खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने अपने नए अध्ययन में चेताया है कि यदि समय रहते कार्रवाई न की गई तो पशुओं में एंटीबायोटिक का उपयोग 2040 तक 30 फीसदी बढ़ सकता है। एंटीबायोटिक में वृद्धि की यह गणना 2019 के आधार पर की गई है।
हालांकि जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित इस अध्ययन में यह भी पाया गया है कि पशुधन प्रणालियों की उत्पादकता में सुधार से एंटीबायोटिक के इस अनुमानित उपयोग को आधे से भी कम किया जा सकता है।
अध्ययन का अनुमान है कि 2019 में वैश्विक स्तर पर पशुओं में 110,777 टन एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया गया। अंदेशा है कि 2040 तक यह आंकड़ा बढ़कर 143,481 टन तक पहुंच जाएगा। मतलब कि आने वाले वर्षों में इसमें 29.5 फीसदी की वृद्धि हो सकती है।
लेकिन साथ ही अध्ययन में इस बात का भी अनुमान लगाया गया है कि यदि पशुओं के स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाए जो बेहतर प्रबंधन और दक्षता से पशुधन की उत्पादकता में सुधार हो सकता है। इसकी मदद से 2040 तक एंटीबायोटिक के उपयोग में 57 फीसदी की कटौती संभव है। ऐसे में एंटीबायोटिक्स के उपयोग का यह आंकड़ा घटकर 62,000 टन रह सकता है।
यहां तक की एंटीबायोटिक के उपयोग में मामूली कमी भी इसके कुल उपयोग में होने वाली वृद्धि को संतुलित कर सकती है। खासकर सबसे बड़ी गिरावट तब देखी गई जब पशुओं की संख्या में कमी के साथ-साथ एंटीबायोटिक के उपयोग में 50 फीसदी की कटौती की गई।
हालांकि, अध्ययन में यह भी पाया गया कि अकेले पशुधन की संख्या कम करने से एंटीबायोटिक के उपयोग पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है।
इस बारे में एफएओ के पशुधन अर्थशास्त्री और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता एलेजांद्रो अकोस्टा का कहना है, “पशुधन उत्पादन की दक्षता में सुधार, एंटीबायोटिक के उपयोग को कम करने की कुंजी है।“
उनका आगे कहना है कि, "समान या कम पशुओं से अधिक उत्पादन हासिल करने से एंटीबायोटिक का उपयोग कम किया जा सकता है। साथ ही इससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भी सुधार किया जा सकता है।"
यह अध्ययन ज्यूरिख विश्वविद्यालय के थॉमस वान बॉकल के सहयोग से एफएओ विशेषज्ञों एलेजांद्रो अकोस्टा, वोंडमागेगन तिरकासो, फ्रांसेस्को निकोली, ग्यूसेपिना सिनार्डी, जुनक्सिया सॉन्ग द्वारा किया गया है।
बढ़ते उपयोग के लिए कौन है दोषी
अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि 64.6 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ एशिया और प्रशांत क्षेत्र पशुधन में एंटीबायोटिक दवाओं के सबसे बड़े उपयोगकर्ता बने रहेंगे। वहीं दक्षिण अमेरिका 19 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है। वहीं इनकी तुलना में अफ्रीका (5.7 फीसदी), उत्तरी अमेरिका (5.5 फीसदी) और यूरोप (5.2 फीसदी) के साथ तुलनात्मक रूप से कम एंटीबायोटिक का उपयोग करेंगे।
गौरतलब है कि दुनिया भर की सरकारों ने 2024 के संयुक्त राष्ट्र रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) घोषणापत्र के तहत 2030 तक कृषि खाद्य प्रणाली में रोगाणुरोधी पदार्थों के उपयोग में उल्लेखनीय कमी लाने का संकल्प लिया है। हालांकि, एफएओ ने चेतावनी दी है कि इसे हासिल करना चुनौतीपूर्ण होगा, खासकर उन क्षेत्रों में जहां बढ़ती खाद्य मांग को पूरा करने के लिए पशुधन उत्पादन का तेजी से विस्तार किया जा रहा है।
बता दें कि एफएओ ने हाल ही में कृषि में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को कम करने में देशों की मदद करने के लिए रेनोफार्म पहल की शुरूआत की थी। इसके तहत पशुधन में सार्थक बदलाव को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत मार्गदर्शन, तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है, ताकि देशों द्वारा एंटीबायोटिक के उपयोग को कम करने में मदद मिल सके। इसका मकसद पर्यावरण अनुकूल कृषि खाद्य प्रणाली को बढ़ावा देना है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए अध्ययन में भी सामने आया है कि आज जिस तरह से कृषि और मवेशियों में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग बढ़ रहा है वो मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को खतरे में डाल रहा है। वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि जिस तरह से खेतों और मवेशियों पर एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है उससे ऐसे बैक्टीरिया सामने आए हैं जो मानव प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए कहीं ज्यादा प्रतिरोधी हैं।
धड्ड्ले से होते उपयोग से बढ़ रहा रोगाणुरोधी प्रतिरोध
देखा जाए तो दुनिया भर में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स एक बड़ा खतरा बन चुका है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेन्स (एएमआर) मलेरिया और एड्स से भी ज्यादा लोगों की जान ले रहा है। आंकड़े दर्शाते हैं कि 2019 में इसने सीधे तौर पर 12.7 लाख लोगों की जान ली थी।
अनुमान है कि इस वर्ष में जान गंवाने वाले 49.5 लाख लोग कम से कम एक दवा प्रतिरोधी संक्रमण से पीड़ित थे। वहीं संयुक्त राष्ट्र ने आगाह किया है कि 2050 तक सुपरबग्स साल में कम से कम एक करोड़ लोगों को लील लेंगें। ऐसे में उनसे निपटने के लिए नई एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता होगी।
अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में छपी एक अन्य रिपोर्ट से पता चला है कि कृषि में बेतहाशा उपयोग के चलते भारत और चीन के पशुओं में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स का खतरा करीब तीन गुना बढ़ गया हैं, जो इंसानो पर मंडराते एक बड़े खतरे की ओर इशारा करता है।
गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में बेची जाने वाले 73 फीसदी एंटीबायोटिक्स का उपयोग उन जानवरों पर किया जाता है, जिन्हे भोजन के लिए पाला गया है।
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भी अपने अध्ययन में चेताया है कि पोल्ट्री इंडस्ट्री में एंटीबायोटिक दवाओं के बड़े पैमाने पर धड्ड्ले से होते उपयोग के चलते एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स के मामले बढ़ रहे हैं ।