अवधेश मलिक
छत्तीसगढ़ के रिहायशी इलाकों में राजानांदगांव इलाके में बाघ देखा गया है। पहले 28 दिसंबर को राजानांदगांव के रिहाइशी इलाके मनगट्टा स्थित वन चेतना केंद्र के पास बाघ को देखा गया। फिर बालोद जिले में देखा गया और अब दुर्ग के अंडा क्षेत्र के अछोटी गांव में बाघ के पैरों के निशान मिले हैं। 3 जनवरी को गांव से करीब आधा किमी दूर खेत में गाय का एक शव मिला। इसकी मौत की वजह बाघ को माना जा रहा है। इससे जहां लोग डरे हुए हैं, वहीं वन विभाग की चिंता यह है कि कहीं लोगों ने बाघ को मार दिया तो राज्य में बाघ की गिनती कम हो जाएगी।
स्थानीय वन अधिकारी एनसी डोंगरे क्षेत्र को पूरी तरह सील कर देने की बात कह रहे हैं। चूंकि अछोटी की दूरी राजधानी रायपुर से काफी कम है, इसलिए बाघ के राजधानी में घुसने की आशंका भी जताई जा रही है। पिछले दिनों एक किसान द्वारा खेत में करंट छोड़ने से हाथी की मौत हो गई थी, इसके बाद से वन विभाग सचेत है कि कहीं लोग बाघ को भी न मार दें। यही वजह है कि मुख्य वन रक्षक शालिनी रैना, डिप्टी रेंजर सलीम उल्ला खान, विक्रम ठाकुर समेत तमाम बड़े अधिकारी ट्रैंकुलाईजर गन के साथ कैंप करने में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं। राजनांदगांव डीएफओ बीके सिंह है बताते हैं कि वे और उनका विभाग लगातार स्थिति पर नजर बनाए हुए है।
दरअसल प्रोजेक्ट टाईगर के तहत छत्तीसगढ़ में तीन टाईगर रिजर्व पार्कों की स्थापना की गई अचानकमार, इंद्रावती एवं उदंती-सीतानदी। वर्ष 2006 बाघों की गणना रिपोर्ट आयी तो यहां पर बाघों की संख्या 26 थी। इनमें से सर्वाधिक बाघ अचानकमार में मिलने का दावा किया गया। वर्ष 2010 के टाईगर सेन्सस में भी इनकी संख्या 26 ही रहीं और फिर 2014 में इनकी संख्या बढ़कर 46 हो गई। इस दौरान कुछेक बाघों की मौत की खबरें आयी। वर्ष 2019 में टाईगर सेन्सस 2018 की रिपोर्ट प्रधानमंत्री मोदी ने जारी किया तो छत्तीसगढ़ के आंकड़े हैरान व परेशान करने वाले थे। बाघों की संख्या 46 से सीधे घटकर 19 हो गई थी। वो भी तब जब राज्य सरकार के आंकड़े बताते हैं कि बाघों के संरक्षण पर वर्ष 2015-16 में 4.75 करोड़ रूपये, वर्ष 2016-17 में 10.63 करोड़ रूपये, 2017-18 में 11.97 करोड़, 2018-19 में 7 करोड़ रूपया से अधिक खर्च किये। अगर सीधे-सीध हिसाब लगाया जाए तो एक-एक बाघ पर इन चार वर्षों में पौन करोड़ रूपया प्रति वर्ष का खर्च बैठता है।