वन्य जीव एवं जैव विविधता

संरक्षण मिलने के बाद और उपेक्षित हुआ राज्य पशु ऊंट

राजस्थान में ऊंटों को संरक्षण प्रदान करने के लिए पिछली सरकार के समय ऊंट को राज्य पशु का दर्जा दिया गया था

Sandhya jha

राजस्थान में राज्य पशु ऊंट दुर्दशा के शिकार हैं। हाल ही में बीकानेर के कोलायत तहसील के गोकुल पंचायत में छिला चौराहे पर इसकी एक बानगी देखी गई। यहां करीब 10 दिन पहले एक ट्रक ने ऊंट को टक्कर मार दी जिससे वह बुरी तरह घायल हो गया। हादसे के बाद ऊंट करीब हफ्ते भर खेतों में पड़ा रहा। इस दौरान उस तक कोई सरकारी मदद नहीं पहुंची।  

गोकुल गांव के निवासी भैरू सिंह ने सबसे पहले घायल ऊंट 26 अगस्त को सड़क से लगभग आधा किलोमीटर दूर धौरो के बीच पड़ा हुआ देखा। उनके अनुसार, ऊंट का एक्सीडेंट एक-दो दिन पहले ही हो गया था। उसकी टांग पूरी तरह टूट चुकी है और अभी ऊंट के जख्मों में सड़न पैदा हो चुकी है। 31 अगस्त को भैरू सिंह और गोकुल गांव की अन्य सहयोगियों के द्वारा इस ऊंट को राजूवास ले जाया गया। डॉक्टरों का कहना है कि ऊंट का पैर सड़ चुका है और उसे काटना पड़ेगा। ऊंटों की ऐसी उपेक्षा पहली बार नहीं हुई है।

राजस्थान में ऊंटों को संरक्षण प्रदान करने के लिए पिछली सरकार के समय 30 जून 2014 को ऊंट को राज्य पशु का दर्जा दिया गया था। यह कदम राज्य में ऊंटों की कम होती संख्या की जांच करने के लिए उठाया गया था। विधानसभा में कानून पारित कर ऊंटों को किसी भी तरह से मारने या इन्हें राजस्थान से बाहर ले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। कानून में यहां तक प्रतिबंध लगाया गया था कि ऊंट को कोई गंभीर या लाइलाज बीमारी हो जाए तो वह भले ही बीमारी से मर जाए, लेकिन डॉक्टर भी उसे नहीं मार सकते थे।  

प्रतिबंध से संरक्षण कम, नुकसान ज्यादा हुआ

पशुपालन क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रतिबंध से ऊंटों का संरक्षण होने के बजाय उन्हें नुकसान ज्यादा हुआ है। इसका कारण यह है कि पहले ऊंट के बीमार होने या बूढ़ा होने पर उसे बेचना आसान था। उसे राज्य से बाहर भी भेजा जा सकता था। ऊंट का चमड़ा अच्छी कीमत देता था। अब यह सब संभव नहीं है। ऐसे में जब ऊंट बूढ़ा या बीमार हो जाता है वह ऊंटपालक के लिए बड़ा बोझ बन जाता है। यही कारण है कि ऊंटपालक अब ऊंटों के प्रजनन और उनकी देखभाल में ज्यादा रुचि नहीं लेते हैं और उन्हें खुले में घुमाने के लिए छोर दिया जाता जिस कारण ये आय दिन दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं।

उपाय क्या हो सकता है

प्रदेश में इस कानून में बदलाव किया जाना चाहिए। इस बारे में ऊंटपालकों और पशु पालकों तथा पशु चिकित्सकों से सुझाव मांगे जाने चाहिए। ऊंट के मारने पर तो प्रतिबंध रहे, लेकिन यदि वह किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हो जाता है तो उसे चिकित्सकीय पद्धति से मारने की इजाजत देनी चाहिए। इसके अलावा ऊंट को राज्य से बाहर ले जाने पर लगे प्रतिबंध में भी कुछ छूट देना चाहिए।