फोटो : विकीमीडिया कॉमन्स, गंगीय डॉल्फिन  
वन्य जीव एवं जैव विविधता

जल्द आएगा विलुप्त होती डॉल्फिन का वास्तविक आकलन, 8000 किलोमीटर में हुआ सर्वे  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2020 को 'प्रोजेक्ट डॉल्फिन' लांच किया था। इस सर्वे के आधार पर ही नदी डॉल्फिन और समुद्री डॉल्फिन दोनों को संरक्षण किए जाने का गहन रोडमैप तैयार किया जाना है

Vivek Mishra

बहुत जल्द ही गंगा और सिंधु नदी में विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी राष्ट्रीय जलीय जीव गंगेटिक और इंडस डॉल्फिन की पहली बार वैज्ञानिक तौर पर वास्तविक संख्या हमें पता चल जाएगी। यह दुनिया में डॉल्फिन का आकलन करने वाला पहला सर्वे होगा। इसे ही डॉल्फिन का बेसलाइन सर्वे माना जाएगा। करीब 8000 किलोमीटर नदी क्षेत्र में डॉल्फिन की गिनती की गई है। नदी डॉल्फिन एक स्वस्थ नदी का सूचक हैं और नदी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद जरूरी है। हालांकि, इनकी लगातार कम होती संख्या और अवैध शिकार ने इन्हें विलुप्ति के कगार पर ला दिया है।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव और संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों ने सर्वे पूरा करने संबंधी जानकारी डाउन टू अर्थ को दी। इस सर्वे में पर्यावरण मंत्रालय के साथ भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूडब्ल्यूआई) ने नदियों में डॉल्फिन की मौजूदगी और उनकी संख्या संबंधी काम में सहयोग किया है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब के वन विभागों से भी इस काम में मदद ली गई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2020 को 'प्रोजेक्ट डॉल्फिन' लांच किया था। इस सर्वे के आधार पर ही नदी डॉल्फिन और समुद्री डॉल्फिन दोनों को संरक्षण किए जाने का गहन रोडमैप तैयार किया जाना है। साथ ही डॉल्फिन के हॉटस्पॉट पर पूरे साल गहन साइट निगरानी भी की जानी है। 2009 में इसे राष्ट्रीय जलीय जीव और असम राज्य का राजकीय जलीय जीव घोषित किया गया था।

यमुना व अन्य नदियों में विलुप्ति

इस सर्वे से पहले फील्ड गाइड के लिए जारी “मॉनिटरिंग गंगेस एंड इंडस रिवर डॉल्फिन्स, एसोसिएटेड एक्वेटिक फॉना एंड हैबिटेट” में बताया गया है कि भारत की गंगा और ब्रह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों में पाई जाने वाली डॉल्फिन की संख्या लगातार कम हो रही है। एक सदी में इनकी संख्या में 50 से 60 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। लगातार प्रदूषित होती नदियां और डॉल्फिन के खत्म होते पर्यावास व अवैध शिकार ने इन्हें विलुप्ति के कगार पर ला दिया है।

फील्ड गाइड के मुताबिक नदियों में प्रवाह में कमी और तेल के लिए अवैध शिकार के कारण डॉल्फिन की बढ़ती मौतों के कारण हमने यमुना के कुछ हिस्सों और केन, बेतवा और हाल ही में बराक नदी में प्रजातियों को स्थानीय रूप से विलुप्त होते देखा है। संरक्षित क्षेत्रों में नदी डॉल्फिन की पूरी रेंज का 10 फीसदी से भी कम हिस्सा है। वहीं, गंगा और सिंधु नदी की डॉल्फिन के लिए यह समस्या और भी बढ़ जाती है क्योंकि वे बहुत कम समय में सतह पर आती हैं, जिससे दृश्य अवलोकन अत्यधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

अनुमानित 2644 डॉल्फिन

“मॉनिटरिंग गंगेस एंड इंडस रिवर डॉल्फिन्स, एसोसिएटेड एक्वेटिक फॉना एंड हैबिटेट” के मुताबिक, गंगा नदी बेसिन और उसकी सहायक नदियों में गंगा नदी डॉल्फिन की हालिया अनुमानित संख्या 2644 है और ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों में 987 है, जो 19वीं सदी के बाद से कम से कम 50-65 फीसदी की कमी दर्शाता है। इस बीच सिंधु नदी डॉल्फिन की भारत में 6-8 डॉल्फिन की आबादी है, जिसमें से अधिकांश आबादी  करीब 1816 पाकिस्तान में है। भारत में सिंधु डॉल्फिन केवल पंजाब में ब्यास नदी के एक छोटे से हिस्से में पाई जाती हैं।

सर्वोच्च प्राथमिकता

फील्ड गाइड के मुताबिक नदी डॉल्फिन को भारत में भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची I में सूचीबद्ध किया गया है। इसके अलावा यह कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एंडेंगर्ड स्पीशीज ऑफ वाइल्ड फॉन्ना ऐंड फ्लोरा (सीआईटीईएस) के परिशिष्ट I  में भी सूचीबद्ध हैं। सीआईटीईएस में वही प्रजातियां सूचीबद्ध होती हैं जिनके विलुप्त होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है, और उनके संरक्षण को सर्वाधिक प्राथमिकता पर रखा जाता है। इसके अलावा इन्हें सीएमएस कॉप के परिशिष्ट II में भी सूचीबद्ध किया गया है। इसमें सूचीबद्ध प्रजातियों को उनके अस्तित्व के साथ असंगत तरीके से व्यापार करने से बचाना होता है।

इसके अलावा सिंधु नदी की डॉल्फिन को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है, क्योंकि इसके वितरण क्षेत्र में 80 फीसदी की गिरावट आई है और बांधों के कारण इसका आवास बुरी तरह से खंडित हो गया है और जल बहाव के मोड़ के कारण यह समाप्त हो गया है।

प्रोजेक्ट डॉल्फिन लांच करते हुए यह स्वीकार किया गया है कि देश में डॉल्फिन के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए उनकी जनसंख्या प्रवृत्तियों की नियमित निगरानी करना अत्यंत जरूरी है। क्योंकि डॉल्फिन की वृद्धि दर बहुत धीमी है। क्योंकि हर 2-3 साल में एक बच्चा पैदा होता है। इसलिए प्राकृतिक और मानवजनित खतरे के बीच इसकी सतत निगरानी बेहद जरूरी है।