गुलाबी सुंडी द्वारा खाए कपास के फल को दिखाता एक किसान; फोटो: विकास चौधरी/सीएसई 
कृषि

कपास पर संकट: कीटों के हमलों से परेशान किसान, 10 लाख हेक्टेयर घटा कपास का रकबा

तीन साल से लगातार नुकसान झेल रहे कपास किसानों ने चालू सीजन में दूसरी फसलों की बुआई की है

Shagun

चालू खरीफ सीजन में भारत के कपास उत्पादन की संभावनाओं को झटका लगा है, क्योंकि 2023 की इसी अवधि की तुलना में कपास के बुआई क्षेत्र में लगभग दस लाख हेक्टेयर की गिरावट आई है।

पिछले तीन वर्षों में बीटी कपास की फसल पर लगातार कीटों के हमलों से हुए विनाशकारी नुकसान से अभी भी जूझ रहे किसानों ने अब या तो बुआई का रकबा काफी कम कर दिया है या इसे पूरी तरह से खत्म कर दिया है, और दालों, बाजरा और तिलहन जैसी अन्य फसलों की ओर रुख कर लिया है।

देश में 9 अगस्त 2024 तक कपास की बुआई  का क्षेत्र 1.10 करोड़ हेक्टेयर था, जो 2023 से नौ प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है। 2023 में इस समय तक 1.21 करोड़  हेक्टेयर बुआई की गई थी। इस वर्ष का लक्ष्य 1.29 करोड़ हेक्टेयर था। जबकि बोया गया क्षेत्र इसी अवधि में सामान्य क्षेत्र (2018-19 - 2022-23 का औसत) 1.20 करोड़  हेक्टेयर से भी कम है।

यह देखते हुए कि खरीफ की अधिकांश बुआई अब तक पूरी हो चुकी होगी, मौजूदा क्षेत्र भी खरीफ सीजन के सामान्य (1.29 करोड़ हेक्टेयर) की तुलना में 10 लाख हेक्टेयर पीछे है।

पंजाब, राजस्थान और हरियाणा सहित उत्तरी कपास बेल्ट में कपास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई, तीन राज्य जिन्हें गुलाबी बॉलवर्म कीट के बार-बार प्रकोप का सामना करना पड़ा है में कई किसान एक भी किसान कपास की एक भी फसल नहीं ले पाए। 

गुलाबी बॉलवर्म एक कीड़ा है जो विकसित हो रहे कपास के कुछ हिस्सों जैसे चौकोर (फूल की कली) और बोल (कपास के रेशों के साथ बीज की गोल थैली) को नुकसान पहुंचाता है। इससे पहले 2022 में फसल में सफेद मक्खी का भयंकर प्रकोप था।

पंजाब में, 2 अगस्त तक केवल 100,000 हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई थी, जबकि इसी अवधि के लिए सामान्य  263,000 हेक्टेयर था। पिछले साल, 214,000 हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई थी।

इसी तरह, राजस्थान में, 671,000 हेक्टेयर के सामान्य क्षेत्र के मुकाबले 2024-25 में 511,800 हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई है। 

कीटों के हमलों ने फसल विविधीकरण प्रयासों को भी प्रभावित किया है। कपास उन कई फसलों में से एक है, जिन्हें पंजाब और हरियाणा में राज्य सरकारें किसानों को पानी की अधिक खपत करने वाली धान की फसल से विविधता लाने में मदद करने के लिए बढ़ावा दे रही हैं।

पंजाब के फरीदकोट जिले के किसान मनप्रीत सिंह ने कहा, "इसकी शुरुआत कई साल पहले कपास पर मीली बग के हमले से हुई थी और तब से अलग-अलग कीटों के हमले हुए हैं। इस बार मैं कोई जोखिम नहीं लेना चाहता था। मैंने इस बार अपनी पूरी चार हेक्टेयर जमीन पर धान की फसल बोई है।"

यह बुआई के आंकड़ों में भी देखा जा सकता है। पंजाब में धान का रकबा 32.2 लाख हेक्टेयर था, जो राज्य कृषि विभाग के 31.9 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य से अधिक है। 

यहां तक ​​कि राजस्थान में भी जो आमतौर पर धान उगाने वाला राज्य नहीं है, धान की बुआई 277,400 हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि इसी सप्ताह तक राज्य में धान की बुआई का सामान्य क्षेत्र 198,500 हेक्टेयर होता है।

भारत में बीटी कॉटन को अमेरिकी बॉलवर्म (हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा) से कपास की रक्षा के लिए 2002 में पेश किया गया था। लेकिन कुछ वर्षों के बाद, यह पिंक बॉलवर्म का शिकार होने लगा। तापमान और वर्षा दोनों में परिवर्तन के साथ जलवायु में गर्माहट ने कई कीटों की आबादी में वृद्धि की है, जिससे कीटों के हमलों की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।

हालांकि, इस वर्ष भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान द्वारा पंजाब के तीन जिलों - मुक्तसर, भटिंडा और मानसा में 18 किसानों को शामिल करते हुए एक पायलट परियोजना ने कुछ उम्मीद जगाई है।

इस परियोजना में कीटों की रियल टाइम निगरानी के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग किया जा रहा है। एआई-संचालित फेरोमोन ट्रैप को तैनात करके सीआईसीआर  का लक्ष्य किसानों को समय पर कीट प्रबंधन निर्णय लेने के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करना है।

इस बीच, 9 अगस्त 2024 तक 9.798 करोड़ हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बुआई की जा चुकी है, जिसमें धान, दलहन, तिलहन, मोटे अनाज, गन्ना, कपास और जूट शामिल हैं। इसी अवधि के दौरान कुल क्षेत्रफल पिछले साल के क्षेत्रफल से ज़्यादा रहा, जिसमें ज़्यादातर धान, दलहन, बाजरा और तिलहन की बुआई शामिल है।

2023 की तुलना में चालू वर्ष में धान के क्षेत्रफल में 13.6 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है, जबकि दलहन में 735,000 हेक्टेयर, बाजरा और मोटे अनाज में 177,000 हेक्टेयर और तिलहन में 152,000 हेक्टेयर की वृद्धि हुई है।