

हवाएं कहां से और कब आई?

इस पृथ्वी को करीब 4.6 अरब वर्ष पहले ब्रह्मांडीय हवाओं, आग और गुरुत्वाकर्षण ने धूल और गैसों से बनाया है। इस क्रम में पहले वातावरण और हवाओं का निर्माण हुआ, फिर बारिश व महासागर और सबसे आखिर में जीवन बना। जिन धूल और गैसों के घने बादल से पृथ्वी बनी, उन्हें सौर निहारिका के नाम से भी जाना जाता है।

पास के सुपरनोवा विस्फोट से उत्पन्न शॉक वेव ने संभवतः सौर निहारिका के पतन की शुरुआत की। इसी दौरान गर्म शुरुआती गैसें निकली। इनमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और हाइड्राइड जैसी गैसे थीं। ये गैसें अस्थिर प्रकृति की थीं और ग्रह के निर्माण के दौरान इधर-उधर घूमती रहती रही होंगी। इस तरह पहली हवाओं के झोंके बने होंगे और वायुमंडल के शुरुआती टुकड़े बने होंगे।

ये शुरुआती हवाएं हल्की और अल्पकालिक रही होंगी, जो आज पृथ्वी के निवासियों के लिए पहचानने योग्य नहीं हैं। लाखों वर्षों में जैसे-जैसे ग्रह धीरे-धीरे ठंडा होता गया, इन चलती गैसों के मिश्रण की संरचना बदलती रही होगी और जब पर्याप्त ठंडा हो गया होगा, तो गैसें एक लगभग स्थिर वायुमंडल में बस गई होंगी, जिसमें हवा के सिस्टम कमोबेश आज मौजूद हवाओं के समान होंगे।

लेकिन तापमान और वर्षा के रूप में ग्रह के मौसम को बनाने वाली और जीवन का पोषण करने वाली स्थिर वायुमंडल की यह हवाएं अब तेजी से और अनिश्चित गति से बदल रही हैं। ज्यादातर क्षेत्रों और दिशाओं में हवाएं धीमी हो रही हैं और रुक रही हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों और दिशाओं में वे अधिक ऊर्जावान और तेज भी हो रही हैं।

ये दोनों घटनाएं दैनिक मौसम को प्रभावित कर रही हैं और ग्रह की जलवायु के कई पहलूओं में परिवर्तन ला रही हैं। लेकिन ये जीवनदायी हवाएं कैसे पैदा होती हैं और वे मौसम और जलवायु को कैसे प्रभावित करती हैं?

हमारे वायुमंडल की सभी हवाएं दो प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न होती हैं - विभिन्न भूमि और जल द्रव्यमानों की सूरज के जरिए अलग-अलग गर्मी और पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने से। इनमें व्यापारिक पवन काफी अहम है।

अलग-अलग जगहों पर सूरज की वजह से ताप में भिन्नता की वजह से भूमध्य रेखा के आसपास गर्म क्षेत्र और ध्रुवों के पास ठंडे क्षेत्र बनते हैं। भूमध्य रेखा से हवा उठती है और ध्रुवों की ओर बहती है, लेकिन उतनी दूर तक नहीं पहुंच सकती और 30 डिग्री उत्तरी/दक्षिणी अक्षांश के आसपास ठंडी हो जाती है और डूब जाती है।

ये हवा भूमध्य रेखा की ओर वापस बहती है और एक परिसंचरण बनाती है जिसे हैडली सेल या हैडली परिसंचरण के रूप में जाना जाता है। हैडली सेल की हवाओं को व्यापारिकिकिक पवनों के रूप में जाना जाता है, जो उत्तरी गोलार्द्ध में दायीं ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर विक्षेपित होती हैं। इसकी वजह कोरिओलिस फोर्स है जो पृथ्वी के घूमने से पैदा होती है। पूर्वोत्तर से दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहने वाले ये व्यापारिकिकिक पवन वायुमंडल की निचली परतों में सबसे मजबूत हवा प्रणाली हैं और उष्णकटिबंधीय मौसम के लिए जिम्मेदार हैं। उठती गर्म हवा महासागरों से वाष्पित हुई बहुत सारी नमी ले जाती है और यह नमी बादल बनाती है जिससे उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में बारिश होती है।

