वन्य जीव एवं जैव विविधता

भारत के संरक्षित क्षेत्रों में भी जहरीली दवाओं से सुरक्षित नहीं गिद्ध, वैज्ञानिकों ने किया खुलासा

Himanshu Nitnaware, Lalit Maurya

भारत में गिद्धों को संरक्षित क्षेत्रों के बाहर ही नहीं भीतर भी मवेशियों के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली दर्द निवारक दवा डाइक्लोफेनैक से अभी भी काफी ज्यादा खतरा है। गौरतलब है कि इस दवा को 90 और 2000 के दशक की शुरूआत में दक्षिण एशिया में मवेशियों के इलाज के लिए प्रतिबंधित कर दिया था।

इसी तरह भारत ने भी 2006 में जानवरों के इलाज के लिए डाइक्लोफेनैक के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया था। इस प्रतिबन्ध पर 2008 में गजट जारी कर सरकार ने आधिकारिक तौर पर मुहर लगा दी थी।

हालांकि इस बारे में बेंगलुरु के नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज-टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (एनसीबीएस-टीआईएफआर), कर्नाटक वल्चर कंजर्वेशन ट्रस्ट, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज, और ह्यूम सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड वाइल्डलाइफ बायोलॉजी से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा एक नया अध्ययन किया गया है, जो इस धारणा को चुनौती देता है कि संरक्षित क्षेत्रों में जंगली जानवरों के शवों को खाने वाले गिद्धों को डाइक्लोफेनैक से खतरा नहीं है और वो उसकी वजह से होने वाली विषाक्तता से सुरक्षित हैं। अध्ययन के नतीजे इस महीने जर्नल बायोलॉजिकल कंजर्वेशन में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के संरक्षित और गैर-संरक्षित दोनों क्षेत्रों गिद्धों के घोसलों और बसेरों के आस पास से इनके मल के 642 नमूने एकत्र किए थे।

इन नमूनों का डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड यानी डीएनए विश्लेषण करके गिद्धों के आहार का अध्ययन किया गया था। 2018 से 2022 के बीच एकत्र किए गए इन नमूनों से गिद्ध प्रजातियों और उनके खाने की आदतों की पहचान करने में मदद मिली। इसमें से 419 नमूनों की मदद से गिद्धों की प्रजातियों और उनके आहार के पैटर्न को समझने में मदद मिली थी।

अपने शोध में, वैज्ञानिकों ने पाया है कि कई गिद्धों के मल के नमूनों में गाय और भैंस के डीएनए मौजूद थे। शोधकर्ताओं ने यह भी देखा है कि इन पालतू मवेशियों की आनुवंशिक सामग्री संरक्षित क्षेत्रों के भीतर और निकट से एकत्र किए गए नमूनों में भी मौजूद थी, जहां पक्षी भोजन करते हैं।

दर्द निवारक दवाओं की थोड़ी खुराक भी गिद्धों के लिए हो सकती है घातक

वैज्ञानिकों का सुझाव है कि इन निष्कर्षों के पीछे की वजह संरक्षित क्षेत्रों में बड़ी संख्या में मौजूद पशुधन और खुले में घूमने वाले मवेशी हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, यह गिद्धों की व्यापक चारागाह रेंज के कारण भी हो सकता है, जो अक्सर पड़ोसी देशों तक फैली हुई है।

वैज्ञानिकों ने चेताया है कि इन दर्द निवारक दवाओं की थोड़ी खुराक भी प्रकृति के इन सफाईकर्मियों में गुर्दे की विफलता का कारण बन सकती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि एक जहरीला मृत जानवर भी कई गिद्धों को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि यह गिद्ध अक्सर बड़े समूहों में भोजन करते हैं।

डाइक्लोफेनैक के अलावा, भारत सरकार ने केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनैक के उपयोग को भी अगस्त 2023 में प्रतिबंधित कर दिया था। हालांकि इनका अभी भी इंसानों के उपयोग के लिए दवाओं का उत्पादन किया जा रहा है।

गिद्ध के संरक्षण के लिए काम कर रहे समूहों ने नॉन-स्टेरॉयडल एंटी इंफ्लैमेटरी दवा निमेसुलाइड पर भी प्रतिबन्ध लगाने की मांग की थी, क्योंकि यह दवा अपनी उच्च विषाक्तता के कारण गिद्धों के लिए भी खतरा है।

अंतरसरकारी संस्था बर्ड लाइफ इंटरनेशनल की ओर से कराई गई गिद्धों की गणना के अनुसार, 2003 में देश में गिद्धों की कुल आबादी 40,000 से अधिक थी, जो 2015 में घटकर 18,645 पर सिमट गई। डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक डाइक्लोफेनैक का केवल इंसानों के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई है, उसके बावजूद पशुओं के इलाज में उसका दुरुपयोग किया जा रहा है।