एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि 2012 से 2019 के बीच गधों की संख्या में 61.2 फीसदी की कमी आई है। जहां 2012 की गई पशुधन गणना में इनकी कुल संख्या 3.2 लाख थी वो 2019 की गणना में घटकर 1.2 लाख रह गई थी। यानी पिछले आठ वर्षों में इनकी संख्या में 2 लाख की कमी आई है।
यह जानकारी ब्रुक इंडिया (बीआई) द्वारा जारी रिपोर्ट 'द हिडन हाईड' में सामने आई है, जिसका उद्देश्य देश में गधों की खाल के व्यापार का पता लगाना था। गौरतलब है कि ब्रुक इंडिया, अंतराष्ट्रीय स्तर पर गधे, घोड़ों और खच्चरों की भलाई के लिए काम कर रहे संगठन की भारतीय इकाई है।
रिपोर्ट के मुताबिक इन आठ वर्षों में जहां महाराष्ट्र में 39.7 फीसदी की कमी दर्ज की गई है, वहीं उत्तरप्रदेश में यह कमी 71.7 फीसदी दर्ज की गई है। इसी तरह राजस्थान में भी 71 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। गौरतलब है कि जहां 2012 की गणना में राजस्थान में मौजूद गधों की संख्या देश में सबसे ज्यादा करीब 81,000 दर्ज की गई थी वो 2019 में घटकर केवल 23,000 रह गई थी।
इसी तरह देश के अन्य राज्यों में भी इनकी संख्या में भारी कमी देखी गई है। इस दौरान गुजरात में मौजूद गधों की आबादी में 70.9 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं आंध्रप्रदेश में 53.2 फीसदी और बिहार में भी 47.3 फीसदी की कमी आई है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि देश में सिर्फ गधों की आबादी में कमी आई है। इस दौरान घोड़ों, टट्टू और खच्चरों की आबादी में भी कमी दर्ज की गई है। रिपोर्ट के अनुसार 2019 की गणना में घोड़ों और टट्टूओं की कुल संख्या में 45.6 फीसदी की गिरावट आई है। इसी तरह खच्चरों की संख्या में भी 57 फीसदी से ज्यादा की कमी दर्ज की गई है। देखा जाए तो 2012 में जहां घोड़ों और टट्टूओं की कुल आबादी 6.2 लाख थी वो 2019 की गणना में घटकर 3.4 लाख रह गई थी।
देश में क्यों घट रही है गधों की आबादी
रिपोर्ट के अनुसार देश में घटती गधों की संख्या के लिए तेजी से होता मशीनीकरण जिम्मेवार है। आमतौर पर देशों में गधों को ईंट भट्टों और अन्य कामों में सामान ढोने के लिए पाला जाता है। पर जैसे-जैसे मशीने आ रहीं हैं उनकी जरुरत घटती जा रही है। यही नहीं देश में जिस तरह से गधों की जगह खच्चरों का उपयोग बढ़ रहा है।
इसी तरह इनकी ब्रीडिंग को लेकर जो सरकारी नीतियां हैं, वो भी कहीं हद तक इनकी घटती आबादी के लिए जिम्मेवार है। इसी तरह जो समुदाय इन गधों को अपने काम के लिए पाला करते थे, उनकी नई पीढ़ियां अब इस काम को नहीं करना चाहती। वो भी इनकी घटती आबादी की एक वजह है।
एक बात जो सबसे ज्यादा हैरान करने वाली है वो इन जीवों का इनकी खाल के लिए होता अवैध शिकार है। जो कहीं न कहीं इनकी घटती आबादी के लिए जिम्मेवार है। पिछले कुछ वर्षों में चीन में गधों की मांग काफी बढ़ गई है। जहां इन्हें इनकी त्वचा से मिलने वाले एक जिलेटिन के लिए मारा जा रहा है। इस जिलेटिन को 'इजियाओ' कहते हैं। चीन में इसका उपयोग पारम्परिक दवाओं से लेकर सौंदर्य प्रसाधनों के लिए किए जाता है।
