वन्य जीव एवं जैव विविधता

विलुप्त होने वाले हैं धरती पर अहम भूमिका निभाने वाले सबसे अनोखे पक्षी:अध्ययन

अध्ययन में 99 फीसदी सभी जीवित पक्षी प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे और उनके शारीरिक विशेषताओं जैसे चोंच के आकार और पंख की लंबाई का विश्लेषण किया गया।

Dayanidhi

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि धरती के अनोखे लक्षणों वाली पक्षी की प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। ये प्रजातियां पर्यावरण में अहम भूमिका निभाती हैं, जिसमें बीजों को फैलाने, परागण और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का शिकार आदि शामिल हैं। इनके गयाब होने से पारिस्थितिक तंत्र के कामकाज पर गंभीर असर पड़ सकता है। 

लंदन के इंपीरियल कॉलेज के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में 99 फीसदी सभी जीवित पक्षी प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे, उनके शारीरिक विशेषताओं जैसे चोंच के आकार और पंख की लंबाई का विश्लेषण किया गया। जिससे यह अपनी तरह का अब तक का सबसे व्यापक अध्ययन बन गया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि सिम्युलेटेड परिदृश्यों में जिसमें सभी खतरे वाली और खतरे के निकट वाली पक्षी प्रजातियां विलुप्त हो गईं, पक्षियों के बीच शारीरिक या आकर की विविधता में उन परिदृश्यों की तुलना में काफी अधिक कमी होगी जहां विलुप्त होने का यह क्रम अनियमित था।

पक्षी की प्रजातियां जो शारीरिक रूप से अनोखे और खतरे में हैं, उनमें क्रिसमस फ्रिगेटबर्ड (फ़्रेगाटा एंड्रयूसी) शामिल हैं, जो केवल क्रिसमस द्वीप पर घोंसला बनाती हैं और ब्रिसल-थिघेड कर्ल्यू (न्यूमेनियस ताहितीन्सिस), जो हर साल अलास्का में दक्षिण प्रशांत द्वीपों में अपने प्रजनन के लिए पलायन करती हैं।

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता जैरोम अली ने कहा अध्ययन से पता चलता है कि विलुप्त होने से पक्षियों की अनोखी प्रजातियों का एक बड़ा हिस्सा कम हो जाएगा। इन अनोखी प्रजातियों को खोने का मतलब होगा पर्यावरण में इनके द्वारा निभाई जाने वाली अहम भूमिकाओं का नुकसान, जो वे पारिस्थितिक तंत्र में निभाते हैं।

उन्होंने कहा अगर हम खतरे वाली प्रजातियों की रक्षा करने और विलुप्त होने से बचाने के लिए कार्रवाई नहीं करते हैं, तो पारिस्थितिक तंत्र का कामकाज नाटकीय रूप से प्रभावित हो जाएगा

अध्ययनकर्ताओं ने जीवित पक्षियों और संग्रहालय के नमूनों से एकत्र किए गए मापों के एक डेटासेट का उपयोग किया, जिसमें कुल 9943 पक्षी प्रजातियां थीं। इनकी माप में चोंच के आकार, पंख, पूंछ और पैरों की लंबाई जैसे शारीरिक लक्षण शामिल थे।

प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में प्रत्येक प्रजाति की वर्तमान खतरे की स्थिति के आधार पर, शोधकर्ताओं ने रूपात्मक आंकड़ों को विलुप्त होने के जोखिम के साथ जोड़ा। इसके बाद उन्होंने सिमुलेशन चलाया कि क्या होगा यदि सबसे अधिक खतरे वाले पक्षी विलुप्त हो जाएं।

हालांकि अध्ययन में उपयोग किए गए डेटासेट यह दिखाने में सक्षम थे कि सबसे अनोखे पक्षियों को भी लाल सूची में खतरे के रूप में वर्गीकृत किया गया था, यह दिखाने में असमर्थ था कि विलुप्त होने के जोखिम के लिए पक्षियों में अनोखा क्या है।

जारोम अली ने कहा, "एक संभावना यह है कि अत्यधिक विशिष्ट जीव बदलते परिवेश के अनुकूल होने में कम सक्षम हैं, ऐसे में मानव प्रभाव सबसे असामान्य पारिस्थितिक भूमिकाओं वाली प्रजातियों को सीधे तौर पर खतरे में डाल सकते हैं। उन्होंने अनोखे लक्षणों और विलुप्त होने के जोखिम के बीच संबंध को गहराई से समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता जताई है। यह अध्ययन जर्नल फंक्शनल इकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।