वन्य जीव एवं जैव विविधता

उत्तराखंड: क्या लोगों को जंगली जानवरों के साथ जीना सीखना होगा?

Varsha Singh

उत्तराखंड में जंगल और इंसान के बीच का रिश्ता कमजोर पड़ रहा है। मानव-वन्य जीव संघर्ष में एक हफ्ते में तीन बच्चों की मौत हो गई। दो बच्चे बुरी तरह जख्मी हो गए। बदले में दो आदमखोर गुलदार (तेंदुए) ढेर कर दिए गए। 29 सितंबर से 6 अक्टूबर के बीच की ये सारी घटनाएं हैं। वन विभाग और वन्य जीव विशेषज्ञ कहते हैं कि अब इंसानों को जंगली जानवरों के साथ रहना सीखना ही होगा। वन विभाग “लिव विद लेपर्ड” नाम से एक अभियान भी शुरू कर रहा है।

28 सितंबर को पिथौरागढ़ के बेरीनाग में गुलदार तीन साल के बच्चे को उसकी मां की गोद से झपट्टा मार कर ले गया। मां चिल्लायी तो गुलदार ने बच्चे को छोड़ दिया। लेकिन तब तक वो दम तोड़ चुका था। राज्य के प्रमुख वन्य जीव प्रतिपालक राजीव भरतरी ने गुलदार को आदमखोर घोषित करना पड़ा और 4 अक्टूबर को शिकारी जॉय हुकिल ने गुलदार का शिकार किया। इससे पहले पिथौरागढ़ में भी एक महिला को भी गुलदार ने मार दिया था।

2 अक्टूबर को पौड़ी के पाबौ विकासखंड के कुलमोरी गांव में गुलदार के हमले में 10 साल की एक लड़की की जान चली गई। घटना से नाराज़ ग्रामीणों ने नेशनल हाईवे पर जाम लगाया। स्थानीय प्रशासन और वन विभाग के अधिकारियों ने गुलदार को मारने का भरोसा दिया, जिसके बाद लोगों ने जाम खोला। पौड़ी में इसी जगह चार महीने पहले गुलदार के हमले में एक और लड़की की मौत हो गई थी।

वन विभाग ने कुलमोरी गांव में पिंजड़े लगाए और गुलदार को पकड़ने के लिए दो शिकारी तैनात किए गए। 6 अक्टूबर की शाम शिकारी अजहर खान ने एक गुलदार को गोली मारी। जो उस समय भाग गया, लेकिन अगले दिन सुबह जंगल में तलाशी के दौरान मिले गुलदार को एक और गोली मारी गई, जिसके बाद वो ढेर हो गया। लेकिन उसके साथ एक और गुलदार दिखा। जिससे गांव के लोगों की दहशत कम नहीं हुई है। पीसीसीएफ राजीव भरतरी का कहना है कि इस गुलदार को ट्रैंकुलाइज़ करने के आदेश दिए गए थे, मारने के नहीं। गांव में अब भी पिंजड़े लगे हुए हैं।

4 अक्टूबर को ही पौड़ी के बीरोंखाल में एक गुलदार ने राघव और ऱाखी नाम के भाई-बहन पर हमला बोला। चार साल के राघव को खींच कर ले जाने की कोशिश कर रहे गुलदार से 11 साल की राखी भिड़ गई। उसने अपने भाई को नहीं छोड़ा और गुलदार के हमले झेलती रही। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती राखी को चालीस टांके लगे हैं। उसका नाम वीरता पुरस्कार के लिए भेजा जा रहा है।

4 अक्टूबर को बागेश्वर में भी गुलदार के हमले में एक लड़की की मौत हो गई। यहां इस साल गुलदार के हमले में ये छठी मौत है। जिसे लेकर लोगों में भारी गुस्सा बना हुआ है और वे गुलदार को आदमखोर घोषित करने की मांग कर रहे हैं।

इन घटनाओं में लोगों की नाराजगी वन विभाग की असंवेदनशीलता को लेकर और अधिक बढ़ जाती है। देहरादून में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के डॉ सत्यकुमार कहते हैं कि जंगल में गुलदार के लिए बहुत कम भोजन है। इसका अध्ययन भी किया गया और पाया गया कि जंगल में काकड़, गोरल, जंगली मुर्गी, जंगली सूअर बहुत ही कम हैं। गुलदार अपने भोजन के लिए रिहायशी इलाकों के आसपास ही निर्भर कर रहा है। गांव के पालतू कुत्ते और इंसानों पर हमले की घटनाएं इसीलिए लगातार बढ़ रही हैं। क्योंकि वे उनके लिए आसान शिकार होते हैं।

डॉ सत्यकुमार कहते हैं कि राज्य के जंगल में गुलदार को रहने के लिए जगह नहीं मिल रही। राजाजी और कार्बेट में बाघों का निवास है। इसलिए गुलदार जंगल से सटे इलाकों में रह रहे हैं। संस्थान के अनुमान के मुताबिक 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 12 गुलदार हैं, जो जनसंख्या घनत्व के लिहाज से बहुत अधिक है। कैमरा ट्रैप से पता चलता है कि गुलदार किसी एक जगह पर अपना निवास नहीं बना पा रहे और लगातार चल रहे हैं। डॉ सत्यकुमार कहते हैं कि जब तक उसे उसका क्षेत्र नहीं मिलता गुलदार चलता रहता है और अपने आसपास के इलाके से परीचित भी नहीं होता।