वहीं, ध्रुवीय क्षेत्रों में ठंडी और शुष्क हवा डूबती है और एक उच्च दबाव क्षेत्र बनाती है। इन हवाओं को ध्रुवीय पूर्वी हवाएं (पोलर ईस्टलीज) के रूप में जाना जाता है, जो पूर्वोत्तर दिशा से सतह के साथ बहती हैं क्योंकि इस हवा की घूर्णन गति पृथ्वी की घूर्णन गति से धीमी होती है। एक बार जब वे 60 उत्तरी या दक्षिणी अक्षांश तक पहुंच जाती हैं, तो वे गर्म हो जाती हैं और उठती हैं। इससे वे एक निम्न दबाव क्षेत्र बनाती हैं। उठती हवा ध्रुवों की ओर वापस बहती है और एक परिसंचरण बनाती है जिसे ध्रुवीय परिसंचरण (पोलर सर्कुलेशन) या ध्रुवीय कोशिका (पोलर सेल) के रूप में जाना जाता है। जबकि पोलर सेल और हैडली सेल के बीच 30 डिग्री उत्तरी/दक्षिणी और 60 डिग्री उत्तरी/दक्षिणी अक्षांशों के बीच फेरल सेल है। ये 60 डिग्री उत्तरी/दक्षिणी पर उठती हवा और 30 डिग्री उत्तरी/दक्षिणी पर डूबती ठंडी हवा के भागों से बनते हैं। इन सेल में हवाओं की दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर होती है और इन्हें प्रचलित पछुआ पवन (वेस्टलीज) के रूप में जाना जाता है। 30 डिग्री उत्तरी/दक्षिणी अक्षांशों के आसपास ज्यादातर हवा के डूबने के कारण, दुनिया के अधिकांश रेगिस्तान इन क्षेत्रों में होते हैं।

ये सभी हवा परिसंचरण पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे निचली परत क्षोभमंडल के निचले और ऊपरी परतों के बीच होते हैं। क्षोभमंडल की ऊपरी परतों में पश्चिम से पूर्व की ओर तेज गति से बहने वाली हवाओं के बैंड होते हैं जिन्हें जेट स्ट्रीम के रूप में जाना जाता है। ये संकीर्ण तेज हवाएं हैं जो एक घुमावदार तरीके से चलती हैं और मौसम प्रणालियों के लिए एक कन्वेयर बेल्ट का काम करती हैं। अमेरिका के राष्ट्रीय वायुमंडलीय अनुसंधान केंद्र के जलवायु वैज्ञानिक ओसामु मियावाकी बताते हैं, “जेट स्ट्रीम का अस्तित्व उष्णकटिबंधीय गर्म नम हवा और ध्रुवीय ठंडी और शुष्क हवा के बीच घनत्व प्रवणता के कारण होता है।” ग्रह को घेरने वाली चार अलग-अलग जेट स्ट्रीम हैं। इनमें से दो उत्तर (आर्कटिक) और दक्षिण (अंटार्कटिका) ध्रुवीय क्षेत्रों में हैं, जबकि अन्य दो निचले अक्षांशों में हैं और उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम के रूप में जाने जाते हैं।

अस्थायी हवा प्रणालियां जैसे मानसून, पश्चिमी विक्षोभ, तूफान और उष्णकटिबंधीय चक्रवात इन बड़े स्थायी हवा परिसंचरण के भीतर होते हैं और एक दूसरे या महासागरों के साथ अपनी अंतःक्रिया के कारण होते हैं। डाउन टू अर्थ ने वैज्ञानिकों से बात की और इन हवा प्रणालियों में हो रहे परिवर्तनों को समझने के लिए वैज्ञानिक पत्रों का विश्लेषण किया। संकेत बताते हैं कि सतह के नजदीक के सभी हवा परिसंचरण “ठहराव” के संकेत दिखा रहे हैं, जबकि जेट स्ट्रीम में कुछ तेज धारियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। और इन परिवर्तनों का प्रभाव दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है। हालांकि, हवा का ठहराव इस दुनिया को निर्जीव बना सकता है।

पवन न होती तो...

