दिल्ली के यमुना विहार में रहने वाली हुमा अपने 12 साल के बेटे जोहान और 19 साल की बेटी तान्या को लेकर राम मनोहर लोहिया अस्पताल पहुंची हैं। तान्या पिछले कुछ दिनों से दिल्ली की आबोहवा से परेशान है। उनकी आंखों से लगातार पानी आ रही है और खांसी भी बहुत है। इसके अलावा उनके सीने में जकड़न और नाक भी बंद है। तान्या को हर साल इस मौसम में यानी वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर होने पर इस तरह की परेशानियां होने लगती हैं। हुमा के बेटे जोहान को भी तान्या जैसी ही दिक्कतें हैं। खुद हुमा भी आंखों में जलन महसूस कर रही हैं।
हुमा सुबह अस्पताल की सामान्य ओडीपी में डॉक्टर को दिखाने आई थीं, लेकिन जब उनकी और उनके बच्चों की परेशानियां को डॉक्टरों ने देखा तो उन्हें सलाह दी कि वह प्रदूषण जनित रोग निवारण केंद्र यानी वायु प्रदूषण ओडीपी में दिखाएं जहां उन्हें सभी विशेषज्ञ डॉक्टर एक ही स्थान पर मिल जाएंगे। अस्पताल में यह ओपीडी हर सोमवार को दोपहर 2 बजे से 4 बजे तक लग रही है।
दिल्ली के अलीपुर से आए 70 साल के रोशनलाल भी इस ओपीडी के बाहर बैठकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर होने पर उनकी सांस फूल रही है, साथ ही खांसी और गले से काफी बलगम भी आ रहा है। उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया कि उन्हें हल्फी फुल्की परेशानी वैसे पूरे साल रहती है, इस वक्त यह काफी बढ़ गई है। रोशनलाल बताते हैं कि वह दमा के मरीज हैं। बदतर हवा ने उनकी हालात और खराब कर दी है। ओडीपी में दिल्ली के अलग-अलग स्थानों से आए लोग आंखों में जलन, सांस लेने में कठिनाई, खांसी, नाक, गला बंद जैसी वायु प्रदूषण जनित समस्याएं लेकर पहुंचे थे।
राम मनोहर लोहिया अस्पताल में वायु प्रदूषण ओपीडी भारत की पहली ऐसी ओपीडी है जिसकी शुरुआत पिछले साल नवंबर में दिवाली के आसपास वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए हुई थी। इस साल 21 अक्टूबर से फिर से यह ओपीडी शुरू हुई है।
अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक अजय शुक्ला ने बताया कि ओपीडी का उद्देश्य आम लोगों में वायु प्रदूषण के प्रति जागरुकता पैदा करना है। वह बताते हैं कि वायु प्रदूषण अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग तरह से असर डालता है। कुछ लोगों पर इसका असर तत्काल दिखने लगता है, जबकि कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन पर असर तभी होता है जब स्थिति गंभीर होती है। उन्होंने आगे बताया कि कुछ लोगों पर इसका प्रभाव दिखाई नहीं देता। ऐसे लोगों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव कई वर्षों बाद दिखाई देते हैं।
अजय शुक्ला ने बताया कि पिछले साल ज्यादा लोग ओपीडी में नहीं आए थे क्योंकि तब शुरुआत हुई थी और लोगों को इसके बारे में पता भी नहीं था। पिछले साल दिसंबर-जनवरी में ओपीडी बंद कर कर दी गई थी। पिछले साल औसतन 4-7 मरीज ही ओपीडी में आते थे। लेकिन इस साल मरीजों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है।
अजय शुक्ला ने बताया कि ओपीडी में अधिक मरीजों के आने पर इसे प्रतिदिन किया जा सकता है और डॉक्टरों की संख्या भी बढ़ाई जा सकती है। उनकी सलाह है कि इस आपातकालीन स्थिति में बच्चों को और बुजुर्गों को घर से बाहर निकलने से बचना चाहिए। साथ ही युवाओं को भी सावधान रहने की जरूरत है।
अजय शुक्ल कहना है कि हवा की गुणवत्ता जब तक ठीक न हो तब तक व्यायाम से बचें क्योंकि व्यायाम से दौरान सांसें तेज हो जाती हैं और ज्यादा हवा फेफड़ों तक पहुंचती है। फेफड़ों में ज्यादा हवा पहुंचने का अर्थ है जहरीली हवा का अंदर जाना। उनका कहना कि वायु प्रदूषण मानसिक समस्याओं जैसे अवसाद को भी बढ़ा सकता है, इसलिए इससे बचने के लिए अपनी गतिविधियों को सीमित रखना ही बेहतर है।
राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मेडिसिन के प्रोफेसर डॉक्टर पुलिन गुप्ता का कहना है कि पिछले साल ओपीडी का ट्रायल था लेकिन इस साल पूरी क्षमता के साथ इसे शुरू किया गया है। वहीं ओपीडी के इंचार्ज एवं श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अमित सूरी कहते हैं कि अब यह ओपीडी बंद नहीं होगी। इसे नियमित रूप से पूरे साल चलाया जाएगा क्योंकि वायु प्रदूषण की समस्या पूरे साल रहती है।
अमित सूरी आगे बताते हैं कि ओपीडी में ईएनटी, श्वसन रोग विशेषज्ञ, त्वचा रोग विशेषज्ञ और मनोचिकित्सक एक साथ बैठते हैं और क्योंकि वायु प्रदूषण से संबंधित अधिकांश समस्याएं इन्हीं से संबंधित रहती हैं। इस वक्त सांसों की समस्या लेकर ज्यादातर मरीज पहुंच रहे हैं। वह बताते हैं कि वायु प्रदूषण की सबसे गंभीर स्थिति सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद होती है, इसलिए इस दौरान बाहर न निकलने में भी भलाई है।