एक नए शोध में पाया गया कि वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों के बारे में फैसले लेने से महिलाओं को काफी हद तक बाहर रखा गया है। क्वींसलैंड और प्रकृति संरक्षण विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में लिंग आधारित असमानता के कारणों और प्रभाव के बारे में पता लगाया है।
यूक्यू पीएच.डी. उम्मीदवार और मेलानेशिया में संरक्षण और प्रकृति संरक्षण निदेशक रॉबिन जेम्स ने कहा कि यह कोई रहस्य नहीं था कि संरक्षण विज्ञान में महिलाओं को कमतर आंका गया था। जेम्स ने कहा हाल ही में 1,051 शीर्ष लेखकों के पारिस्थितिकी, विकास और संरक्षण शोध में किए गए विश्लेषण में केवल 11 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं।
उन्होंने कहा कि हमने 230 से अधिक पीयर-रिव्यू किए गए लेखों का विश्लेषण किया। हमने पाया कि लैंगिक भेदभाव व्यवस्थित है, सोलोमन द्वीप जैसे प्राकृतिक संसाधन के प्रबंधन एवं संरक्षण के लिए बनाए गए संगठनों में महिलाओं को अभी भी नेतृत्व और निर्णय लेने वाले पदों पर नहीं रखा गया है।
जिन अध्ययनों की समीक्षा की गई, उनमें पाया गया कि महिलाओं का प्रदर्शन बेहतर रहा। संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. नथाली बट ने कहा कि शोध से पता चला है कि मौजूदा लिंग आधारित असमानता ने महिलाओं को एक से अधिक बाधाओं को दूर करने से रोका है, जिससे उनका जीवनकाल सीमित हो गया है।
डॉ. बट ने कहा कि इस शोध से यह स्पष्ट हुआ कि हमें उस धारणा को बदलना होगा, जिसमें कहा जाता है कि पुरुषों के नेतृत्व में ही प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन और संरक्षण अच्छी तरह से किया जाता है। दरअसल, यह एक धारणा बन चुकी है कि पुरुषों को निर्णय लेने वाले और नेता होना चाहिए।इस धारणा को तोड़ने के लिए अधिक से अधिक शोध करने चाहिए।
यह अध्ययन ओरिक्स इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कंजर्वेशन में प्रकाशित हुआ है।
डॉ. बट्ट ने कहा कि अभी शुरुआती प्रयास किए जा रहे है, लेकिन अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। यह एक शुरुआत है, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। यह एक वैश्विक समस्या है जो वर्षों से चली आ रही है, अब हमें एक समान ग्रह का निर्माण करना है, जिसे हमें बचाने के लिए साथ मिलकर काम करना हैं।