महसी के मुकेरिया गांव में भेड़िए की दहशत, फोटो : राघवेंद्र सिंह 
वन्य जीव एवं जैव विविधता

क्या सच में भेड़िया ही कर रहा था हमला ?

Vivek Mishra

“27 जुलाई की भोर में करीब 3 बज रहे थे। गुप्प अंधेरा था। मेरी बेटी को प्यास लगी और मेरी पत्नी ने घर के सामने लगे हैंडपंप पर पानी भरने के लिए जैसे ही उसे बगल में बिठाया, अचानक एक एक चीख उठी और मेरी बेटी अचानक अंधेरे में गायब हो गई।” 30 वर्षीय राकेश कुमार गौतम भावुक होकर कहते हैं “मैं वहीं तखत पर सो रहा था, पत्नी के शोर मचने पर उठा और हम उसी अंधेरे में बदहवास होकर इधर-उधर भागे, सामने खेतों में गए और एक जंगल जैसे बाग की तरफ भी गए लेकिन हमारे हाथ कुछ नहीं लगा।”

सुबह छह बजे राकेश के घर से करीब एक किलोमीटर दूर गन्ने के खेत में उनकी 2 वर्षीय बेटी प्रतिभा का शव क्षत-विक्षत हालत में मिला। वहां मौजूद गांव वालों की भीड़ और वन अधिकारियों का जमावड़ा था। इस भीड़ में दावा था कि अभी-अभी जंगली भेड़िया गन्ने की खेत की तरफ भाग गया है। 

गौतम ने कहा बेटी की मौत के कारण वह एकदम टूट चुके थे इसलिए वह बदहवास थे और उन्होंने खुद जानवर को नहीं देखा। वह बताते हैं कि गांव वालों ने उसे गन्ने के खेत में भागते देखा। वह ग्रामीणों के देखे अनुसार जानवर का हुलिया बयान करते हैं“ उसके बड़े-बड़े बाल थे। वह
हल्का सफेद और भूरे रंग का था। लंबा मुंह और कान छोटे व खड़े हुए थे।“   

राकेश कुमार गौतम की तरह ही उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में महसी तहसील में नदी के किनारे करीब 10 से 12 किलोमीटर रेंज में आने वाले करीब 35 से 40 गांव के ग्रामीण बीते सात महीनों से आदमखोर जंगली जानवर के कारण डरे और सहमे हुए हैं।

मार्च से लेकर सितंबर तक बीते सात महीनों में इस जंगली जानवर के हमले में कुल 10 मौतें हुईं, जिनमें 9 बच्चे थे और एक सात साल के बच्चे को छोड़कर ज्यादातर बच्चे पांच साल से कम उम्र के थे। इसके अलावा छह से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए जो इसके हमले से घायल हुए और जिंदा बच गए। गांव में इसे आदमखोर भेड़िया का आंतक माना जा रहा है। गांव में लोग दिन-रात लाठी डंडों के साथ पहरा दे रहे हैं।

क्या वाकई है भेड़िया ?

क्या वाकई भेड़िया ही इन हमलों के लिए जिम्मेदार है ?  इसका सबसे सटीक जवाब डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (डीएनए) जांच से संभव है। डीएनए यानी एक ऐसा अणु है जिसके जांच से संबंधित जीव की स्पष्ट पहचान हो सकती है। हालांकि, इन मामलों में अभी तक किसी भी तरह की डीएनए जांच नहीं की गई है, जिसकी वजह से इस बात पर संशय बना हुआ है कि क्या वाकई भेड़िया ही हमला कर रहा है या फिर जो पांच भेड़िए अब तक पकड़े गए हैं, वही आदमखोर थे।

हालांकि, इस संशय से इतर बहराइच का वन विभाग इन सात महीनों में हुई मौतों की वजह भेड़िये को ही बता रहा है। साथ ही अन्य हमलों में जिनमें लोग बच गए उनमें कुछ मामलों को सियार और आवारा कुत्तों से भी जोड़ रहा है।

बहराइच के डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) अजीत प्रताप सिंह डाउन टू अर्थ से बताते हैं “जिस स्थान से बच्चों को जंगली जानवर ने उठाया वहां के पगमार्क (पंजों के निशान) और जिस स्थान पर शव मिला वहां के पगमार्क एक जैसे पाए गए और वह  भेड़िए के थे।” सिंह कहते हैं कि “पगमार्क के जरिए  जानवर तक पहुंचने का हमारा अनुमान इतना तक सही था कि पीछा करने के बाद तीन स्थानों पर भेड़िए शव को खाते मिला।”  

भेड़िए की पुष्टि के लिए किलिंग स्पॉट पर जुटाए गए सबूतों से डीएनए विश्लेषण की बात पर सिंह कहते हैं कि मैं ड्यूटी पर हूं और मेरा यही काम है कि सही जानवर की पहचान करना। यदि कोई लिखित में हमसे यह सवाल उठाता है तो हम आगे उस जांच को भी कराएंगे। सिंह कहते हैं कि पगमार्क के जरिए जीव की पहचान करना एक तत्कालिक प्रक्रिया है। यहां इमरजेंसी स्थितियां थी तो हम यह तरीका ही अपना रहे हैं।

वहीं, शवों और घायलों की मेडिकल जांच में सिर्फ इस बात की पुष्टि होती है कि संबंधित शव को किसी जंगली जानवर द्वारा मारा गया है या फिर वह पुलिस के आपराधिक श्रेणी का मामला है। वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक मेडिकल के दौरान यह नहीं बताया जाता कि जो मौतें हुई हैं वह किस जानवर के द्वारा हुई हैं। इसलिए कई विशेषज्ञ भेड़िए की बात पर सवाल उठा रहे हैं।

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि किसी भेड़िए की अब तक कोई फोटो ग्रामीणों के जरिए नहीं आ सकी है, इससे यह संदेह बना रहता है। हालांकि, पीड़ित इलाकों में ग्रामीण न सिर्फ भेड़िए को देखने की बात कह रहे हैं बल्कि वह यह बताते हैं कि भेड़िए के द्वारा पहले कई बार बकरी और आवारा पशुओं पर हमले किए जाते रहे हैं।  

वन विभाग के द्वारा महसी क्षेत्र में अब तक पांच भेड़िए पकड़े गए। इनमें एक की मौत हो गई। वहीं, अन्य 4 भेड़िए को लखनऊ और गोरखपुर के चिड़ियाघर में भेज दिया गया था।

डीएफओ अजीत सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि भेड़िए का एक समूह की प्रभावित क्षेत्रों में घूमता हुआ देखा गया था। इसको हम लोगों ने ड्रोन के द्वारा देखा। इनमें पांच को पकड़ा गया है। हालांकि इस समूह का एक भेड़िया अब तक पकड़ में नहीं आया है। संभव है कि जो छिटपुट हमले हो रहे हैं वह इसी के द्वारा किया जा रहा हो।

बहराइच के गांवो में अब भी दहशत बनी हुई है। 30 सितंबर, को महसी क्षेत्र में ही दो और बच्चे जख्मी हुए और उनका दावा था कि यह हमला भेड़िये का ही था।

जिस भेड़िया समूह पर वन विभाग ने आदमखोर होने का संदेह किया उसमें से अब भी एक भेड़िया गायब है और जो पकड़े गए उनसे यह साबित नहीं हो सका कि वही भेड़िए हमला कर रहे थे।

अगली कड़ी में पढ़िए, बहराइच के लिए यह नया नहीं....