वन्य जीव एवं जैव विविधता

पेसा का उल्लंघन है स्टेचू ऑफ यूनिटी के क्षेत्र को नियंत्रित करने वाला अधिनियम

स्टेचू ऑफ यूनिटी अधिनियम राज्य सरकार को क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्यों के लिए एक पर्यटन प्राधिकरण स्थापित करने का अधिकार देता है

Aditya Gujarathi

स्टेचू ऑफ यूनिटी क्षेत्र विकास और पर्यटन शासन अधिनियम, 2019 (एसओयू) गुजरात के नर्मदा जिले के केवडिया और आसपास क्षेत्रों को नियंत्रित करने के लिए लाया गया है यह अधिनियम कठोर प्रावधानों से भरा हुआ है जो एकपक्षीय तरीके से लिखे हुए हैं। यह सिर्फ संविधान का नहीं, बल्कि पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 (पेसा) का भी उल्लंघन है।   

इस लेख में एसओयू के प्रावधानों को पेसा और भारत के संविधान के संबंध में विश्लेषण किया जाएगा और ग्राम सभाओं द्वारा नई कानूनी रणनीति क्या हो सकती है। इसका विश्लेषण करने का प्रयास किया जाएगा।

एसओयू अधिनियम राज्य सरकार को क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्यों के लिए बुनियादी ढांचे के विकास और नियोजन के लिए एक पर्यटन प्राधिकरण स्थापित करने का अधिकार देता है। अधिनियम में विभिन्न प्रावधान पेसा अधिनियम और गुजरात पेसा नियमों के तहत गारंटीकृत संसाधनों के प्रबंधन के संबंध में आदिवासीयों की स्वायत्तता को छीन सकते हैं। 

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्टेचू ऑफ यूनिटी के आसपास के इलाके को एक शहरी क्षेत्र में रूपांतरण करने को अधिनियम की धारा 10 रेखांकित करता हैयह प्रावधान कहता है कि गुजरात नगर नियोजन और शहरी विकास अधिनियम, 1976 के प्रावधान पर्यटन क्षेत्र पर लागू होंगे।

इसके लावा, धारा 31 (1) में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 243Q के अनुसार राज्य सरकार पर्यटन विकास क्षेत्र को द्योगिक टाउनशिप में बदल सकती है और इसे अधिसूचित क्षेत्र घोषित कर सकती है। धारा 31 (2) में कहा गया है कि यदि विकास क्षेत्र को अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया जाए तो गुजरात नगरपालिका अधिनियम, 1963 के प्रावधान लागू होंगे।।

पूरा नर्मदा जिला एक अनुसूची V क्षेत्र है, जिसमें पेसा अधिनियम और 2017 के गुजरात पेसा नियम लागू होते हैं।

SoU अधिनियम के ये प्रावधान प्रथम दृष्टिय असंवैधानिक हैं। संविधान का अनुच्छेद 243-ZC निस्संदेह रूप से यह कहता है कि संविधान का भाग IX-A जो नगर पालिकाओं के बारे में बात करता है, वह तब तक अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा जब तक कि संसद ऐसे किसी कानून को पारित नहीं करती। इसलिए, धारा 31 (1) और (2), संवैधानिकता की कसौटी पर विफल हो जाते हैं।

पेसा लागू करने में संसद की विधायी क्षमता का परीक्षण, 2000 में गुजरात उच्च न्यायालय ने पटेल वक़्तभाई पंजाबी बनाम गुजरात राज्य में किया था और कहा था कि अनुच्छेद 243-M(4)(b)) के कारण, केवल संसद के पास अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत सम्बन्धी क़ानून बनाने की शक्ति है।

अनुच्छेद 243-ZC और अनुच्छेद 243M(4)(b) एक समान प्रावधान है। इसलिए, राज्य सरकार के पास अनुसूची V क्षेत्र में एक ग्रामीण क्षेत्र में गुजरात नगरपालिका अधिनियम का विस्तार करने की शक्ति नहीं है। 

स्पष्ट असंवैधानिकता इस कानून का एकमात्र मुद्दा नहीं है। कानून में ऐसे विपरीत प्रावधान साफ़ दीखते है जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में नहीं रखते हैं, और स्थानीय आबादी के पारंपरिक ज्ञान और शासन प्रणालि और उनकी स्वायत्तता की उपेक्षा करते हैंधारा 27 (1) में कहा गया है कि निर्धारित प्राधिकार किसी भी पूर्व सूचना दिए बिना किसी भी "न्यूसंस" (बाधा)  को रोक सकता है, यदि उनकी राय में ऐसा कुछ भी क्षेत्र में पर्यटन की क्षमता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है

चूंकि, निर्धारित प्राधिकरण अर्ध-न्यायिक कार्यों से संपन्न है, इसलिए प्रक्रिया में पूर्व सूचना और एक सुनवाई शामिल करना अनिवार्य है। लेकिन प्रक्रिया में इसका समावेश नहीं किया गया है यह एकपक्षीय व्यवहार सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों के खिलाफ है। अधिनियम की धारा 27 (2) नोटिस जारी करने का उल्लेख करती है, लेकिन प्राधिकरण द्वारा कार्रवाई किए जाने के बाद और वह किसी भी तरह की  सुनवाई का उल्लेख नहीं करती।   

शब्द "पर्यटन की क्षमता को नुकसान या प्रभावित करना" न केवल अस्पष्ट हैं, बल्कि प्राधिकरण को एकपक्षीय शक्तियां देते हैं, बिना प्रथम रूप से किसी नोटिस जारी करने के दायित्व के।  यह प्राकृतिक न्याय के स्थापित और अविभाज्य सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है।