चीन में बढ़ती 'इजियाओ' की मांग का असर पूरी दुनिया में गधों पर पड़ा है। अनुमान है कि इसकी बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए हर साल 48 लाख गधों की खाल की जरुरत है। इस मांग का असर चीन में भी गधों की आबादी पर पड़ रहा है, जो 1999 में 1.1 करोड़ से घटकर 2019 में 26 लाख पर पहुंच गई है।
क्या यह मांग भारत में भी गधों की आबादी पर भी असर डाल रही है। इसे समझने के लिए ब्रूक इंडिया ने देश के छह राज्यों में स्थिति का जायजा लेने के लिए फील्ड सर्वेक्षण किया था।
नहीं किया जा सकता गधों की खाल और मीट के अवैध निर्यात से इंकार
अध्ययन के अनुसार नेपाल से जुड़ी सीमा पर जिस तरह से इन गधों की तस्करी की जाती है साथ ही इनके व्यापार के लिए मेले आयोजित किए जाते हैं उन्हें देखते हुए इनकी अवैध हत्या से इंकार नहीं किया जा सकता। पता चला है कि जिन्दा गधों से लेकर इनकी खाल और मीट का अवैध निर्यात आसान रास्तों की मदद से सीमापार किया जा रहा है।
इस बारे में गधों के पालन और व्यापार से जुड़े व्यापारियों ने दावा किया है कि उन्हें गधों के अवैध खरीद-फरोख्त और भेजे जाने की जानकारी है। उन्हें इस बात का पूरा यकीन है कि इन गधों का उपयोग सामान ढोने और परिवहन के लिए नहीं किया जाएगा।
रिपोर्ट में एक स्थानीय व्यापारी राम बाबू जाधव का हवाला देते हुए बताया गया है कि कुछ साल पहले चीन के एक व्यक्ति ने जाधव से हर महीने 200 गधों को खरीदने के लिए संपर्क किया था। महाराष्ट्र के एक स्थानीय व्यक्ति के माध्यम से संपर्क करने वाले इस चीनी नागरिक को केवल गधों की खाल चाहिए थी।
रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि आंध्र प्रदेश के एलुरु, गुडीवाड़ा, मछलीपट्टनम, बापटला, चेरुकुपल्ली, मंगलागिरी, गुंटूर और चिरल में गधों को मारा जा रहा है।
पता चला है कि नेपाल से जुड़ी सीमा पर जिस इन गधों की तस्करी की जाती है, साथ ही देश के अलग-अलग राज्यों में इनके व्यापार के लिए मेले आयोजित किए जाते हैं। इन सब जानकारियों को देखते हुए लगता है कि देश में गधों का उपयोग बोझ ढोने के अलावा भी अन्य चीजों के लिए किया जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार जो सबूत और जानकारी सामने आई है उन्हें देखते हुए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में गधों को अवैध रूप से मारा जा रहा है। साथ ही जिन्दा गधों से लेकर उनकी खाल और मीट का अवैध निर्यात आसान रास्तों की मदद से सीमापार किया जा रहा है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) 2011 के मुताबिक गधे को 'खाद्य पशु' के रूप में पंजीकृत नहीं किया गया है, इसलिए खाने के लिए इसे मारना देश में अवैध है।
हालांकि अभी भी कई सवालों के उत्तर जानने बाकी है। जैसे जो गधे अवैध तरीके से नेपाल ले जाए जा रहे हैं वहां उन्हें कौन खरीदता है और उनका क्या किया जाता है। इसी तरह अपंग और काम लायक न रहने वाले गधों को भारत में कौन खरीदना चाहता है। इंडिया मार्ट मार्किट पर जो गधों की खाल बेची जा रही है, वो कहां से आ रही है। आंध्र प्रदेश में मारे गए गधों की खाल कहां पैक की जाती है और महाराष्ट्र में किस कारण से चोरी किए जा रहे हैं गधे और उन्हें कहां ले जाया जा रहा है। इस सभी सवालों के जवाब जानने के लिए अभी और जानकारियां जुटानी होंगी।