कल्पना कीजिए एक ऐसी दुनिया की जहां हवा ही नहीं है। एक ऐसी दुनिया जहां समुद्री हवा अब गालों को नहीं सहलाती। पतंगें नहीं उड़तीं। पेड़ नहीं हिलते और उनके पत्ते नहीं सरसराते। पराग और बीज दूर-दूर तक यात्रा नहीं करते। मौसम नहीं बदलता और बारिश लाने वाले बादल सूखी प्यासी भूमि पर नहीं आते। चूंकि हवा बारिश को चारों ओर ले जाती है और तापमान को फिर से वितरित करती है, ऐसे में बिना हवा का ग्रह ऐसा स्थान बन जाएगा जहां एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट ही होंगे। भूमध्य रेखा के आसपास के क्षेत्र अत्यधिक गर्म हो जाएंगे और ध्रुव जम जाएंगे। पारिस्थितिक तंत्र बदल जाएगा, कुछ तो गायब भी हो सकते हैं। जहरीली गैसों का स्थानीय संचय, जैसे कि जंगल की आग के मामले में कार्बन डाइऑक्साइड, फैलने में लंबा समय लेगा। समुद्री धाराएं पोषक तत्वों को सतह पर लाने या जहाजों को तैरने में मदद करने के लिए हलचल नहीं करेंगी।

ऐसा परिदृश्य किसी विज्ञान की काल्पनिक कहानी की तरह लग सकता है। खासकर ऐसे समय में जब तूफान, चक्रवात, गर्मी की लहर जैसी आपदाएं तेज हो रही हैं। लेकिन तथ्य यह है कि बड़े पैमाने पर हवा प्रणाली धीमी हो रही है।

हवा प्रणाली ग्रह के चारों ओर हवा की गति को सुविधाजनक बनाती हैं। हवाएं गर्मी, नमी और वायुमंडल में एरोसोल और पोषक तत्वों के फैलाव और महासागरों में महासागरीय परिसंचरण जैसे महासागरीय चक्रों के माध्यम से ग्रह के विभिन्न क्षेत्रों में ट्रांसपोर्टेशन के लिए महत्वपूर्ण हैं। साथ ही वायुमंडल और महासागरों में गर्मी का एक जगह से दूसरी जगह पर जाना विभिन्न स्थानों पर वेदर सिस्टम को बनाए रखने, तटीय क्षेत्रों में समुद्र का स्तर बढ़ने और ध्रुवीय क्षेत्रों में समुद्री बर्फ के विस्तार को प्रभावित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह ग्रह के कई जलवायु टिपिंग तत्वों जैसे अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (एमोक) के संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण है। पोषक तत्वों का परिवहन समुद्री और तटीय पारिस्थितिक तंत्रों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

हालांकि, ठहरती हवा के स्पष्ट दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। 2021 में, गर्मियों से लेकर पतझड़ तक, यूरोप के अधिकांश हिस्सों ने “हवा की सूखी अवधि” का अनुभव किया, क्योंकि हवा की गति वार्षिक औसत से 15 प्रतिशत से भी ज्यादा धीमी हो गई। एक अमेरिकी ऑनलाइन पत्रिका, येल एनवायरनमेंट 360 के अनुसार, यह पिछले 60 वर्षों में ब्रिटेन में सबसे कम हवा वाली अवधि में से एक थी। 2010 में, विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन में यह भी सामने आया कि यूरोप, मध्य एशिया, पूर्वी एशिया और उत्तरी अमेरिका के बड़े हिस्सों में वार्षिक हवा की गति 5-15 प्रतिशत तक गिर गई। सबसे स्पष्ट प्रभाव यूरेशिया भर में देखा गया। विश्लेषण से पता चला कि 1978 से शुरू होने वाले पहले तीन दशकों के दौरान हवा की औसत वैश्विक वार्षिक गति प्रति दशक 2.3 प्रतिशत की दर से काफी कम हो गई। 2019 में, नेचर क्लाइमेट चेंज में एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि 2010 के बाद स्थिति बदली और भूमि पर वैश्विक हवा की गति ठीक हो गई है। परस्पर विरोधी डेटा के बावजूद, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने आने वाले दशकों के लिए हवाओं के धीमा होने का पूर्वानुमान किया है। आईपीसीसी संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक निकाय है जो वैश्विक जलवायु पर वैज्ञानिक राय का आकलन करता है। आईपीसीसी की 2021 में जारी छठी असेसमेंट वर्किंग ग्रुप 1 रिपोर्ट कहती है कि सन 2100 तक औसत वार्षिक हवा की गति 8-10 प्रतिशत तक गिर सकती है। यह विषय हमें एक नई चिंता की तरफ ढकेल रहा है।