वन्य जीव एवं जैव विविधता

अनिश्चितता से घिरा 500 से अधिक पशु प्रजातियों का अस्तित्व: अध्ययन

Dayanidhi

एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन उन सभी स्थलीय कशेरुकी प्रजातियों का पहला वैश्विक मूल्यांकन प्रदान कर रहा है जिन्हें अब तक विलुप्त घोषित नहीं किया गया है। इनमें से 500 से अधिक प्रजातियों को "गायब" माना जाता है, जिन्हें 50 से अधिक सालों में किसी ने नहीं देखा।

शोधकर्ताओं ने इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटड स्पीशीज (आईयूसीएन रेड लिस्ट) से 32,802 प्रजातियों की जानकारी की समीक्षा की है। इनमें से 562 प्रजातियों की पहचान गायब होने के रूप में की गई है।

आईयूसीएन की लाल सूची में विलुप्त होने का मतलब "जब किसी प्रजाति को लेकर यह संदेह नहीं है कि उसके आखिरी सदस्य की मृत्यु हो गई है" जिसे सत्यापित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

साइमन फ्रेजर विश्वविद्यालय के जैव विविधता के प्रोफेसर और सह अध्ययनकर्ता अर्ने मूर्स के मुताबिक रेड लिस्ट इन 562 लुप्त प्रजातियों में से 75 को "संभवतः विलुप्त" के रूप में वर्गीकृत करती है।

शोधकर्ताओं ने गौर किया कि जिन प्रजातियों के संरक्षण की स्थिति अनिश्चित है उनका अस्तित्व समस्याग्रस्त हो सकता है, क्योंकि विलुप्त होने का संकट और भी बदतर हो जाता है जिसके कारण और अधिक प्रजातियां गायब हो जाती हैं।

1500 के बाद से कुल 311 स्थलीय कशेरुकी प्रजातियों को विलुप्त घोषित किया गया है, जिसका अर्थ है कि विलुप्त घोषित की गई प्रजातियों की तुलना में 80 फीसदी अधिक प्रजातियां विलुप्त मानी जाती हैं

सरीसृपों की 257 प्रजातियां गायब हो गई हैं, इसके बाद उभयचरों की 137 प्रजातियां, स्तनधारियों की 130 प्रजातियां और पक्षियों की 38 प्रजातियां गायब होने में शामिल हैं।

इन गायब हुए जानवरों में से अधिकांश को आखिरी बार इंडोनेशिया में 69 प्रजातियों, मैक्सिको में 33 प्रजातियों और ब्राजील 29 प्रजातियों जैसे मेगाडाइवर्स देशों में देखा गया था।

हालांकि यह आश्चर्य की बात नहीं है, शोधकर्ताओं के मुताबिक यह संख्या महत्वपूर्ण है। यूके के पिगटन जू के प्रमुख अध्ययनकर्ता टॉम मार्टिन कहते हैं कि तथ्य यह है कि इन विलुप्त प्रजातियों में से अधिकांश मेगाडाइवर्स के उष्णकटिबंधीय देशों में पाए जाते हैं। यह चिंताजनक है, ऐसे देशों में आने वाले दशकों में यहां सबसे अधिक संख्या में विलुप्ति होने के आसार हैं।

अध्ययन के सहायक मूर्स कहते हैं वर्तमान में चल रही विलुप्त होने की दर का सैद्धांतिक अनुमान ठीक हैं, वास्तविक प्रजातियों को बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

शोधकर्ता गैरेथ बेनेट ने कहा कि हमें उम्मीद है कि यह सरल अध्ययन इन गयाब या खोई हुई प्रजातियों को लेकर भविष्य की खोजों में मदद करेगा।

अध्ययनकर्ताओं का सुझाव है कि भविष्य के सर्वेक्षण के प्रयास पहले से पहचाने गए "हॉटस्पॉट" पर केंद्रित होने चाहिए। खासकर ऐसी जगहें जहां कई विशेष प्रजातियों के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा है। इस तरह के हॉटस्पॉट में निर्धारित फील्ड वर्क की जरूरत होती है।

साथ ही गायब हुई प्रजातियों को फिर से खोजने के लिए या संदेह को दूर करने के लिए अधिक धन की आवश्यकता होगी, जिससे पता चल जाएगा कि एक विशेष गायब हुई प्रजाति वास्तव में अभी भी मौजूद है। यह अध्ययन एनिमल कंजर्वेशन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।