उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के गांवों में लोगों, खासकर बच्चों पर हाल ही में हुए हमलों के लिए एक अकेला जानवर जिम्मेवार है, जो शायद इंसानों से परिचित रहा हो और अब खुला घूम रहा है। यह आशंका अनुभवी वन्यजीव वैज्ञानिक वाईवी झाला ने जताई है।
डाउन टू अर्थ से बात करते हुए झाला ने कहा कि हालांकि वे इन दिनों नेपाल सीमा के पास पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित प्रभावित क्षेत्र में नहीं हैं, लेकिन उनके पास यह मानने के कई कारण हैं कि हमला किसी झुंड द्वारा नहीं किया जा रहा था।
उन्होंने कहा, "मैंने केवल अखबारों की रिपोर्ट पढ़ी हैं। मैं स्थानीय जिला वन अधिकारी के संपर्क में भी हूं। अब स्थिति 1996 में हुई स्थिति से काफी मिलती-जुलती है।"
28 साल पहले, झाला इसी क्षेत्र में थे, जहां वे किसी ऐसी चीज का पता लगा रहे थे जिसने तीन जिलों - प्रतापगढ़, जौनपुर और सुल्तानपुर के 40 गांवों में 30 बच्चों की जान ले ली थी। उस समय इलाके में काफी दहशत थी।
उस समय की रिपोर्टों के अनुसार, भेड़ियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। हालांकि, स्थानीय गांवों के निवासियों के लिए यह एक इंसान का काम था, जो एक आकार बदलने वाला लाइकेनथ्रोप है, जो भेड़िये की खाल में लिपटा हुआ एक आदमी है।
झाला बताते हैं कि यह एक भेड़िया निकला।
तराई में आतंक
बहराइच तराई का हिस्सा है, जो दक्षिणी नेपाल और उत्तरी भारत की सीमा पर फैली दलदली निचली भूमि है। हमलों की यह ताजा घटना महसी ब्लॉक के 30 गांवों में हुई है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार नौ लोग मारे गए हैं, जिसमें एक वयस्क और आठ बच्चे शामिल हैं और 20 से अधिक घायल हुए हैं।
झाला के अनुसार, पीड़ितों के ज्यादातर शव क्षतिग्रस्त नहीं मिले हैं। शरीर के कुछ हिस्से खाए गए हैं, लेकिन शवों को टुकड़ों में नहीं फाड़ा गया है। भेड़ियों का झुंड आमतौर पर अपने शिकार के शरीर के विभिन्न हिस्सों को खींचता है, इस प्रक्रिया में उसे टुकड़े-टुकड़े कर देता है।
इससे झाला को लगता है कि यह वास्तव में एक अकेला जानवर है।
उन्होंने आशंका जताई कि ऐसा भी हो सकता है कि भेड़िये इन मौतों के लिए जिम्मेवार न हों।
झाला ने तर्क दिया, “भेड़िये आम तौर पर लोगों पर हमला नहीं करते। भारत में जहां भी भेड़ियों की संख्या अधिक है, वहां उनके द्वारा लोगों या बच्चों को मारने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। यह केवल उन क्षेत्रों में होता है, जहां अत्यधिक गरीबी है, जहां बच्चों की ठीक से देखभाल नहीं की जाती, जहां भेड़ियों को शिकार के लिए पशु नहीं मिले या बच्चों से ज्यादा पशुओं की सुरक्षा की जाती है, तब भेड़िये बच्चों पर हमला करते हैं। यहां तक कि कुत्ते भी ऐसा कर सकते हैं। कोई भी शिकारी जानवर ऐसा कर सकता है, क्योंकि उन्हें जीवित रहना होता है।
अनुभवी वन्यजीव वैज्ञानिक झाला के अनुसार, पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी भारत के अन्य हिस्सों की तरह भारतीय भेड़ियों (कैनिस ल्यूपस पैलिप्स) और खुले में घूमने वाले कुत्तों के बीच संकरण होता है और कुत्तों व भेड़ियों की एक मिश्रित प्रजाति जन्म ले लेती है।
झाला के अनुसार, उत्तर प्रदेश के इस हिस्से में लोग भेड़िया-कुत्ते के संकर या भेड़ियों को भी पालतू जानवर के रूप में रखते हैं। मनुष्यों से परिचित होने के बाद, वे उनसे अपना स्वाभाविक डर खो देते हैं। अगर वे खुले में घूमते हैं, तो उनके पास आमतौर पर इस क्षेत्र में खाने के लिए कुछ नहीं होता। इसलिए, वे बच्चों जैसे आसानी से उपलब्ध और कमजोर, असहाय शिकार पर हमला करते हैं।
गोद लिया गया भेड़िया या भेड़िया कुत्ता का बच्चा जब बड़ा होता है, तो उसे गोद लेने वालों के लिए वह बहुत बड़ा हो जाता है। फिर उसे छोड़ना पड़ता है क्योंकि वह जोखिम बन जाता है।
उन्होंने याद किया कि पांच साल पहले इस इलाके में 12 बच्चों की हत्या हुई थी। झाला ने कहा, "मैं उस समय भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून में था। हमने जांच की और पता चला कि वे खुले में घूमने वाले कुत्ते थे।"
उन्होंने कहा कि जब तक हत्या की जगह से डीएनए नहीं निकाला जाता, तब तक इस मामले में कोई निश्चितता नहीं हो सकती।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह के हमले बेहद दुर्लभ हैं, "क्योंकि बच्चों पर हमला करने और उन्हें मारने आमतौर पर नहीं होता। ऐसा लाखों में एक बार होता है।"