वन्य जीव एवं जैव विविधता

क्या अब उत्तराखंड के जंगलों में 12 महीने लगेगी आग?

उत्तराखंड वन विभाग के मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा है कि राज्य में अब फायर सीजन सिर्फ फरवरी से जून तक नहीं होगा बल्कि सालभर होगा

Varsha Singh

दिसंबर-जनवरी की ठिठुराने वाली ठंड में भी उत्तराखंड के जंगल आग की लपटों में घिरे रहे। बल्कि कुछ जगहें तो ऐसी भी थीं जहां बर्फ़ की फ़ुहारें पड़ती थीं वहां इस बार आग धधक रही थी। जंगल की आग अब सिर्फ गर्मियों का खतरा नहीं रहा, बल्कि पूरे साल की मुश्किल बन गया है। उत्तराखंड के वनमंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने भी कहा कि अब फायर सीजन सिर्फ फरवरी से जून तक नहीं होगा बल्कि सालभर होगा।

केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग के कुछ हिस्से भी इस वर्ष की सर्दियों में आग से जूझ रहे थे। यहां के डीएफओ अमित तंवर बताते हैं कि आमतौर पर सर्दियों में इस क्षेत्र में आग की घटनाएं नहीं होतीं। पिछले साल इस समय कोई भी आग नहीं थी। यहां तक कि इस वर्ष की गर्मियों में भी यहां के जंगल में आग नहीं लगी। उनके मुताबिक गर्मियों में आग न होने के चलते जंगल में बहुत सारा पीरूल और अन्य ज्वलनशील पदार्थ इकट्ठा हो गया। मौसम सूखा होने की वजह से मिट्टी में नमी नहीं थी। इसकी भी पड़ताल की जा रही है कि ये आग लोगों की लगाई हुई थी या नहीं। अमित बताते हैं कि जंगल की आग के चलते उपरी हिस्सों में भारी धुंध जमा हो गई।

2019 की सर्दियों की अच्छी बर्फ़बारी रुद्रप्रयाग के लोगों के लिए आजीविका के अच्छे अवसर लेकर आई। लेकिन 2020 में मानसून की विदाई के बाद बारिश-बर्फ़बारी बेहद कम रही। यहां के जंगल भी आग में धधके। रुद्रप्रयाग वन प्रभाग के डीएफओ वैभव सिंह कहते हैं कि पिछली सर्दियों में जखोली ब्लॉक जैसे कुछ हिस्सों में इस समय बर्फ़ गिरी थी। इस बार की सर्दियों में वहां सूखा रहा। सूखा मौसम और जंगल की सतह पर जमा ईधन, सूखी मिट्टी के चलते आग फैलने के हालात बने हुए थे। ऐसे में जंगल में अलाव जलाना या जलती बीड़ी-सिगरेट फेंक देने जैसी लापरवाही घातक होती है। इस बार राज्यभर में यही हालात रहे।

उत्तराखंड वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में एक अक्टूबर से चार जनवरी तक आग लगने की 236 घटनाएं हुई हैं। गढ़वाल में रिजर्व फॉरेस्ट में आग की 96 घटनाएं हुई, जबकि सिविल फॉरेस्ट में 51 घटनाएं हुईं। रिजर्व फॉरेस्ट के 129.05 हेक्टेअर समेत कुल 188.4 हेक्टेअर क्षेत्र जंगल की आग में स्वाहा हुए। इसमें पौधरोपण का 4.5 हेक्टेअर शामिल है। 3000 पेड़ों को नुकसान पहुंचा है। 5,11,700 रुपये के नुकसान का आंकलन है।

इसी तरह कुमाऊं में रिजर्व फॉरेस्ट में 64 और सिविल फॉरेस्ट में 25 आग की घटनाएं हुई हैं। यहां रिजर्व फॉरेस्ट के 89.52 हेक्टेअर और सिविल फॉरेस्ट के 44.35 हेक्टेअर क्षेत्र आग की चपेट में आए। पौधरोपण का 5.5 हेक्टेअर क्षेत्र भी जंगल की आग में स्वाहा हुआ। कुमाऊं में आग से 4,60,110 रुपये के नुकसान का आंकलन है।

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह के मुताबिक वर्ष 2020 में अक्टूबर से दिसंबर के बीच बारिश बहुत कम हुई है। नवंबर के दूसरे हफ्ते में किसानों को बुवाई के लिए थोड़ी बारिश जरूर मिली। लेकिन मानसून के बाद का पूरा सीजन सूखा रहा। वह कहते हैं कि बारिश न होने से जंगल में आग नहीं लगी। लेकिन मौसम सूखा होने की वजह से यदि कोई आग लगाता है तो वो तेजी से फैल जाती है।

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र से मिले आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020 में अक्टूबर से दिसंबर के बीच राज्य में सामान्य से 71 प्रतिशत कम बारिश हुई है। इस अंतराल में सामान्य औसत बारिश 60.5 मिलीमीटर मानी जाती है। जबकि 2020 में 17.8 मिमी दर्ज की गई। वर्ष 2019 में अक्टूबर-दिसंबर के बीच 114.2 मिमी बारिश हुई थी। 2018 में 25.5, 2017 में 21.3 और 2016 में 16.2 मिमी बारिश दर्ज की गई।

कुमाऊं विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और फॉरेस्ट हाइड्रोलॉजी एक्सपर्ट प्रोफेसर जेएस रावत कहते हैं कि बढ़ते तापमान को देखते हुए अब पूरे वर्ष फॉरेस्ट फायर सीजन रहेगा। जंगल की आग कभी भी लग सकती है। आग का सीधा नाता जंगल की मिट्टी की नमी से है। जंगली नदियां सूख रही हैं। जंगल के भूजल स्तर में गिरावट आ रही है। तापमान बढ़ रहा है। इसलिए अब ये नहीं कह सकते कि गर्मियों में ही आग लगेगी।

जंगल की आग जैव-विविधता के लिए बड़ा खतरा है। 4 जनवरी को सर्वोच्च अदालत ने उत्तराखंड के जंगल की आग की जनहित याचिका पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने वन्यजीवों को लीगल एंटिटी (कानूनी व्यक्ति) घोषित करने और राज्य सरकार को आग पर काबू पाने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया। इस मामले में अदालत एक हफ्ते बाद फिर सुनवाई करेगी। अदालत में बताया गया कि राज्य बनने के बाद से उत्तराखंड में 44 हज़ार हेक्टेअर जंगल आग में समाप्त हो चुके हैं।