उत्तराखंड वन विभाग ने पहली बार किसी भालू को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए हैं, क्योंकि यह भालू इंसानों पर जानलेवा हमला कर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन हमलों के लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार हो सकता है, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग ने भालुओं के प्राकृतिक शीतनिद्रा चक्र में हस्तक्षेप किया है। उत्तराखंड में पिछले तीन महीनों में भालुओं ने 71 हमले किए हैं, जिनमें अलग-अलग जगहों में छह लोगों और 60 पशुओं की मौत हुई है।
पौड़ी जिले के थलीसैंण ब्लॉक के पैठाणी तो भालू के हमले का हॉट स्पॉट बना हुआ है। यहां अब तक 40 मवेशियों को भालू ने मार डाला है। दो ग्रामीणों को भी घायल कर गया है। पूरा इलाका एक तरह से कर्फ्यू की स्थिति में जी रहा है। जिस कारण इतिहास में पहली बार उत्तराखंड वन विभाग ने भालू को आदमखोर घोषित कर दिया है। भालू को मारने के लिए हथियारबंद वन कर्मी तैनात किए गए हैं, जबकि उसे पकड़ने के लिए पिंजरे लगाए गए हैं। पैठाणी के अलावा रुद्रप्रयाग जिले के जखोली ब्लाक के धारकुड़ी गांव में घास लेने जंगल गईं महिलाओं के समूह पर भालू ने हमला कर सात महिलाओं को घायल कर दिया। गोपेश्वर, नैनीताल, पिथौरागढ़, भवाली जैसे कस्बों के आसपास अचानक भालू नजर आने लगे हैं।
पौड़ी के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर अभिमन्यु सिंह के अनुसार पैठाणी में भालू के आतंक काे देखते हुए इसे एलीमनेट करने का आदेश चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन की ओर से हुए हैं। हमें यह 14 नवंबर तक करना था, पर डेडलाइन में भालू को शूट नहीं किया जा सका। क्योंकि हमें वहां लगाए गए कैमरा ट्रैप में एक से ज्यादा बेयर नजर आए हैं। इससे हमलावर भालू की पहचान करने में परेशानी पेश आ रही है, पर भालू को ट्रंकुलाइज करके पकड़ने के लिए टीम काम कर रही है।
माना जा रहा है कि भालू को गोली मारने के आदेश का यह पूरे देश का अकेला मामला है। वन्यजीव जीवविज्ञानी यादवेंद्रदेव झाला ने डाउन टू अर्थ को बताया, “मेरी जानकारी के अनुसार, भारत में भालुओं के लिए ‘देखते ही गोली मारने’ के आदेश पहले कभी नहीं दिए गए हैं। इसलिए उत्तराखंड में यह घटनाक्रम बिल्कुल अनोखा है।”
क्यों आक्रमण कर रहे हैं भालू
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक डॉ. एस. सत्यकुमार भालू के बढ़ते हमलों का कारण तापमान में आ रहे बदलाव को भी मानते हैं। उनके अनुसार, एशियाटिक ब्लैक बेयर कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, नेपाल से लेकर अरुणाचल तक में पाया जाता है। अब हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी कम हो रही है, जिससे ठंड भी कम पड़ रही है। जिस कारण ठंडे इलाकों में रहने वाले भालू का हाइबरनेशन (शीत निद्रा) का समय कम हो गया है।
दरअसल, भालू हाइबरनेशन इसलिए करते हैं ताकि सर्दियों के कठिन मौसम में जब भोजन कम होता है, उस समय वे जीवित रह सकें। इसका मुख्य कारण भोजन से बचना है। पर यही काला एशियाटिक ब्लैक बेयर उत्तराखंड के स्थित राजाजी नेशनल पार्क, कॉर्बेट से लेकर मिजोरम सहित हिमालय के नीचे के गर्म मैदानी जंगलों में भी पाया जाता है। इन गर्म इलाकों में ये भालू हाइबरनेशन में नहीं जाते क्योंकि उन्हें भोजन की कमी नहीं होती।
अब ऊपरी इलाकों में भी ठंड इतनी ज़्यादा नहीं पड़ रही है। भालू को खाना भी आसानी से मिल रहा है, पर यह खाना जंगलों में नहीं, बल्कि इंसानी आबादी के आसपास मिल रहा है। उत्तराखंड में गोपेश्वर, अल्मोड़ा और जोशीमठ के चार से पांच किलोमीटर के दायरे में, जहां कचरा फेंका जाता है, वहां रात में भालू कचरा खाते हुए आसानी से दिख जाते हैं।
