वन्य जीव एवं जैव विविधता

दुनिया की 16 हजार से अधिक प्रजातियों की आबादी घटी, औद्योगीकरण भी है जिम्मेवार

दुनिया भर में जीवों की करीब आधी प्रजातियों की आबादी में गिरावट आ रही है। वहीं केवल तीन फीसदी प्रजातियां ऐसी हैं जिनमें वृद्धि दर्ज की गई है

Lalit Maurya

आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया भर में जीवों की करीब आधी प्रजातियों की आबादी में गिरावट आ रही है। वहीं केवल तीन फीसदी प्रजातियां ऐसी हैं जिनमें वृद्धि दर्ज की गई है। यह जानकारी जीवों की 71,000 से ज्यादा प्रजातियों पर किए नए अध्ययन में सामने आई है। जिनमें स्तनधारियों से लेकर पक्षी, उभयचर, सरीसृप, मछलियां और कीड़ें सभी शामिल थे।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े क्वीन्स यूनिवर्सिटी बेलफास्ट के शोधकर्ताओं का कहना है कि जीवों की यह प्रजातियां हमारी सोच से कहीं ज्यादा तेजी से विलुप्त हो रही हैं। उनका कहना है कि यह निष्कर्ष एक "कठोर चेतावनी" है, क्योंकि इंसानों की बढ़ती अभिलाषा औद्योगीकरण के रूप में वैश्विक जैव विविधता का बड़ी तेजी से विनाश कर रही है, उनके नुकसान की यह दर पहले की तुलना में काफी अधिक खतरनाक है।

इस अध्ययन के नतीजे जर्नल बायोलॉजिकल रिव्यु में प्रकाशित हुए हैं।

रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके अनुसार जीवों की 48.5 फीसदी प्रजातियों की आबादी में कमी आ रही है। इन प्रजातियों की कुल संख्या 16,150 है। इनमें पक्षियों की 5412 प्रजातियां, उभयचरों की 3135, मछलियों की 2631 प्रजातियां, स्तनधारियों  की 1885 और कीटों की 1622 प्रजातियां शामिल हैं, जबकि सरीसृपों की भी 1465 प्रजातियों में गिरावट दर्ज की गई है।

इतना ही नहीं रिसर्च के मुताबिक तीन फीसदी से भी कम प्रजातियों की आबादी में ही बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि 49 फीसदी प्रजातियों की आबादी स्थिर बनी हुई है। वहीं 37,809 प्रजातियों की क्या स्थिति है इस बारे में सही तौर पर जानकारी उपलब्ध नहीं है।

अपने साथ अन्य खतरे भी लाएगा जैवविविधता को होता यह नुकसान

दुनिया भर में जीवों की प्रजातियां तेजी से विलुप्त हो रहीं हैं, इस बात की पुष्टि इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने भी की है। आईयूसीएन के मुताबिक पृथ्वी पर 28 फीसदी जीवों का अस्तित्व खतरे में है। मतलब की यदि उनपर अभी ध्यान न दिया गया तो भविष्य में 42,100 से ज्यादा प्रजातियों को हमें दोबारा देखने का मौका नहीं मिलेगा।

इन प्रजातियों में 41 फीसदी उभयचर यानी मेंढक जैसे जीव, 27 फीसदी स्तनधारी, 34 फीसदी शंकुवृक्ष, 13 फीसदी पक्षी, 37 फीसदी शार्क और रे मछलियां, 36 फीसदी कोरल्स, 21 फीसदी सरीसृप, 69 फीसदी साइकैड शामिल हैं।

रिसर्च से पता चला है कि प्रजातियों के विलुप्त होने का जोखिम वास्तविकता में कहीं ज्यादा गंभीर है। शोधकर्ताओं को यह भी पता चला है कि वर्तमान में जो प्रजातियां आईयूसीएन के मुताबिक "सुरक्षित" हैं, उनपर भी विलुप्त होने का जोखिम बढ़ रहा है।

रिसर्च के मुताबिक यदि जीवों के आवास के आधार पर देखें तो स्थलीय जीवों की सबसे ज्यादा प्रजातियों में गिरावट आ रही है। इनकी कुल संख्या करीब 8,319 है। इसके बाद स्थल और साफ पानी दोनों में पाई जाने वाली 3044 प्रजातियों की आबादी घट रही है। इसी तरह साफ पानी की 1,759 और समुद्रों की 863 प्रजातियां इस सूची में शामिल हैं।

विश्लेषण से यह भी पता चला है कि पारिस्थितिकी तंत्र में विलुप्त प्रजातियों की जगह लेने के लिए अन्य नई प्रजातियां विकसित नहीं हो रही हैं। इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता कैथरीन फिन का कहना है कि पृथ्वी पर मौजूद करीब आधी प्रजातियां जिनके बारे में जानकारी उपलब्ध है वर्तमान में उनमें गिरावट आ रही है। उनके मुताबिक स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब जिन प्रजातियों के बारे में यह माना जा रहा था कि उनपर विलुप्ति का खतरा नहीं मंडरा रहा है लेकिन वास्तव में उनमें गिरावट आ रही है।

गौरतलब है कि वैश्विक जैवविविधता में आने वाली गिरावट को आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन के साथ मानवता के लिए सबसे बड़े खतरों के रूप में देखा गया है। जो अपने साथ बीमारियां, खाद्य सुरक्षा में गिरावट जैसे खतरों को भी साथ ला रही है। इतना ही नहीं इसका खामियाजा न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र को उठाना पड़ रहा है।

देखा जाए तो कहीं न कहीं जैवविविधता को बचाने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं वो काफी नहीं हैं। यदि भारत को ही देखें तो देश में केवल छह फीसदी से भी कम हिस्सा संरक्षित है। हालांकि यह तब है जब संरक्षित क्षेत्रों को जैव विविधता की सुरक्षा के लिए सबसे प्रभावी उपकरणों में से एक माना गया है।

पिछले 10 वर्षों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो भारत में संरक्षित क्षेत्रों में केवल 0.1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस रफ्तार से देखें तो जैवविविधता को बचाने के लिए जो 2030 के लिए जो लक्ष्य तय किए गए हैं उनका हासिल करना दूर की कौड़ी नजर आता है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम स्थिति की गंभीरता को समझें और इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों में तेजी लाएं।