वन्य जीव एवं जैव विविधता

खास रिपोर्ट: भारत के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है लैंटाना

अपने व्यापक फैलाव के लिए कुख्यात लैंटाना झाड़ी अपनी प्रवृत्ति बदल रही है और तेजी से भारत के जंगलों में फैल रही है

Shuchita Jha

यह किसी भी प्रजाति के लिए आसान नहीं है कि वह उन मूल प्रजातियों से बेहतर प्रदर्शन करे जो पहले से ही स्थानीय परिवेश के अनुकूल हों। लेकिन, सजावटी झाड़ी लैंटाना (लैंटाना कैमारा) ने आक्रामक फैलाव की कला में महारत हासिल कर ली है और अपने कौशल को लगातार निखार भी रही है।

लैंटाना पहली बार 1800 के दशक की शुरुआत में लैटिन अमेरिका से भारत आई और अब तक यह पूरे देश में फैल चुकी है। जनवरी 2022 में जारी “इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021” में कहा गया है कि 9,793 वर्ग किमी से अधिक, यानी सिक्किम से भी बड़े क्षेत्रफल में लैंटाना का फैलाव है। अकेले लैंटाना का फैलाव आक्रामक रूप से फैलने वाली 28 अन्य प्रजातियों के संयुक्त फैलाव से बस थोड़ा ही कम है।

कई जगहों पर इसने जैव विविधता को भी कब्जे में ले लिया है, जिससे देसी वनस्पतियों को नुकसान हो रहा है। मसलन, 1997 में पश्चिमी घाट रिजर्व में लगभग 96 प्रतिशत देसी वनस्पतियां थीं, जबकि लैंटाना मात्र 4 प्रतिशत में थी। बेंगलुरु स्थित गैर-लाभकारी संस्था अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन ईकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट के अनुसार, 2018 तक देसी वनस्पतियों का क्षेत्रफल 53 प्रतिशत तक सिमट गया था और लैंटाना ने 47 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा कर लिया।

शोधकर्ताओं का कहना है कि इस आक्रामक झाड़ी ने देश के घने जंगलों में घुसपैठ शुरू कर दी है। ग्लोबल ईकोलॉजी एंड कंजर्वेशन नामक पत्रिका में प्रकाशित 2020 के एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत के लगभग 44 प्रतिशत जंगलों पर पहले से ही लैंटाना का आक्रमण हो सकता है।

देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोधकर्ताओं निनाद अविनाश मुंगी, कमर कुरैशी और यादवेंद्रदेव झाला ने “एक्स्पैन्डिंग निचे एंड डीग्रेडिंग फॉरेस्ट: की टु द सक्सेसफुल ग्लोबल इनवेजन ऑफ लैंटाना कैमारा (सेंसू लाटो)” शीर्षक से एक अध्ययन किया था, जिसमें इन लोगों ने 18 राज्यों के 2,07,100 वर्ग किमी का सर्वेक्षण किया। अध्ययन में पाया गया कि इस झाड़ी का फैलाव करीब 86,806 वर्ग किमी में हो चुका है।

स्थानीय आंकड़ों पर आधारित अध्ययन में कहा गया है कि दुनियाभर में लैंटाना अपने आक्रमण के लिए उपयुक्त 11 मिलियन वर्ग किमी के जलवायु क्षेत्र में विस्तार कर सकती है।

बदलता चरित्र

देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं ने पाया है कि लैंटाना जंगलों में पैर पसारने के लिए अपनी विशेषताओं को बदल रहा है। लैंटाना मुख्य रूप से खुले, प्रकाशित वातावरण पर आक्रमण करता है और कम धूप वाले क्षेत्रों से बचता है। फरवरी 2022 में जर्नल प्लांट साइंस टुडे में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि यह घास के मैदानों, खेतों और ग्रामीण और शहरी इलाके जैसे विषम वातावरणों में प्रसार के लिए अनुकूली मॉड्यूलेशन प्रदर्शित करने के लिए भी जाना जाता है। इस पौधे के छोटे तने होते हैं जो रोशनी वाले क्षेत्रों में तीन फीट तक की लंबाई प्राप्त करते हैं। छांव वाले क्षेत्रों में यह और लंबे हो सकते हैं।

अध्ययन में बताया गया है कि जंगलों में, जहां सूरज की रोशनी घने पेड़ों से अवरुद्ध हो जाती है, वहां लैंटाना प्रजातियां लता में बदल जाती हैं और छह मीटर तक लंबी हो जाती हैं।

अध्ययन के प्रमुख लेखक अभिषेक कुमार बताते हैं कि लैंटाना जैसे आक्रामक विदेशी पौधों की प्रजातियों में हाई फेनोटाइपिक प्लास्टिसिटी होती है, जिनमें विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों के संपर्क में आने पर भौतिक लक्षणों को बदलाव लाने की क्षमता है।

उदाहरण के लिए, छाया में उगने वाली लैंटाना प्रजातियां वानस्पतिक प्रसार (एक प्रक्रिया जिसमें पौधे तनों, जड़ों, पत्तियों और अन्य भागों से प्रजनन करते हैं) के माध्यम से प्रजनन करते हैं।

यह उन्हें वन तल में फैलने या पेड़ों के करीब चढ़ने की अनुमति देते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के पर्यावरण अध्ययन विभाग के असोसिएट प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश शर्मा कहते हैं कि अच्छी रोशनी वाले क्षेत्रों में वही पौधा फैलाव के लिए बीजों का उपयोग करता है।