दूसरे इलाकों का भी यही हाल है। इसलिए, अब भालू को सर्दियों में खाने की कमी नहीं हो रही है। जहां भोजन की कमी है वहां भालू मवेशियों का शिकार कर रहा है। चूंकि वह इंसानी आबादी के पास है, इसलिए टकराव बढ़ रहा है। कश्मीर में भी भालू एक बड़ी समस्या है। वाइल्ड लाइफ एक्ट में ऐसे प्रावधान हैं कि जब कोई रास्ता न बचे तो जानवर को 'एलिमिनेट' किया जाए। पर उत्तराखंड में यह पहली बार हो रहा है।
बढ़ रही है भालुओं की आबादी
वन्यजीवों के व्यवहार के जानकार जॉय हुकिल बताते हैं कि अचानक बढ़ती इंसान-भालू टकराहट की बड़ी वजह जंगलों में भालूओं की आबादी में आई बढ़ोतरी है। जिस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा। उत्तराखंड में तेंदुए, जंगली सूअर, बाघ और बंदर की तरह इनकी आबादी भी बढ़ रही है। अगर आप पैठाणी के कैमरा-ट्रैप के फुटेज देखो तो वही बात साफ दिखती है। चार से पांच अलग-अलग भालू उसी इलाके में घूमते नजर आ रहे हैं।
सर्दियों से पहले अपना भोजन जमा करने के लिए इतने भालू एक छोटी से जगह पर आ चुके हैं। इसलिए इतने अधिक मवेशियों की मौत हुई है। यही ट्रेंड आपको उत्तराखंड के अन्य हिस्सों में भी नजर आएगा। जहां पर भालू केवल भोजन के लिए ही इंसानी आबादी के करीब आ रहे हैं।
हिमालय की जंगलों में सर्दियों से पहले भालू के खाने लायक भोजन काफी कम हो जाता है। भालू सर्दियों से पहले ज़्यादा से ज़्यादा खाकर शरीर में वसा जमा कर लेते हैं ताकि ठंड के महीनों में जीवित रह सकें। हिमालय के भालू शीत निंद्रा में जाते हैं पर उनकी नींद पोलर भालुओं की तरह लंबी और गहरी नहीं होती।
यही वजह है कि सर्दियों से पहले भालू बेहद सक्रिय और संवेदनशील हो जाते हैं। भालू जिन जानवरों का शिकार करता है, उसे वो ज्यादा से ज्यादा मौके पर ही खाता है। फिर अपनी मांद या गुफा में जाकर उल्टी करते खाया हुआ सारा मांस उगल देते हैं। इस प्रक्रिया के जरिए वो मांस और वसा को स्टोर कर लेता है और उसे सर्दियों में यही खाते हैं। यह भालू का सामान्य व्यवहार होता है।
गांव वाले भी सर्दियों से पहले जंगल से चारा, पत्ते और घास ढो कर लाते हैं। भालूओं को लगता है कि उनका भोजन कोई दूसरा ले जा रहा है। इन हालात में भी भालू इंसानों पर हमले कर रहे हैं। इसलिए समस्या को सिर्फ “खतरनाक भालू” समझने से ज्यादा, इसे संसाधन और जगह की कमी से पैदा हुआ द्वंद समझना ज़रूरी है। साफ बात यह है कि बढ़ती आबादी, घटता खाना और सर्दियों की तैयारी इन सब का मिश्रण वही टकराव पैदा कर रहा है जो अब हम रोज़ देखते हैं।
डीएफओ अभिमन्यु सिंह के अनुसार अध्ययन बताते हैं कि पारंपरिक बेरी-फल और अन्य खाद्य स्रोत घटने से इसका संबंध हो सकता है। सम्भवतः उत्तराखंड में भी यही ट्रेंड दिख रहा है, लेकिन इसे पुख्ता करने के लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है। बांज के जंगलों में मिलने वाला फल, जिसे स्थानीय भाषा में भमोर कहा जाता है, इसे भालू खाते हैं। ये पहले की तुलना में कम हो गया है। जिन इलाकों में हाल के हमले हो रहे हैं वे रिजर्व फॉरेस्ट से सटे हुए हैं और पारंपरिक रूप से भालुओं के वासस्थान रहे हैं यानी भोजन की कमी और आवासीय दबाव दोनों मिलकर टकराव बढ़ा रहे हैं।
दो हजार लोगों पर हमले कर चुका भालू
उत्तराखंड वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 25 सालों में भालू ने 1972 लोगों पर हमला करके उन्हें घायल किया है। 68 लोगों की मौत हुई है। 2022 में भालू के हमले में 57 लोग घायल हुए, एक व्यक्ति की मौत हुई थी। 2023 में लगभग 53 लोग घायल हुए, पर इस साल मौत किसी की नहीं हुई। 2024 में 65 लोगों पर भालू ने हमले किए और तीन लोगों की मौत हुई। 2025 में 71 लोगों पर भालू हमला कर चुका है और 7 लोगों की मौत अब तक हो चुकी है।