भूमि, जीवन का आधार है, यह न केवल करोड़ों लोगों के लिए अन्न पैदा करती है साथ ही एक मां की तरह उनकी जरूरतों का ध्यान भी रखती है। लेकिन इस जमीन का एक बड़ा हिस्सा गुणवत्ता में गिरावट, सूखा, बंजरपन और मरुस्थलीकरण जैसी समस्याओं से जूझ रहा है।
बहुत से लोगों के लिए पानी की कमी से शुष्क, सूखी पड़ी भूमि जमीन का बेकार टुकड़ा हो, लेकिन जमीन का यह हिस्सा दुनिया में 270 करोड़ लोगों के जीवन का आधार है। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह क्षेत्र दुनिया की 44 फीसदी फसलों और करीब आधे पशुधन का पोषण करते हैं।
धरती के इस अहम हिस्से को बचाने और शुष्क क्षेत्रों में कृषि में सुधार लाने के लिए रियाद में चल रहे कॉप16 सम्मेलन के दौरान वैश्विक रणनीति पेश की गई है।
शुष्क भूमि, जिसे पारंपरिक रूप से नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र माना जाता है, क्लाइमेट-स्मार्ट कृषि मॉडल विकसित करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जिसे दुनिया भर में लागू किया जा सकता है।
गौरतलब है कि मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के संगठन (यूएनसीसीडी) की अगुवाई में दुनिया भर के नेता चर्चा के लिए सऊदी अरब के रियाद शहर में एकजुट हो चुके हैं। कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज के इस 16वें सत्र (कॉप-16) में भूमि की गुणवत्ता में आती गिरावट, क्षरण और मरुस्थलीकरण जैसे विषयों पर चर्चा की जाएगी। यह सत्र सोमवार दो दिसम्बर को शुरू हो कर, 13 दिसम्बर तक चलेगा।
सीजीआईएआर द्वारा जारी इस योजना का उद्देश्य दुनिया के सबसे शुष्क क्षेत्रों में कृषि को बेहतर बनाना और भविष्य के लिए बेहतर सतत खाद्य प्रणालियां तैयार करना है, जो आने वाली नस्लों की भी जरूरतों को पूरा कर सकें। बता दें कि सीजीआईएआर कृषि अनुसंधान में काम करने वाला एक अग्रणी संगठन है।
यह योजना शुष्क भूमि पर किए पांच दशकों के अनुसंधान पर आधारित है। इसमें सीजीआईएआर के 15 अनुसंधान केंद्रों और भागीदारों के नवाचारों का उपयोग किया गया है। यह खाद्य सुरक्षा में सुधार और जैव विविधता की सुरक्षा के साथ-साथ कृषि में क्रांतिकारी समाधान प्रदान करके बेहतर जीविका का समर्थन करने के लिए समाधान प्रदान करती है।
इनमें सौर ऊर्जा आधारित एग्रीवोल्टेक्स, कृषि वानिकी, पशुधन के लिए बेहतर चारा पद्दतियां, मिट्टी में सुधार, विलवणीकरण और जौ, मसूर, चना, सोयाबीन और कैक्टस जैसी जलवायु-स्मार्ट फसलों के लिए उन्नत प्रजनन तकनीकें शामिल हैं।
डॉक्टर ब्लेड का आगे कहना है कि, "चूंकि जलवायु परिवर्तन वैश्विक खाद्य प्रणालियों के लिए खतरा बन रहा है, इसलिए हमने और हमारे साझेदारों ने शुष्क भूमि के समाधान के लिए जो मॉडल विकसित किए हैं, वे कमजोर समुदायों की सहायता के लिए महत्वपूर्ण होंगे।"
देखा जाए तो यह शुष्क भूमियां अन्य क्षेत्रों की तुलना में 20 से 40 फीसदी अधिक तेजी से गर्म हो रही है। ऐसे में यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में अग्रिम पंक्ति में खड़ी हैं। इसी तरह दुनिया में 70 फीसदी लोग ऐसे स्थानों पर रह रहें हैं जो भुखमरी, संघर्ष और पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहे हैं। ऐसे में खाद्य सुरक्षा के लिए इन शुष्क भूमियों में सुधार करना बेहद मायने रखता है।
जलवायु में आते इन बदलावों की वजह से शुष्क क्षेत्रों में होता विस्तार जारी है, इसलिए शुष्क भूमि के लिए आज विकसित किए गए सबक और समाधान कल की चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक होंगे।
क्या है समाधान
जलवायु-अनुकूल फसलों की किस्में विकसित करने के साथ-साथ नई प्रजनन तकनीकों का उपयोग इस दिशा में फायदेमंद साबित हो सकता है। इसी तरह पशुधन और जलीय प्रणालियों में जलवायु अनुकूलन का समर्थन करके आने वाले खतरों का सामना किया जा सकता है। जलवायु-अनुकूल कृषि खाद्य प्रणालियों का निर्माण भी बेहतर भविष्य की नींव रखने में मददगार साबित हो सकता है।
मिश्रित फसलों को बढ़ावा देने के साथ नई कृषि पद्धतियों को अपनाना और कृषि प्रणाली में विविधता को प्रोत्साहित करना भी बेहद जरूरी है। मूल निवासियों, विशेषकर महिलाओं से प्रकृति के बारे में सीखकर समुदायों और पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत किया जा सकता है। इतना ही नहीं यह जैव विविधता के दृष्टिकोण से भी फायदेमंद होगा। इस दिशा में जैव विविधता का संरक्षण भी बेहद मायने रखता है।
इसके लिए पर्यावरण अनुकूल कृषि, चरागाहों को बहाल करने, तथा नई सौर ऊर्जा चालित सिंचाई विधियों का उपयोग करके सतत तरीके से खाद्य उत्पादन को बढ़ाने के लिए मिट्टी, भूमि और जल का प्रबंधन करना अहम है।
इसी तरह पोषक तत्वों से भरपूर विविध फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, दालें, फलियां, मेवे, बीज और पशु आधारित खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देकर भूख और कुपोषण को कम करने के साथ-साथ स्वस्थ आहार तक स्थाई पहुंच सुनिश्चित की जा सकती है।