वन्य जीव एवं जैव विविधता

लुप्त होती जा रही प्रजातियां को बचा सकते हैं संरक्षित क्षेत्र

क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के नेतृत्व वाली शोध टीम ने खुलासा किया है कि कई लुप्तप्राय स्तनपायी प्रजातियां संरक्षित क्षेत्रों पर निर्भर हैं। संरक्षित क्षेत्रों के बिना ये प्रजातियां गायब हो जाएंगी

Dayanidhi

संरक्षित क्षेत्र जैव विविधता संरक्षण के लिए आवश्यक हैं। यह क्षेत्र लुप्तप्राय होती जा रही प्रजातियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। संरक्षण पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बनाए रखने में मदद करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार संरक्षित क्षेत्र दुनिया के भूमि क्षेत्र का लगभग 15.4 फीसदी और वैश्विक महासागर क्षेत्र का 3.4 फीसदी है। संरक्षित निवास स्थान प्रजातियों के नुकसान को कम करने में मदद करते हैं।

क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के नेतृत्व वाली शोध टीम ने खुलासा किया है कि कई लुप्तप्राय स्तनपायी प्रजातियां संरक्षित क्षेत्रों पर निर्भर हैं। संरक्षित क्षेत्रों के बिना ये प्रजातियां गायब हो जाएंगी।

वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी और यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वींसलैंड (यूक्यू) के प्रोफेसर जेम्स वाटसन ने कहा कि संरक्षित क्षेत्रों की सफलता के बावजूद, संरक्षण करने के उपकरण के रूप में उनकी लोकप्रियता कम होने लगी है।

वाटसन ने कहा 1970 के दशक के बाद से, दुनिया भर में संरक्षित क्षेत्रों के नेटवर्क चार गुना बढ़े हैं। इनमें से कुछ संरक्षित क्षेत्र वन्यजीव आबादी को बचाने और यहां तक कि बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

हालांकि लुप्तप्राय होने वाली प्रजातियों को बनाए रखने में वैश्विक संरक्षित क्षेत्र की संपत्ति की भूमिका के बारे में चर्चा बढ़ रही है। हमारे शोध ने जो स्पष्ट रूप से दिखाया है संरक्षित क्षेत्र, जब अच्छी तरह से वित्त पोषित होते हैं और अच्छी तरह से इनकी निगरानी की जाती है, तो खतरे वाली प्रजातियों को बचाया जा सकता है। इन संरक्षित क्षेत्रों में हमने जिन 80 प्रतिशत स्तनपायी प्रजातियों की निगरानी की है। उन्होंने पिछले 50 वर्षों में कम से कम संरक्षित क्षेत्रों में विस्तार (कवरेज) को दोगुना कर दिया है।

वैज्ञानिकों ने मौजूदा 237 खतरे वाली प्रजातियों की तुलना 1970 के दशक के सीमाओं में हुए परिवर्तन को मापा, फिर उन्हें संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के साथ मिलाया हैं।

प्रोफेसर वॉटसन ने कहा इसका एक अच्छा उदाहरण यह है कि एक से अधिक सींग वाले गैंडे (राइनोसेरोस यूनिकॉर्निस), जिनकी संख्या अब संरक्षित क्षेत्र में 80 फीसदी है। उनकी संख्या अन्य जगहों पर कम हो गई है। पिछले 50 वर्षों में प्रजातियों को अपने विस्तार के 99 फीसदी से अधिक सीमा का नुकसान हुआ है। अब शेष 87 प्रतिशत पशु केवल दो संरक्षित क्षेत्रों में रहते हैं - भारत में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और नेपाल में चितवन राष्ट्रीय उद्यान। यह शोध कंजर्वेशन लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

प्रोफेसर वॉटसन ने कहा कि स्तनधारी संरक्षित क्षेत्रों में पीछे हट रहे हैं और दुनिया की जैव विविधता की रक्षा के लिए संरक्षित क्षेत्र पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि संरक्षित क्षेत्रों के बिना बाघ और पहाड़ी गोरिल्ला जैसी अद्भुत प्रजातियां गुम हो जाएंगी।

यह स्पष्ट रूप से दिखता है कि विलुप्त होने के संकट को समाप्त करने के लिए, हमें बेहतर वित्त पोषित और अधिक संरक्षित क्षेत्रों की आवश्यकता है। इन्हें सरकारों और अन्य भूमि प्रबंधकों द्वारा अच्छी तरह से समर्थित और प्रबंधित होना चाहिए। साथ ही, हमें उन प्रयासों को पुरस्कृत करने की आवश्यकता है जो संरक्षित क्षेत्र की सीमाओं से अलग दूसरे क्षेत्रों में वन्यजीव आबादी के पुन: विस्तार और पुनर्स्थापन को सुनिश्चित करते हैं। हमें पृथ्वी के शेष अखंड पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए, जिसमें प्रमुख संरक्षित क्षेत्र हों।