दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में से किसी ने भी मजदूरों को गुजारा भत्ता देने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने की सूचना नहीं दी है। यह वो मजदूर है, जिनकी जीविका बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते निर्माण कार्यों के बंद होने से प्रभावित हुई है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है, "एनसीआर के किसी भी राज्य ने यह नहीं बताया है कि क्या अब तक एक पैसे का भी भुगतान किया गया है।"
दो दिसंबर 2024 को दिए अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने इन राज्यों के मुख्य सचिवों से पांच दिसंबर 2024 को वीडियो कॉन्फ्रेंस में शामिल होने का निर्देश दिया है। इस दौरान यह राज्य निर्देशों का पालन करने के सम्बन्ध में अपना हलफनामा दाखिल कर सकते हैं। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगर मजदूरों को भुगतान करने में कोई खास प्रगति नहीं होती तो दोषी अधिकारियों के खिलाफ न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत कार्रवाई शुरू करने पर विचार करना होगा।
गौरतलब है कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी द्वारा दो दिसंबर, 2024 को अनुपालन रिपोर्ट अदालत के समक्ष प्रस्तुत की गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आयोग ने उन शमन उपायों की रूपरेखा तैयार की है जिन्हें वह लागू करने की योजना बना रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि वह सभी संबंधित अधिकारियों को इन उपायों के बारे में सूचित करे। साथ ही यह सुनिश्चित करने का प्रयास करे कि इन शमन उपायों को वास्तव में लागू किया जाए।
वायु प्रदूषण से जुड़ा है मामला
अदालत पांच दिसंबर को ग्रैप-IV नियमों को लागू करने के सुझाव से जुड़े पहलुओं पर पक्षों की सुनवाई करेगी। उस दिन, एक्यूआई के स्तरों की भी समीक्षा की जाएगी ताकि यह पता लगाया जा सके कि उसमें कोई सुधार हुआ है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय आयुक्तों द्वारा दायर की गई पांच रिपोर्टों पर भी हैरानी जताई है।
अदालत का कहना है कि जब कभी ग्रैप को लागू करने की बात आती है तो दिल्ली नगर निगम, दिल्ली सरकार, पुलिस और प्रदूषण नियंत्रण समिति आदि के बीच तालमेल की कमी साफ तौर पर दिखती है। न्यायालय ने कहा कि आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये समूह ग्रैप उपायों को लागू करने के लिए मिलकर काम करें।
सुप्रीम कोर्ट ने हर साल अक्टूबर से जनवरी तक होने वाले प्रदूषण के मुद्दों पर पिछले आदेशों की भी समीक्षा की है। अदालत ने प्रदूषण से जुड़े सभी पहलुओं पर विचार करने और उसका स्थाई समाधान खोजने का प्रस्ताव रखा है। कोर्ट के मुताबिक पराली जलाने सहित प्रदूषण के सभी कारणों पर गौर करने के साथ-साथ स्थाई समाधान खोजने की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता और एमिकस क्यूरी अपराजिता सिंह से दो सप्ताह के भीतर इन मुद्दों पर एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा है ताकि इस मामले में सुनवाई की तारीखें तय की जा सकें।
दिल्ली नगर निगम से उन वाहनों के लिए जारी गोल्डन पास को भी निलंबित करने पर विचार करने के लिए कहा गया है, जिनका प्रवेश ग्रैप-IV के तहत प्रतिबंधित है।
अदालत ने दिल्ली सरकार को सीवेज और केवल उन सड़कों की मरम्मत करने की अनुमति दी है, जिनकी हालत खराब है। हालांकि साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इन उद्देश्यों के लिए ऐसे किसी एक भी वाहन का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए, जो कानूनी तौर पर स्वीकार्य नहीं है।
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