वन्य जीव एवं जैव विविधता

छत्तीसगढ़ के वनों में आग बेकाबू, वन कर्मचारी हड़ताल पर, कैसे बचेगा जंगल

Avdhesh Mallick

वन आच्छादित छत्तीसगढ़ में बढ़ती गर्मी और लगातार लग रहे आग के कारण स्थिति भयावह हो गई है। वन कर्मचारी संघ के आह्वान पर कर्मचारी 21 मार्च से प्रदेश स्तरीय हड़ताल पर हैं, जिसने इस आग में घी का काम किया है। 

भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक चालू सीजन में प्रदेश में 10 हजार 536 से अधिक जगहों पर आग लगी है। आग लगने से जंगली जानवरों की मौत भी हो रही है।

कोरबा के कोरकोमा के जंगल में 25 मार्च के करीब एक चीतल का झुलसा हुआ शव मिला था। बताया जा रहा है जंगल में लगे आग के कारण झुलसने से चीतल की मौत हो गई। कोरबा के मड़वारानी के ईलाके में 15 दिनों में यह दूसरी घटना है।

वहीं, अचानकमार इलाके के एक तेंदुआ का वीडिओ वायरल हुआ है, जिसमें तेंदुआ को रिहाइशी इलाके की ओर जाते देखा गया है। 

सामान्य तौर पर जंगलों में आग लगने का सीजन 16 फरवरी से 15 जून तक हर साल घटित होती है। आग लगने के कुछ कारण  मानव जन्य तो कुछ प्राकृतिक बताए जाते हैं।

जानकार बताते हैं कि गर्मी की शुरुआत होने पर महुआ के वृक्षों से इसके फल गिरने शुरू हो जाते हैं। उसे उठाने के लिए ग्रामीण इन पेड़ों के नीचे आग लगाकर उस जंगल को साफ करते है। जो कई बार पूरे जंगल में फैल जाती है। 

हालांकि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में वन अधिकार पर कार्य करने वाले अनुभव शोरी कहते हैं कि केवल ग्रामीणों पर आरोप मढ़ने से कोई  समाधान नहीं होने वाला। वनों के संरक्षण की जिम्मेवारी वन विभाग के पास है, जबकि आदिवासी तो वन अधिकार पट्टा की मांग करते हैं, ताकि वे वन क्षेत्र की देखभाल कर सकें। 

शोरी बताते हैं कि दक्षिण छत्तीसगढ़ में बीजापुर, बस्तर, कांकेर, सुकमा, दंतेवाड़ा तक के जंगलों में आग लगी हुई है। जहां ग्रामीण अपने स्तर पर आग बुझाने का कार्य कर रहे हैं। बस्तर के माचकोट में हमारे साथी कार्यकर्ता आग बुझाने का काम कर रहे हैं। 

कासा संस्था के प्रोग्राम अफिसर रजत चौधरी कहते हैं कि वनों को बचाना है तो समुदायों को इसके साथ जोड़ना होगा। मात्र वन विभाग के भरोसे तो वन नहीं बचेगा। 

रजत आगे कहते हैं कि वन कर्मियों का हड़ताल अगर लंबा खिंचा तो स्थिति भयावह हो सकती है। क्योंकि हमारे वन विभाग के पास ऑस्ट्रेलिया या अमेरिका जैसे विकसित देशों की तरह न उन्नत तकनीक है न प्रचुर मात्रा में संसाधन।

जंगलों में आग लगने की घटनाओं के लिए मौसम बड़ा जिम्मेवार माना जा रहा है। पर्यावरणविद प्रो. शम्स परवेज कहते हैं कि वर्ष 2006 से प्रदेश का तापमान में वृद्धि और हवा में मौजूद नमी में कमी आ रही है। पिछले 15 वर्षों में छत्तीसगढ़ में बड़े ही बुरी तरीके से कोयले को जलाया गया है। जिसके कारण यहां के वातावरण में कार्बन कंटेट (मात्रा) अपने उच्चतम स्तर पर चला गया है।

हवा में कार्बन के अधिकता से ये जो तटीय क्षेत्रों से जो हवा आती है उसका नमी को यह सोख लेता है और मौसम शुष्क हो जाता है। दूसरा, कार्बन रेडिएशन को भी सोखता है, इससे गर्मी बढ़ती है। यहां पर जो कोल आधारित उद्योग व फैक्ट्रियां खुली उसमें पर्वावरण मानकों को धज्जी उड़ाते हुए आउटडेटेड तकनीक का इस्तेमाल किया गया । हम लोगों ने इसपर कई शोध परक रिपोर्ट पेश की लेकिन सरकारों ने अनसुना किया।

रायपुर के मौसम विज्ञान केंद्र के मुताबिक, इसबार की गर्मी पिछले 10 वर्षों का रिकार्ड तोड़ देगी। फिलहाल बिलासपुर रायपुर जैसे जगहों में तापक्रम 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक का आंकड़ा छू रहा है और अगर पिछले 22 वर्षों का रिकार्ड देखा जाए तो प्रदेश का सालाना तापक्रम 33 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।

2021 में प्रदेश में दर्ज की गई औसत बारिश अक्टूबर तक 1140 मिलीमीटर के तुलना में 1100 तक रही। सीस्टेप नामक संस्था ने एक शोध रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि 2021-50 के मध्य प्रदेश और  छत्तीसगढ का औसत तापक्रम में 1 से 2 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि होने और 2030 तक तेज वर्षा में भारी वृद्धि की बात कही है। रिपोर्ट ने चेताया है कि यह स्थिति पर्यावरण, वन, वन्यजीव, पेड़-पौधे आदि के लिए चिंताजनक हो सकते हैं।