वन्य जीव एवं जैव विविधता

दुनिया में पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली की क्षमता में आई भारी गिरावट: शोध

शोध में दक्षिण और पूर्वी एशिया के ऐसे क्षेत्रों को चुना गया जहां लचीलापन समाप्त हो गया है, जिसमें भारत में शुष्क पर्णपाती वन, चीन में शंकुधारी वन और मंगोलियाई घास के मैदानों का बड़ा हिस्सा शामिल है।

Dayanidhi

हम एक ऐसी जलवायु और पारिस्थितिक आपातकाल में जी रहे हैं, जहां जलवायु में बदलाव और जीवमंडल के साथ प्रत्यक्ष मानवजनित हस्तक्षेप अचानक या न बदले जा सकने वाले बदलावों को जन्म दे रहे हैं। इस तरह के बदलाव हमारे जीवन और इससे जुड़ी प्रणालियों के लिए खतरा हैं।

अब एक नई संवेदन प्रणाली उन पारिस्थितिक तंत्रों की पहचान कर सकती है जो विलुप्त होने के खतरे में हैं। एक ऐसी प्रणाली जो खतरे में पड़े इलाकों को खोजने के लिए उपग्रहों का उपयोग करती है, जिसमें टिपिंग पॉइंट के खतरों में पड़ी चीजें शामिल हैं।

इस तरह पारिस्थितिकी को लेकर संरक्षण और बहाली के प्रयासों की सफलता को भी मापा जा सकता है।

एक रेसिलिएंट या लचीले पारिस्थितिक तंत्र में सूखे, आग और बाढ़ जैसी समस्याओं को ठीक करने की अधिक क्षमता होती है, इसलिए लचीलेपन में गिरावट एक पारिस्थितिकी तंत्र को अधिक कमजोर बनाती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर में ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट (जीएसआई) के नेतृत्व में शोध दल ने एक प्रोटोटाइप सेंसिंग सिस्टम विकसित किया है। इसके प्रारंभिक परिणाम बताते हैं कि पिछले 20 वर्षों में वैश्विक औसत लचीलापन में गिरावट आई है।

ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट (जीएसआई) के निदेशक प्रोफेसर टिम लेंटन ने कहा उन क्षेत्रों की पहचान करके जहां लचीलेपन का नुकसान हो रहा है, यह प्रणाली दिखाती है कि हमें किन जगहों के बारे में सबसे ज्यादा चिंतित होना चाहिए। यह लचीलेपन को बहाल करने के लिए की जाने वाली कार्रवाई का मार्गदर्शन कर सकता है।

यह उन जगहों पर विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहां एक टिपिंग पॉइंट हो सकता है, एक ऐसी सीमा जो न बदले जा सकने वाले बदलाव को जन्म देती हैं, जैसे कि अमेजन वर्षावन।

जीएसआई टीम द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि अमेजन वर्षावन अपने लचीलेपन को खो रहा है, एक ऐसी स्थिति है जो आने वाले टिपिंग पॉइंट के साथ है, जो खत्म करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकती है और जंगल को सवाना में बदल सकती है।

नया शोध नियमित सामान्यीकृत अंतर वनस्पति सूचकांक (एनडीवीआई) मापों पर आधारित है, यह देखने के लिए कि पारिस्थितिकी तंत्र बदलती परिस्थितियों पर कैसे प्रतिक्रिया करता है।

एनडीवीआई के 20 वर्षों के आंकड़ों के आधार पर इसके परिणामों में शामिल हैं:

पूर्वी भूमध्यसागरीय, मध्य अमेरिका और कैटिंगा (उत्तर-पूर्व ब्राजील) में लचीलेपन का भारी नुकसान हुआ, जो सभी लंबे समय से सूखे का सामना कर रहे हैं।

लचीलेपन में गिरावट का सबसे मजबूत रुझान उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय शुष्क चौड़ी पत्ती वाले जंगलों, पर्वतीय घास के मैदानों और झाड़ियों में हैं।

अध्ययन ने दक्षिण और पूर्वी एशिया पर गौर किया और ऐसे क्षेत्रों को चुना जहां लचीलापन समाप्त गया है, जिसमें भारत में शुष्क पर्णपाती वन, चीन में शंकुधारी वन और मंगोलियाई स्टेपी घास के मैदानों का बड़ा हिस्सा इसमें शामिल है।

प्रोफेसर लेंटन ने कहा कि सेंसिंग सिस्टम टेस्ट जैसी परियोजनाओं की प्रभावशीलता को माप सकता है, जिसके माध्यम से हजारों किसानों ने चार देशों में लाखों पेड़ लगाए हैं और उनकी रक्षा की है।

उन्होंने कहा देखा जा सकता है कि क्या ये परियोजनाएं एक पारिस्थितिकी तंत्र को लचीलापन दे रही हैं?

प्रोफेसर लेंटन ने कहा कि प्रणाली को अब और विकसित करने की आवश्यकता है, भूमि के साथ-साथ समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को भी इसमें शामिल करना एक बड़ा कदम होगा। यह शोध द रॉयल सोसाइटी बी: बायोलॉजिकल साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।