वन्य जीव एवं जैव विविधता

लुप्तप्राय बोनोबो की संख्या घटने के पीछे क्या है कारण

बोनोबो या बड़े वानर की प्रजाति को 1994 से आईयूसीएन के रेड लिस्ट में लुप्तप्राय या गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

Dayanidhi

बोनोबो या बड़े वानर की प्रजातियों को 1994 से आईयूसीएन के रेड लिस्ट में लुप्तप्राय या गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। पिछले 40 वर्षों से, वैज्ञानिकों ने कांगो बेसिन के जंगलों में वानरों द्वारा छोड़े गए उनके आराम करने के घोंसलों की संख्या की गणना करके लुप्तप्राय बोनोबो की संख्या के बारे में पता लगाया है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि अब जंगल में बहुत कम बोनोबो बचे हैं।   

बोनोबोस (पैन पैनिस्कस) चिंपैंजी के समान बड़े वानर की एक प्रजाति है जो केवल कांगो बेसिन के वर्षा वनों में पाए जाते हैं। यहां बताते चले कि कांगो वर्षावन धरती का दूसरा सबसे बड़ा जंगल का इलाका है और यह पृथ्वी के 'हरे फेफड़ों' के रूप में जाना जाता है।

मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बिहेवियर के शोधकर्ताओं की रिपोर्ट है कि कांगो बेसिन में घटती बारिश के परिणामस्वरूप पिछले 15 वर्षों में बोनोबो के आराम करने के घोंसलों के 'नष्ट' होने की दर 17 दिन और बढ़ गई है।

अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि लंबे समय तक घोंसले का नष्ट न होने का मतलब है कि वानर संरक्षण के लिए गंभीर खतरा है। मौसम संबंधी इन परिवर्तनों ने जनसंख्या घनत्व को 60 प्रतिशत तक बढ़ा हुआ दिखाया है, इसके चलते इन जंगलों में रहने वाले लुप्तप्राय बड़े वानरों के संरक्षण को खतरे में डाल दिया है।  

लुईकोटेले बोनोबो प्रोजेक्ट का अध्ययन, लिवरपूल जॉन मूरेस यूनिवर्सिटी, सेंटर फॉर रिसर्च एंड कंजर्वेशन और मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बिहेवियर के वैज्ञानिकों के सहयोग से चल रहा है। जिसका उद्देश्य बोनोबो स्लीपिंग प्लेटफॉर्म, जिसे घोंसला भी कहा जाता है, के नष्ट होने पर मौसम के प्रभाव का आकलन करना है।

कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के लुईकोटाले शोध क्षेत्र में, वैज्ञानिकों ने वर्षा सहित 15 वर्षों के जलवायु के आंकड़ों का अध्ययन किया। जहां 1,511 बोनोबो घोंसले निर्माण से लेकर गायब होने तक देखे गए। मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के बारबरा फ्रूट कहते हैं जलवायु परिवर्तन मध्य अफ्रीकी वर्षा वनों को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है।

कांगो बेसिन से वास्तविक आंकड़ों की कमी का मतलब है कि हमें पता नहीं था कि यह इस क्षेत्र और बोनोबो को कैसे प्रभावित कर रहा था। हमारा अध्ययन इस बात की तस्दीक करता है कि दुनिया का सबसे बड़ा ताजे पानी का भंडार जलवायु परिवर्तन की गर्त में है। यह शोध प्लोस वन  नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

इस परेशान करने वाली प्रवृत्ति ने बोनोबो और सामान्य रूप से बड़े वानरों के लिए महत्व बढ़ा दिया है, क्योंकि उनकी आबादी का अनुमान वास्तविक वानरों की गिनती से नहीं, बल्कि हर रात इनके द्वारा छोड़े गए घोंसलों से लगाया जाता है। यह जानना कि ये घोंसले कितनी तेजी से गायब हो रहे हैं, घोंसले की गिनती को वानर की गिनती में बदलने के लिए आवश्यक है।

अध्ययन के परिणामों ने सालों से बारिश में लगातार गिरावट और बोनोबो घोंसले के नष्ट होने के समय पर इसका असर दिखाई दिया है। कम बारिश का मतलब था कि जंगल में घोंसले लंबे समय तक बने रहते हैं। इसके अलावा, वैज्ञानिकों ने अधिक अप्रत्याशित तूफानों के जवाब में अधिक ठोस निर्माण के तरीकों का उपयोग करते हुए बोनोबोस का अवलोकन किया।

शोधकर्ता मटिया बेसोन ने कहा कि घोंसले के नष्ट होने और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध सभी बड़े वानरों के संरक्षण के लिए प्रासंगिक है, क्योंकि घोंसले की गिनती का उपयोग उनकी आबादी का अनुमान लगाने के लिए सोने के मानक की तरह किया जाता है। चूंकि जलवायु परिवर्तन घोंसले के नष्ट होने और वानरों के घोंसले के निर्माण करने संबंधी व्यवहार दोनों की प्रक्रिया को प्रभावित करना जारी रखता है। बड़े वानरों के घोंसलों का नष्ट होने का समय भविष्य के साल-दर-साल बढ़ने की आशंका है।

शोधकर्ता ने कहा हम जलवायु के विशिष्ट प्रभाव को ध्यान में रखते हुए पूर्ण आवश्यकता पर जोर देते हैं। उन क्षेत्रों में घोंसले जहां इनका उपयोग बड़े वानरों का सर्वेक्षण करने के लिए किया जा रहा है। ऐसा करने में नुकसान है, यह वैश्विक महत्व के बायोमॉनिटरिंग अनुमानों को अमान्य कर देगी और बाद में जंगल में रहने वाले इन बड़े वानरों के संरक्षण को खतरे में डाल देगी।