साल 1982 की तुलना में उत्तरी मुरीकिस बंदरों की आबादी लगभग चार गुना अधिक होने के बावजूद, एक नए अध्ययन से पता चलता है कि आवासों के नष्ट होने के कारण ये खतरे की कगार में हैं।
ब्राजील के अटलांटिक जंगलों में रहने वाले उत्तरी मुरीकिस बंदर, जिसे ऊनी मकड़ी बंदरों के रूप में भी जाना जाता है, अन्य बंदरों की तुलना में बहुत अधिक शांतिपूर्ण होते हैं। वे दुनिया में बंदरों की सबसे लुप्तप्राय प्रजातियों में से एक हैं।
इकोलॉजी जर्नल में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि शोधकर्ता ने ब्राजील के जंगल के एक छोटे से संरक्षित हिस्से में इन बंदरों के व्यवहार और पारिस्थितिकी का अध्ययन करने में 40 साल बिताए हैं। शोधकर्ता का लक्ष्य पहले से उपलब्ध आंकड़ों को नए आंकड़ों से मिलान कर उनकी असल संख्या का पता लगाना है। लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए इस स्तर के अध्ययन बहुत दुर्लभ है।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं की टीम के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने न केवल जानवरों की संख्या का पता लगाया है, बल्कि उनके अनोखे व्यवहार, जन्म दर, मृत्यु दर और एक दूसरे के साथ संबंधों पर भी नजर रखी। वे इन जानवरों को मात्र आंकड़ों के तौर पर नहीं, बल्कि अलग-अलग जानवरों के तौर पर जानते हैं।
हालांकि प्रजाति और जिस जगह पर वे रहते हैं, वह ब्राज़ीलियाई कानून द्वारा संरक्षित है, लेकिन 2016 में मुरिकिस की मृत्यु दर अचानक बढ़ गई और तब से इसमें कोई कमी नहीं आई है। शोध में पाया गया है कि जानवर अभी भी स्थिर दर पर प्रजनन कर रहे हैं, जो आबादी में गिरावट के अन्य कारणों की ओर इशारा करता है।
आंकड़ों से पता चलता है कि आवास में कुछ पर्यावरणीय तनाव हो सकते हैं, जैसे कि पेड़ों की उत्पादकता में गिरावट, जो भोजन की उपलब्धता पर बुरा असर डालते हैं, जलवायु तनाव या शिकार के कारण मृत्यु दर में वृद्धि भी एक कारण है।
अध्ययन इस तरह के लंबी अवधि, विस्तृत अध्ययनों के फायदों की भी पुष्टि करता है। 2015 तक मुरिकिस की यह आबादी 356 तक बढ़ गई थी, जबकि 1982 में जब से आंकड़ों को एकट्ठा करना शुरू किया था, तब इसमें लगभग 50 जानवर थे।
अध्ययन के पहले 33 सालों के आंकड़ों का उपयोग करके एक मॉडल बनाया कि 2015 की परिस्थितियों में अगले कई दशकों में आबादी कैसी दिखनी चाहिए। इसने पूर्वानुमान लगाया की कि आबादी तब तक तेजी से बढ़ती रहेगी जब तक कि यह लगभग 500 जानवरों की वहन क्षमता तक नहीं पहुंच जाती, अगले कुछ दशकों तक इसी आकार के आसपास रहेगी।
हालांकि वह मॉडल 2014 में शुरू हुए दो साल के सूखे या 2016 में आबादी में फैले पीले बुखार के प्रकोप का पूर्वानुमान नहीं लगा सका।
अगर केवल 2015 तक के आंकड़े होते, तो कहा जा सकता है कि आबादी बहुत बढ़िया है। लेकिन सौभाग्य से शोधकर्ताओं और उनकी टीम ने सूखे और पीले बुखार की महामारी से परे आंकड़ों को एकत्र करना जारी रखा, जिससे आवास परिवर्तनों के चल रहे प्रभाव को दर्ज करना संभव हुआ।
जब 2016 से 2022 तक आबादी में आए इस भारी कमी को ध्यान में रखते हुए आबादी में होने वाले बदलावों का मॉडल बनाया, तो पाया कि आबादी की अनुमानित वहन क्षमता केवल 200 जानवरों की है। यह मानते हुए कि 2016 में शुरू हुई मृत्यु दर की तरह कोई और अचानक बदलाव नहीं होगा।
शिकार और आवास में बदलाव को इस मुरीकी आबादी के लिए संभावित सीमित कारकों के रूप में पहचाने जाने के साथ, संरक्षणवादियों को इस बात का स्पष्ट विचार मिल रहा है कि कहां और कैसे कार्रवाई की जरूरत पड़ सकती है।
आंकड़ों का उपयोग विभिन्न मॉडलों के साथ यह अनुमान लगाने के लिए भी किया जा सकता है कि म्यूरिकिस की अन्य आबादी जलवायु परिवर्तन और भविष्य की बीमारियों पर कैसे प्रतिक्रिया कर सकती है। जलवायु मॉडल के अनुसार गर्म और शुष्क दुनिया की भविष्यवाणी के कारण ये चुनौतियां और भी अधिक हो जाती हैं, जिसके कारण म्यूरिकिस और अन्य बंदरों के लिए पर्यावरणीय तनाव और भोजन की कमी बढ़ जाती है।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि आंकड़े उन्हें यह समझने में मदद करेंगे कि बदलती दुनिया के सामने इन आबादियों को जीवित रहने के लिए किन परिस्थितियों की आवश्यकता है। आखिरकार यह संरक्षण नीतियों को जानकारी मुहैया करवा सकता है जो आवास की गुणवत्ता प्रबंधन में सुधार कर सकते हैं या म्यूरिकिस की अलग-अलग आबादियों के बीच आवास गलियारे बना सकते हैं।