डॉ सत्यकुमार आगाह करते हैं कि जिस तेजी से हमारे वन्यजीवों की संख्या बढ़ रही है, मानव वन्य जीव संघर्ष और तेज़ होगा। हमें वन्यजीवों के लिए अधिक जगह की जरूरत है। हमें जंगली जानवरों के साथ रहना सीखना होगा। इसलिए वन्यजीवों से निपटने के लिए फायर फाइटिंग की तरह नहीं बल्कि प्रो-एक्टिव होना होगा और सभी जरूरी सावधानियां बरतनी होंगी।

आदमखोर घोषित गुलदार को मारने के सवाल पर वे कहते हैं कि जानवर को मारना अंतिम विकल्प होना चाहिए। हमें ये पता ही नहीं चलता कि जिसे आदमखोर कह कर मारा गया है वो वही गुलदार है या नहीं। इसके लिए डीएनए जांच की जरूरत होगी। जानवर के मल से, उसके सलाइवा से उसका डीएनए पता चला सकता है।

पिथौरागढ़ में आदमखोर घोषित गुलदार को मारने वाले 50 वर्षीय शिकारी जॉय हुकिल का ये 34वां शिकार था। वे कहते हैं कि प्रॉब्लम एनिमल को हटा देना ही ठीक है। वर्ष 2007 से शिकार कर रहे जॉय अपने अनुमान से बताते हैं कि राज्य में इस समय कम से कम सात से आठ हजार गुलदार होंगे, इससे ज्यादा भी हो सकते हैं।

ये कैसे पता चलेगा कि जिस जानवर का शिकार किया वो हमलावर ही था। जॉय कहते हैं कि हम पग मार्ग, व्यवहार, टूटे नाखुन, ढलती उम्र जैसे लक्षण और अपने अऩुभव से आदमखोर जानवर को चिन्हित करते हैं। वो कहते हैं कि गुलदार हमारे जानवर ले जाता है तो हमें उतना दुख नहीं होता। लेकिन इंसान को ले जाता है तो सब्र का बांध टूट जाता है।

चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन राजीव भरतरी कहते हैं कि उन्होंने पिथौरागढ़ के गुलदार को मारने के आदेश जारी किए थे और पौड़ी-बागेश्वर में ट्रैंकुलाइज़ करने के आदेश थे। वे टिहरी का उदाहरण देते हैं, जहां पहले मानव-वन्यजीव संघर्ष बहुत तेज़ था। लेकिन टिहरी में गांव के लोगों को साथ लेकर वन्यजीवों के हमले से निपटने के लिए रैपिड रिस्पॉन्स टीम बनायी गई। टीम को जरूरी उपकरण दिये गए।

ये तय किया गया कि घर और शौचालय के आसपास झाड़ियां न हों। रोशनी की पूरी व्यवस्था हो। लोग घर से अकेले न जाएं। मवेशियों को सुरक्षित तरीके से रखें। इसके साथ ही वहां स्वयं सेवी संस्थाओं की भी मदद ली गई। चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन के मुताबिक मुताबिक टिहरी में पिछले चार वर्षों में वन्यजीवों के हमले में बहुत गिरावट आई है। पौड़ी में भी ऐसी टीम गठित की गई। लेकिन वहां अच्छे नतीजे नहीं मिले।

राज्य में वन्यजीव संघर्ष में दो-तिहाई मौतें गुलदार के हमले में होती हैं। इसलिए वन विभाग ने लिव विद लैपर्ड अभियान शुरू किया है। राजीव भरतरी कहते हैं कि इसमें हम ये भी देखेंगे कि गांव के लोग लैपर्ड के खतरे से बचने के लिए अपनाए जा रहे तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं या नहीं। ऐसा करने वाले गांवों को प्रमाणित किया जाएगा। इसके अलावा जर्मनी की संस्था जीआईज़ेड के साथ राजाजी टाइगर रिजर्व से जुड़े हरिद्वार, नरेंद्र नगर, देहरादून, लैंसडौन और पौड़ी-गढ़वाल में मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए कार्य किया जा रहा है।

चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन का कहना है कि हमारे पास गुलदारों की संख्या या उनके निवास को लेकर स्पष्ट तस्वीर नहीं है। गुलदार के हमले में कितने लोग मारे गए, इसके पुष्ट आंकड़े भी नहीं है। इससे जुड़ी रिपोर्ट तैयार की जा रही है।

70 फीसदी वन क्षेत्र वाले उत्तराखंड में गुलदार समेत अन्य वन्यजीवों के साथ यदि लोगों को रहना सीखना है तो इसके लिए वन विभाग को प्रशिक्षण भी देना ही होगा। जैसा कि खुद चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन कहते हैं कि स्कूलों में हर बच्चे को जंगली जानवरों के हमले से बचना सिखाया जाए। गांव-गांव में लोगों को प्रशिक्षण दिया जाए। लगातार लोगों से बातचीत की जाए। इसके लिए वन विभाग स्टाफ को स्टाफ की कमी की समस्या से निपटना होगा।