हमारे घर-आंगन, खिड़की-दरवाजों पर फुदकने वाली गौरैया एक सामाजिक पक्षी है। घरों में गूंजने वाली इस पक्षी की चहचहाहट हमारा प्रकृति के साथ भी नाता जोड़ती है। यह नन्हा पक्षी मानव आबादी के साथ रहने के लिए खुद को अनुकूलित करता रहा है। लेकिन, मानवों ने खुद को प्रकृति से इतना दूर करना शुरू किया कि गौरैया के लिए अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया। हमारे अप्राकृतिक होने के साथ गौरैया का सामाजिक रहना मुमकिन नहीं रहा। हमारे घरों के आस-पास जो अनार, नींबू, कनेर जैसे पेड़ होते थे, गौरैया उन्हीं पर अपना घोंसला बनाती थी। अब हम ज्यादा से ज्यादा सीमेंट के घर बनाने के चक्कर में पेड़ों के लिए जगह छोड़ते ही नहीं तो फिर यह छोटा पक्षी हमारा पड़ोसी कैसे बन सकता है? कभी हमारे आंगन में भीड़ जुटाकर शोरगुल करने वाली यह नन्ही चिड़िया आज दुनिया में कई जगहों पर दुर्लभ प्रजाति की श्रेणी में आ गई है। इसकी आबादी कम होने का मतलब हमारी आबोहवा का हमारे लिए खतरनाक होना भी है। पर्यावरण को बचाने की शुरुआत हमें अपने घर से ही करनी होगी, गौरैया को फिर से अपनी पड़ोसी बना कर। हम अपने घरों में वैसी जगह और आसपास वैसे पेड़ रहने दें जहां यह पक्षी अपना घोंसला बना सके। गौरेया का बढ़ता घोंसला हमारी सेहतमंद आबोहवा का प्रमाणपत्र होगा। इसी को बनाए रखने के लिए राजस्थान के सिरोही जिले के एक युवा ने पिछले पांच सालों से मुहिम चलाई हुई है। मानव, प्रकृति और गौरैया के इस रिश्ते पर चलने वाली इस मुहिम को जानने के लिए अनिल अश्विनी शर्मा ने ओमप्रकाश कुमावत से बातचीत की
आपने गौरैया का पुनर्वास का काम किस प्रकार से शुरू किया?
हम जिस गौरैया के साथ बड़े हुए अब वह हमारी आंखों से ओझल हो चुकी है। ऐसे में मैं और मेरे साथियों ने ठाना कि अपने घरों के बरामदे, मुंडेर पर गौरेया की वापसी करानी है। गौरैया की चहचहाहट से हमारे घरों के सुबह की शुरुआत हो, इसके लिए हमने सबसे पहले अपने आसपास के घरों को बताया कि हम सभी को अपने घरों में गौरैया के लिए जगह बनानी होगी। ऐसी सुरक्षित जगह जहां गौरैया बिना किसी डर के अपने घोंसले बना सके। हमने लोगों के फेंक दिए गए कचरों में सूखा कचरा अलग कर उससे घोंसला बनाया। गांव-घर के लोगों को घोंसला बनाना सिखाया। अब तक हम पश्चिमी राजस्थान के लगभग पांच जिलों में 3,500 से अधिक इस तरह के घोंसले आम लोगों को उपलब्ध करा चुके हैं। इसका असर भी दिखना शुरू हो गया है। गौरैया घास-फूस व तिनकों को इकट्ठा कर इन घोंसलों में सहेजने लगी है। हमने इन घोंसलों को सुरक्षित स्थानों पर रखवाया ताकि उनके अंडे और बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें। हम सभी जानते हैं कि गौरैया की आबादी में कमी का एक बड़ा कारण यह भी है कि कई बार उनके घोंसले सुरक्षित जगहों पर नहीं होने के कारण कौए जैसे हमलावर पक्षी उनके अंडे तथा चूजों को खा जाते हैं। साथ ही हमने घरों के गमलों या बगीचों में क्रोकस और प्रिमरोज के पौधे भी लगवाए हैं। इसकी वजह यह है कि गौरैया इनके फूलों के पास अधिक दिखाई देती है। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि गौरैया को खाने के लिए कोई ऐसी चीज न दें, जिसमें नमक हो।
गौरैया की संख्या में कितने प्रतिशत कमी आई है?
यदि हम “रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रोटेक्शन आॅफ बर्ड” की मानें तो बीते चार दशकों में जहां दूसरे पक्षियों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई है, वहीं गौरैया की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। यदि हम पूरे भारत का देखें तो लगभग 60 फीसदी गौरैया कम हुई हैं। सिर्फ राजस्थान की बात करें तो यहां भी 20 फीसदी से अधिक कमी आई है। गौरैया की संख्या आंध्र प्रदेश में करीब 80 फीसदी तथा केरल, गुजरात जैसे राज्यों में 20 फीसदी तक कम हो चुकी है। इसके अलावा तटीय क्षेत्रों में इनकी संख्या में 70 से 80 फीसदी तक कमी होने का अनुमान है। केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय का भी मानना है कि देशभर में गौरैया की संख्या में निरंतर कमी आ रही है। अकेले भारत में ही नहीं पश्चिमी देशों में भी इनकी आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।
गौरैया कि कितनी प्रजातियां हैं और सबसे अधिक खतरा किन प्रजातियों को हो रहा है?