बायोलॉजिकल इनवेजन में प्रकाशित शर्मा के 2018 के अध्ययन “इट टेक्स टू टु टैंगो: वैरिएबल आर्किटेक्चरल स्ट्रैटेजीज बूस्ट इनवेसिव सक्सेस ऑफ लैंटाना कैमारा एल (सेंसू लेटो) इन कान्ट्रेस्टिंग लाइट एनवायरमेंट” (देखें, नए वातावरण में अनुकूलन) में कहा गया है कि बेहतर प्रकाश वाले क्षेत्र के मुकाबले छाया वाले क्षेत्र में लैंटाना के पौधों में नोड्स (तनों की गांठें) और बड़ी पत्तियों के बीच की दूरी अधिक होती है।

मुंगी का कहना है कि संरक्षित क्षेत्रों में लैंटाना का संक्रमण हाल के वर्षों में भारत के वन क्षेत्र में वृद्धि का कारण हो सकता है। वह कहते हैं, “हम मानते हैं कि वन आवरण में वृद्धि को सही ठहराने के लिए रिपोर्ट में देसी वन, वन वृक्षारोपण और आक्रामक प्रजातियों के वर्चस्व वाले जंगलों के बीच के अंतर को उचित तरीके से बांटा नहीं गया है।”

बढ़ता खतरा

शर्मा कहते हैं, “लैंटाना जड़ी-बूटियों सहित कई देसी प्रजातियों की विविधता को रोकता है।” यह पौधा देसी प्रजातियों की तुलना में तेजी से पानी और पोषक तत्वों को ग्रहण करके मिट्टी की उर्वरता को भी कम करता है।

मुंगी का कहना है कि बदलती जलवायु के बीच जैव विविधता को बनाए रखने के लिए देशी प्रजातियों का संरक्षण महत्वपूर्ण है। लैंटाना इस लचीलेपन को कमजोर करता है। मुंगी कहते हैं, “मौसमी शुष्कजंगलों के अंडरस्टोरी (जंगल की मुख्य छतरी के नीचे वनस्पति की एक परत) में लैंटाना का घना आक्रमण जंगल में आग की घटनाओं को बढ़ा रहा है।

प्राकृतिक प्रणालियों में मौसमी आग आम रही है लेकिन यह अंडरस्टोरी घास में अपेक्षाकृत कम जलती है। घासनुमा अंडरस्टोरी और पेड़ों की छांव के बीच लैंटाना के फैलने के कारण आग ऊंचाई में बढ़ती जाती है और लंबे समय तक जलती रहती है।”

मुंगी कहते हैं कि लैंटाना को रोकने के लिए भारत सालाना 18,700 अमेरिकी डॉलर (लगभग 15.5 लाख रुपए) प्रति वर्ग किमी खर्च करता है। उन्होंने कहा कि अगर इसका आक्रमण और विस्तार अनियंत्रित रहा, तो देश को प्रति वर्ष 5.5 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि लैंटाना की बदलती प्रकृति प्रजातियों के प्रबंधन की चुनौती को बढ़ाएगी।

अभी भारत लैंटाना झाड़ियों से छुटकारा पाने के लिए कट रूट-स्टॉक (डंठल) विधि का उपयोग करता है। इस विधि में मुख्य तने को जमीन से 2-3 सेमी नीचे काटने का लक्ष्य होता है।

कुमार कहते हैं, “यह तरीका बहुत सफल नहीं रहा है। पौधे की जड़ प्रणाली के अवशेष मिट्टी में बने रहते हैं और जैसे ही पौधे को अनुकूल परिस्थितियां मिलती हैं, यह पुन: उत्पन्न हो जाता है।” वह कहते हैं कि यह एक महंगी, श्रम साध्य और समय लेने वाली विधि है।

इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एडुकेशन के वैज्ञानिक संजय सिंह, कुमार के विचार का समर्थन करते है। जून 2018 में इंडियन जर्नल ऑफ ट्रॉपिकल बायोडायवर्सिटी में प्रकाशित अपने शोध “बायोलॉजिकल कंट्रोल ऑफ लैंटाना कैमारा थ्रू क्रॉप कॉम्पिटीशन यूजिंग नेटिव स्पेसीज” में उन्होंने 13 मूल प्रजातियों की पहचान की है, जिनमें सहयोगी के रूप में बढ़ने वाले लैंटाना के विकास को रोकने की क्षमता है।

सिंह कहते हैं, “13 में से छह प्रजातियों का लैंटाना के विकास के साथ नकारात्मक संबंध है। जब उनका घनत्व बढ़ा, तो लैंटाना घट गई। ये प्रजाति हैं, कॉमब्रेटम डिकेंड्रम, ओलैक्स स्कैंडेंस, क्रिप्टोलेपिस बुकानैनी, पेटालिडियम बारलेरियोइड्स, हेलिक्टेरेस आइसोरा और कैपेरिस जेलेनिका आदि।

सिंह कहते हैं, “हमने शुरुआती सफलता देखी है, लेकिन शोध अभी भी चल रहा है। विचार यह है कि पहले कट रूट-स्टॉक विधि से लैंटाना को हटाकर प्रतिस्पर्धा को कम किया जाए और फिर देसी घास और पेड़ों के विकास को सुगम बनाया जाए।”

एक बार जब देसी पौधे लैंटाना से आगे निकल जाते हैं, तो वे अन्य देसी प्रजातियों के पनपने के लिए वातावरण बनाते हैं। यह देसी पौधे धीरे-धीरे क्षेत्र की पशु जैव विविधता को ठीक करने में मदद करते हैं और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करते हैं।