संभावित कानूनी रणनीतियां

पेसा अधिनियम की धारा 4 (a) में कहा गया है कि कोई भी राज्य कानून आदिवासियों के सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं और सामुदायिक संसाधनों के पारंपरिक प्रबंधन प्रथाओं के साथ असंगत नहीं होगा। यह प्रकृति में निर्देशिका नहीं है, बल्कि अनिवार्य है।

इस प्रावधान को प्रभावी करते हुए, गुजरात पेसा नियम 17 में कहा गया है कि राज्य के कानूनों को सामुदायिक संसाधनों के रीति-रिवाजों, सामाजिक, धार्मिक और पारंपरिक प्रबंधन प्रथाओं के अनुरूप होना चाहिए। 

नियम 17(1) में कहा गया है कि ग्राम सभा एक प्रस्ताव पारित कर सकती है यदि कोई भी राज्य कानून उनके परंपरागत रीती, सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं और सामुदायिक संसाधनों के पारंपरिक प्रबंधन प्रथाओं या किसी भी विषय वस्तु के अनुरूप नहीं है।  यह प्रस्ताव जिला विकास अधिकारी को भेजा जा सकता है, जो इसे राज्य सरकार और राज्यपाल को भेजने के लिए बाध्य है। नियम 17 (3) राज्य सरकार को इस तरह के प्रस्ताव पर आवश्यक कार्रवाई करने और इसे ग्राम सभा को भेजने के लिए बाध्य करता है। यह एक अनिवार्य प्रावधान है और राज्य सरकार इस तरह के प्रस्ताव का जवाब देने के लिए बाध्य है। यदि प्रभावित क्षेत्रों में ग्राम सभाएं यह कहते हुए प्रस्ताव पारित करती हैं कि स्टैच्यू ऑफ यूनिटी अधिनियम, गुजरात नगर नियोजन और शहरी विकास अधिनियम, 1976 और क्षेत्र में गुजरात नगरपालिका अधिनियम का  क्षेत्रों में लागू होना आदिवासियों के सांस्कृतिक और पारंपरिक अधिकारों  और सामुदायिक संसाधन के प्रबंधन के अधिकार के विपरीत है , और इसे डीडीओ को भेजते करें, तब राज्य सरकार और राज्यपाल एवं राज्य सरकार उत्तर देने के लिए बाध्य होंगे।

 संवैधानिकता और अधिनियम की एकपक्षीय प्रकृति के बारे में तर्क भी इस संकल्प के साथ उजागर किए जा सकते हैं कि कैसे क्षेत्र में पर्यटन के विकास से आदिवासी समुदाय के पारंपरिक और सांस्कृतिक जीवन और वन,  नर्मदा और वह रहने वाले लोगों का उस भूमि से उनके सम्बन्ध, जिसकी PESA रक्षा करने की कोशिश करता है, के खिलाफ है। इस प्रस्ताव में, गुजरात पेसा नियमों के नियम 24 के उल्लंघन का उल्लेख भी किया जा सकता है, जिसमें यह कहा गया है कि पुनर्वास के सभी विवरण ग्राम सभा के समक्ष रखे जाएंगे और प्राधिकरण द्वारा प्रश्नों और उत्तरों के मिनटों को दर्ज किया जाएगा, जो इस अधिग्रहण के मामले में नहीं किया गया है।

यह प्रस्ताव नियम 46 (1) (iv) के तहत ग्राम सभा की असाधारण बैठक में पारित किया जा सकता है, जिसमें ग्राम सभा के कुल सदस्यों के 5% से अधिक या 25 सदस्य पंचायत के सचिव को एक लिखित सूचना दे सकते हैं ( तलाथी)। सचिव सात दिनों के भीतर एक बैठक बुलाने के लिए बाध्य है और यदि वे इसमें विफल रहते हैं, तो सरपंच या उप सरपंच बैठक बुला सकते हैं और प्रभाव के लिए एक प्रस्ताव पारित कर सकते हैं। नियम 58 के अनुसार कानूनी रूप से मान्य होने के लिए इस ग्राम सभा में पंजीकृत मतदाताओं में से कम से कम 10 प्रतिशत या 50 लोगों का, जिन में से एक तिहाई महिलाएं होनी चाहिए  

हालांकि यह अंतिम प्रयास साबित हो सकता है, नियम 17 की अनिवार्य प्रकृति के कारण यह ग्राम सभाओं के लिए अभी भी एक विकल्प है। शायद राज्य तब भी इस परियोजना को आगे बढ़ाएगा। हो सकता है, वे संकल्प पर ध्यान नहीं देंगे क्योंकि वे शोषित समुदायों को वैसे भी सुनने की आदत में नहीं हैं; लेकिन इन प्रस्तावों का एक समेकन तैयार होगा, जिसमें राज्य सरकार के कानून, आदिवासी समुदाय के पारंपरिक प्रबंधन और सांस्कृतिक प्रथाओं में कैसे बाधा डालते हैं, और संविधान,  पेसा अधिनियम और गुजरात पेसा नियमों के निहित सिद्धांतों का उल्लंघन करते है इसका विश्लेषण करेगा। यदि भविष्य में ग्राम सभाएं न्यायालय का दरवाजे खटखटाने का विकल्प चुनती हैं, तो ये संकल्प एक महत्वपूर्ण मोड़ बन सकता हैं और राज्य को एसओयू क्षेत्र और साथ ही अन्य अनुसूचित क्षेत्रों में कोई भी कार्रवाई करने से पहले परामर्श को सिद्धांतीय तौर पर महत्त्व देने का प्रभाव डाल सकता है