वन्य जीव एवं जैव विविधता

दुनिया भर में जारी है जैव विविधता की छठी सबसे बड़ी विलुप्ति

लगभग 1500 ईसवी के बाद से पृथ्वी से 20 लाख ज्ञात प्रजातियों में से लगभग 7.5 से 13 फीसदी के बीच का नुकसान हो चुका है, जो कि 1,50,000 से 2,60,000 प्रजातियां हैं

Dayanidhi

अब तक पृथ्वी पर भारी प्राकृतिक घटनाओं के कारण पांच बड़े जैव विविधता के विलुप्त होने की घटनाएं हुई हैं। आज कई विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि छठी सामूहिक विलुप्ति चल रही है, जिसके लिए मानवीय गतिविधियां पूरी तरह जिम्मेवार हैं।

वर्तमान में चल रही इस विलुप्त होने की घटना के साक्ष्य का एक गहन मूल्यांकन मनोआ में हवाई विश्वविद्यालय के जीव विज्ञानियों द्वारा किया गया है।

यूएच मानोआ पैसिफिक बायोसाइंसेज रिसर्च में शोध और अध्ययनकर्ता प्रोफेसर रॉबर्ट कोवी ने कहा कि प्रजातियों के विलुप्त होने की दर में वृद्धि और कई जानवरों और पौधों की घटती संख्या अच्छी तरह से प्रलेखित है। फिर भी कुछ लोग बड़े पैमाने पर विलुप्त होने की घटनाओं से इनकार करते हैं।

यह इनकार एकतरफा दृष्टिकोण पर आधारित है जो स्तनधारियों और पक्षियों पर केंद्रित है, जिसमें अकशेरुकी जीवों को नजरदांज किया गया है। जबकि अकशेरुकी जीव जैव विविधता के बड़े हिस्से का गठन करते हैं।

कोवी और सह-अध्ययनकर्ताओं ने भूमि में रहने वाले घोंघे और स्लग के अनुमानों के आधार पर 1500 वर्ष के इतिहास का पता लगाया। लगभग 1500 ईसवी के बाद से पृथ्वी से 20 लाख ज्ञात प्रजातियों में से लगभग 7.5 से 13 फीसदी के बीच का नुकसान हो चुका है, जो कि 1,50,000 से 2,60,000 प्रजातियां हैं, यह एक चौंका देने वाला आंकड़ा है।

कोवी ने कहा कि अकशेरुकी जीवों को शामिल करना यह पुष्टि करने के लिए महत्वपूर्ण था कि हम वास्तव में पृथ्वी के इतिहास में छठे बड़े पैमाने पर विलुप्त होने की शुरुआत देख रहे हैं।

हालांकि हर जगह स्थिति एक जैसी नहीं होती है। समुद्री प्रजातियों को महत्वपूर्ण खतरों का सामना करना पड़ता है, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि संकट महासागरों में प्रजातियों को उसी हद तक प्रभावित कर रहा है जैसे कि भूमि पर। भूमि पर, द्वीप प्रजातियां, जैसे कि हवाई द्वीप समूह, महाद्वीपीय प्रजातियों की तुलना में बहुत अधिक प्रभावित होती हैं। पौधों के विलुप्त होने की दर स्थलीय जानवरों की तुलना में कम लगती है।

दुर्भाग्य से, विज्ञान के इनकार के साथ-साथ कई मुद्दों पर आधुनिक समाज में पैर जमाने के साथ, नया अध्ययन बताता है कि कुछ लोग इस बात से भी इनकार करते हैं कि छठी विलुप्ति शुरू हो गई है। इसके अतिरिक्त, अन्य इसे एक नए और प्राकृतिक विकासवादी प्रक्षेपवक्र के रूप में स्वीकार करते हैं, क्योंकि मनुष्य पृथ्वी के इतिहास में अपनी प्राकृतिक भूमिका निभाने वाली एक अन्य प्रजाति है।

कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि जैव विविधता को पूरी तरह से मानवता के लाभ के लिए बदला जाना चाहिए, लेकिन लाभ को कौन तय करेगा तथा इसे कैसे परिभाषित किया जाएगा?

कोवी ने जोर देकर कहा कि इंसान ही एकमात्र ऐसी प्रजाति है जो बड़े पैमाने पर जीवमंडल में बदलाव करने में सक्षम है। हम बाहरी प्रभावों के सामने विकसित होने वाली एक और प्रजाति नहीं हैं। इसके विपरीत, हम एकमात्र ऐसी प्रजातियां हैं जिनके पास हमारे भविष्य और पृथ्वी की जैव विविधता के बारे में सचेत रहने का विकल्प हैं।

संकट से लड़ने के लिए, कुछ करिश्माई जानवरों के विभिन्न संरक्षण पहल सफल रही हैं। लेकिन ये पहल सभी प्रजातियों को शामिल नहीं कर सकती हैं। वे प्रजातियों के विलुप्त होने की समग्र प्रवृत्ति को उलट नहीं सकती हैं। बहरहाल, इस तरह के प्रयासों को जारी रखना, प्रकृति के लिए चमत्कार जारी रखना जैसा है और जैव विविधता के गायब होने से पहले उसका दस्तावेजीकरण करना आवश्यक है।

कोवी ने कहा संकट की गंभीरता के बावजूद उपचारात्मक समाधान मौजूद हैं और निर्णय लेने वालों के ध्यान में लाए जाते हैं। यह स्पष्ट है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दूर करना होगा। संकट को नकारना, बिना प्रतिक्रिया के इसे स्वीकार करना, या यहां तक कि इसे प्रोत्साहित करने से इंसान की सामान्य जिम्मेदारी से विमुख होना है। इससे पृथ्वी के लिए छठे सामूहिक विलोपन की ओर अपने दुखद प्रक्षेपवक्र को जारी रखने का मार्ग प्रशस्त होता है। यह अध्ययन बायोलॉजिकल रिव्यु पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।