सोरगम, बाजरा, ज्वार, रागी, फोनियो, कोदो, कुटकी जैसे मोटे अनाज जिन्हें 'कदन्न' भी कहते हैं, अपने अनेकों गुणों के बावजूद वर्षों से उपेक्षित रहे हैं; फोटो: आईस्टॉक  
कृषि

पॉलिश से घट जाती है कंगनी, कोदो, सांवा, कुटकी जैसे मोटे अनाजों की पौष्टिकता, वैज्ञानिकों का खुलासा

रिसर्च से पता चला है कि चमकाने यानी पॉलिशिंग से इन अनाजों में से फाइबर, वसा, खनिज और फाइटेट्स निकल जाते हैं, जबकि कार्बोहाइड्रेट और स्टार्च बढ़ जाता है

Lalit Maurya

भारतीय वैज्ञानिकों ने अपने नए अध्ययन में खुलासा किया है कि बाहरी परत हटाने और पॉलिश करने से मिलेट (मोटे अनाज) की पौष्टिकता घट जाती है।

यह सही है कि बाहरी परत हटाने से मिलेट के दाने जल्दी पक जाते हैं और लंबे समय तक ताजा बने रहते हैं, लेकिन इसके साथ ही पॉलिश किए मिलेट के यह दाने अपना पोषण भी खो देते हैं।

रिसर्च से पता चला है कि पॉलिश किए मिलेट में भूसी युक्त दानों की तुलना में पोषक तत्व और फाइबर कम होते हैं, जबकि दूसरी तरफ इनमें स्टार्च अधिक होता है। इसकी वजह से भारतीय आहार में शर्करा का स्तर (ग्लाइसेमिक लोड) बढ़ सकता है।

बता दें कि अनाज के इन दानों पर एक कठोर बाहरी परत होती है, जिसे दानों को साफ करते समय निकाल दिया जाता है। इसके बाद उसमें से चोकर को अलग कर पॉलिश कर दिया जाता है, जिससे अनाज चमकदार और सुन्दर दिखने लगता है।

यह जानकारी चेन्नई स्थित मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन और हैदराबाद स्थित आईसीएआर-भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक नए अध्ययन में सामने आई है। अध्ययन के नतीजे स्प्रिंगर लिंक जर्नल डिस्कवर फूड में प्रकाशित हुए हैं।

मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, हालांकि इसके बावजूद इनका गेहूं, चावल जैसे दूसरे अनाजों की तुलना में कम ही उपयोग किया जाता है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जिन पांच छोटे बीजों वाले भारतीय मिलेट का अध्ययन किया है उनमें कंगनी (फॉक्सटेल मिलेट), सावा या कुटकी (लिटिल मिलेट), कोदो, सांवा (बार्नयार्ड मिलेट) और चेना या पुनर्वा (प्रोसो मिलेट) शामिल हैं।

इस अध्ययन का उद्देश्य यह जांचना था कि बाहरी परतों को हटाने से अनाज के पोषण, पकाने और उसके सूक्ष्म संरचनात्मक गुणों पर क्या प्रभाव पड़ता है।

गौरलतब है कि सोरगम, बाजरा, ज्वार, रागी, फोनियो, कोदो, कुटकी जैसे मोटे अनाज जिन्हें 'कदन्न' भी कहते हैं, अपने अनेकों गुणों के बावजूद वर्षों से उपेक्षित रहे हैं। इनमें मौजूद पोषक तत्वों की भरमार के चलते इन्हें 'पोषक-अनाज' भी कहा जाता है।

अपने शोध में मिलेट का अध्ययन करने के लिए शोधकर्ताओं ने फूरियर ट्रांसफॉर्म इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रा, एक्स-रे डिफ्रेक्शन और स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे विशेष तकनीकों की मदद ली है।

भूसी युक्त अनाज में बरकरार रहते हैं पोषक तत्व

इन्हें चमकाने यानी पॉलिशिंग से इसमें से फाइबर, वसा, खनिज और फाइटेट्स निकल जाते हैं, जबकि कार्बोहाइड्रेट और स्टार्च बढ़ जाता है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इसकी वजह से सांवा और कुटकी को छोड़कर अन्य सभी तरह के मिलेट्स में प्रोटीन का स्तर भी घट गया।

हालांकि अनाज की बाहरी सख्त परत, जिसे भूसी कहा जाता है उसे हटा देने से अनाज को पकाना और खाना आसान हो जाता है, लेकिन इसकी वजह से इसमें पोषक तत्व और फाइबर कम हो जाता है। वहीं दूसरी तरफ भूसी युक्त अनाज को पकाने में तो अधिक समय लगा, लेकिन उनके पोषक तत्व बरकरार रहे।

इसी तरह पॉलिश यानी बिना चोकर वाले मिलेट ने खाना पकाने के दौरान अधिक ठोस पदार्थ खो दिए। साथ ही इन्होने अधिक पानी भी सोख लिया, क्योंकि बीज का बाहरी आवरण हटाने से वो संरचनात्मक रूप से कमजोर हो गए थे।

इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी से पता चला है कि पॉलिशिंग (डीब्रानिंग) से बीज का आवरण और अनाज की बाहरी परतें हट गई। इसके साथ ही आंतरिक कोशिका परत भी आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गई।

फूरियर ट्रांसफॉर्म इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रा और एक्स-रे डिफ्रेक्शन परीक्षणों से पता चला है कि इसकी वजह से अनाज की रासायनिक संरचना में बदलाव आ गया और उनकी कठोरता में कमी आ गई।

शोधकर्ताओं के मुताबिक पॉलिश मिलेट में फाइबर और पोषक तत्व कम होते हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें महंगा बेचा जाता है। इसकी वजह से उपभोक्ता भ्रमित होकर ऐसे अनाज के लिए अधिक भुगतान करने के लिए तैयार हो जाते हैं जो पोषण में सफेद चावल के समान हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि मिलेट को उसके प्राकृतिक या बेहद कम प्रोसेस करके ही खाना सबसे अच्छा होता है।