दुनियाभर में गौरैया की कुल 26 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से पांच भारत में मिलती हैं, लेकिन अब इनके अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी आॅफ प्रोटेक्शन आॅफ बर्ड्स ने भारत सहित दुनिया के अन्य हिस्सों में भी कई अध्ययनों के आधार पर गौरैया को 2017 में “रेड लिस्ट” में डाला है। “रेड लिस्ट” में उन जीव-जंतुओं या पक्षियों को डाला जाता है, जिन पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा होता है। भारत में गौरैया की स्थिति जानने के लिए बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी ने 2021 में आॅनलाइन सर्वे कराया था। इसमें 7 साल से लेकर 91 साल तक के 5,700 पक्षी प्रेमी शामिल हुए। सर्वे में सामने आया कि बंगलुरू और चेन्नई में गौरैया दिखना बंद हो गई हैं। मुंबई की स्थिति थोड़ी बेहतर बताई गई है।
गौरैया की जनसंख्या पर क्या कभी गणना की गई है?
जी हांं, भारतीय जैव विविधता संरक्षण संस्थान ने 2015 में वृहद स्तर पर गणना की थी। इसके अनुसार, लखनऊ में सिर्फ 5,692 और पंजाब के कुछ इलाकों में लगभग 775 गौरैया देखीं गईं थीं। तिरुवनंतपुरम में तो सिर्फ 29 गौरैया देखी गईं। कन्याकुमारी के स्थानीय एनजीओ “त्रवनकोर नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी” ने शहर के अलग-अलग जगहों पर इनकी संख्या को लेकर 1917 में सर्वेक्षण किया। इसमें पाया गया कि जहां एक साल पहले तक 82 गौरैया दिखती थीं, वहां अब उनकी संख्या घटकर मात्र 23 रह गई है।
गौरेया की आबादी पर आए संकट की प्रमुख वजह क्या है?
हमने राजस्थान में देखा है कि गौरैया ज्यादातर छोटे-छोटे पेड़ों और झाड़ियों में अपने घोंसले बनाना पसंद करती है। पेड़ों में बबूल, नींबू, अमरूद, अनार, मेहंदी, बांस और कनेर आदि शामिल हैं। इन पेड़ों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। जब ये दूसरी जगहों पर घोंसला बनाती हैं इनके बच्चों को बिल्ली, कौए, चील और बाज अपना शिकार बना लेते हैं। पहले लोग अपने घरों के आंगन में इन पक्षियों के लिए दाना और पानी रखते थे। अब उसमें भी कमी आई है। राजस्थान में जलवायु परिवर्तन के कारण कीटों की संख्या खत्म हुई है। जबकि गौरैया का यह सबसे प्रमुख भोज्य पदाथ है।
गौरैया पर्यावरण संतुलन के मामले में किस प्रकार की भूमिका निभाती हैं?
हम सबको ध्यान रखना चाहिए कि गौरैया हमारे अंगना-दुआरे फुदकती और चहकती ही नहीं है बल्कि हमारे आसपास के वातावरण में पर्यावरण को बेहतर बनाने में भी अहम भूमिका निभाती है। गौरैया अपने नवजात बच्चों को अल्फा और कटवर्म नाम के कीड़े खिलाती है। ध्यान रहे कि ये कीड़े फसलों के लिए बेहद खतरनाक माने जाते हैं। ये कीड़े फसलों की पत्तियों को खाकर खत्म कर देते हैं। इसके अलावा, गौरैया बारिश में दिखाई देने वाले कीड़े भी खाती है। इस प्रकार से वह किसानों को मदद तो पहुंचाती ही है साथ ही हमारे आसपास के कीटों को खाकर भी वातावरण को सुरक्षित करती है।
दुनिया में कौन सी जगहें गौरैया का घर हैं?
गौरैया का मूल स्थान एशिया और यूरोप का मध्य क्षेत्र माना जाता है। हालांकि मानव के साथ रहने की आदी यह गौरैया मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ यह विश्व के कई अन्य हिस्सों में भी जैसे दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड में भी पहुंच गई है। इसे एक बुद्धिमान चिड़िया माना जाता है और इसकी यह खासियत होती है कि यह अपने को परिस्थिति के अनुरूप ढालकर अपना घोंसला और भोजन उनके अनुकूल बना लेती है। गौरैया को एक सामाजिक पक्षी माना जाता है। अब इनकी तेजी से घटती आबादी को देखते हुए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने 2002 में इसे लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल कर दिया है।