वन्य जीव एवं जैव विविधता

तो क्या धरती से गायब हो जाएंगे फूल!

फूलों का खिलना परागण करने वाले कीटों के लिए खाना ढूंढने और परागण का चक्र शुरू करने का इशारा है। इस चक्र में रुकावट अनाज की पैदावार पर बुरा असर डालती है

Pallavi Ghosh

फूल हमारी पृथ्वी को कुदरत का दिया खूबसूरत तोहफा है। फूलों के पौधों को एंजियोस्पर्म्स कहा जाता है। यह बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। दुनियाभर में पौधों की लगभग 4 लाख प्रजातियां है जिनमें से 94 फीसदी पौधे फूलों के हैं। चाहे रेगिस्तान हो या पहाड़, फूल दुनिया के हर कोने में पाए जाते हैं। यहां तक कि अंटार्कटिका में भी फूल मिलते हैं। यहां अंटार्कटिक हेयर ग्रास (डेशम्पसिया अंटार्कटिका) और अंटार्कटिक पर्लवर्ट (कोलंबथस क्विटेंसिस) खिलते हैं।

फूल मौसम में बदलाव के बारे में भी बताने का मुख्य साधन हैं। बसंत के मौसम को आमतौर पर रंग-बिरंगे फूलों से जोड़ा जाता है जो सर्दियों के सख्त मौसम के बाद पूरे माहौल को रंगों से भर देते हैं। यही वह समय है, जब मधुमक्खी और तितली जैसे कीट अपने खाने के लिए फूलों के रस का सहारा लेते हैं। इस दौरान फूलों के परागकण इन कीटों के शरीर पर चिपक जाते हैं। इस तरह परागकणों के एक जगह से दूसरी जगह जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है जिसे परागण कहते हैं। फूलों का जीवन बहुत छोटा होता है। ऐसे में परागण वाले जीवों जैसे मधुमक्खियों और तितलियों का सही वक्त पर सही जगह होना बहुत जरूरी है, वरना वे भूखे रह जाएंगे। पौधों और परागण वाले जीवों के बीच यह रिश्ता इंसान समेत सभी प्रजातियों की खाने की जरूरत को पूरा करने के लिए बहुत जरूरी है।

फूल और जलवायु परिवर्तन

जनवरी 2018 में उत्तर भारत के उत्तराखंड में बुरांश का फूल दो-तीन महीने पहले ही खिल गया। हिमालय की गोद में स्थित इस राज्य में इस फूल के खिलने पर उत्सव (फूल सक्रांति) मनाया जाता है जो आमतौर पर बसंत की शुरुआत में आता है। शोधकर्ताओं ने सर्दियों में सामान्य की तुलना में कम ठंड पड़ने को इसका कारण माना है। इसी वर्ष, केरल में बैंगनी नीले रंग के नीलकुरिंजी अथवा कुरिंजी फूल के अचानक नजर आने से वैज्ञानिक चौंकन्ने हो गए। वैज्ञानिक इस बात से परेशान थे कि 12 साल में एक बार खेलने वाला यह खास फूल क्या फिर कभी नहीं खिलेगा। हम इंसानों के लिए फूलों के गायब होने का मतलब है कि हमारा खाना भी गायब हो गया। क्यों? क्योंकि अगर फूल न रहे तो परागण करने वाले कीट जैसे मधुमक्खियां, ततैया और तितलियां फूलों का रस नहीं चूस पाएंगे। पौधों और परागण वाले जीवों का संबंध टूटने से खेती पर बुरा असर पड़ेगा जिससे खाने की कमी हो जाएगी। कुछ अनुमानों के अनुसार दुनियाभर में फसलों की 35 फीसदी प्रजातियां परागण वाले कीट पर निर्भर हैं या उनसे फायदा उठाती हैं। हड्डी वाले परागण जीवों जैसे हमिंग बर्ड और चमगादड़ों की 16 प्रतिशत प्रजातियां तथा परागण कीटों की कम से कम नौ प्रतिशत प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है।

फूल नहीं तो पैसा नहीं

कई तरह का सामान बनाने में फूलों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे कपड़ों के धागे, मसाले, जड़ी बूटी और दवाइयां। ऐसे में फूलों के न रहने से वे उद्योग बंद हो जाएंगे जो फूलों पर आश्रित हैं।