वन्य जीव एवं जैव विविधता

नई विधि से होगी हिम तेंदुओं के तनाव की निगरानी, संरक्षण में मिलेगी मदद

Dayanidhi

बाहरी वातावरण में परिवर्तन के जवाब में आंतरिक वातावरण को ठीक करने के लिए शरीर में हार्मोन स्रावित होते हैं। हार्मोन जानवरों की शारीरिक स्थिति और उनके आसपास के वातावरण से पड़ने वाले असर के बारे में पता लगाने में मदद कर सकते हैं।  

अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसी विधि ईजाद की है जिससे जानवरों में तनाव का पता लगाया जा सकता है। खासकर हिम तेंदुओं में जिन्हें आईयूसीएन की लाल सूची में संकट ग्रस्त के रूप में रखा गया है।

नई विधि की मदद से हिम तेंदुओं में तनाव हार्मोन का तेजी और सटीकता से पता लगाया जा सकेगा। इस प्रणाली में भारी उपकरणों या विशेष ज्ञान की आवश्यकता भी नहीं है। इस उपकरण का उपयोग ऐसे क्षेत्र में किया जा सकता है जहां हिम तेंदुए निवास करते हैं। मल के नमूनों से हार्मोन का इनके निवास पर ही विश्लेषण किया जा सकता है।  

यह जंगली जानवरों में हार्मोन की निगरानी के मौजूदा तरीकों से अलग है, जहां दूसरे तरीकों में हार्मोन निकलने और विश्लेषण के लिए मल के नमूनों को प्रयोगशालाओं में ले जाया जाता है। जबकि इस नई विधि में विशेष रूप से हिमालय जैसे दूरस्थ स्थानों में भी पता लगाया जा सकता है।

अध्ययनकर्ता और क्योटो विश्वविद्यालय के डॉ कोडज़ू किनोशिता ने बताया क्योंकि पारंपरिक हार्मोन निगरानी विधियों के लिए जमे हुए रासायनिक अभिकर्मकों और प्रयोगशाला उपकरणों की आवश्यकता होती है, उन्हें दूरस्थ इलाकों में उपयोग करना लगभग असंभव है।

डॉ किनोशिता द्वारा विकसित नई विधि में इथेनॉल के साथ मिश्रित नमूने को एक डिब्बे में डालकर, हिलाने से हिम तेंदुए के मल से हार्मोन अलग किया जाता है। इम्यूनोक्रोमैटोग्राफी नामक एक प्रक्रिया, जिसका उपयोग गर्भावस्था परीक्षणों में किया जाता है। परीक्षण स्ट्रिप्स का उपयोग करके हार्मोन सांद्रता का पता लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है और एक स्मार्टफोन एप्लिकेशन फिर उनका विश्लेषण करता है।  

जापान में कोहू युकी चिड़ियाघर, असाहिकावा शहर के असाहियामा चिड़ियाघर और नागोया हिगाशियामा चिड़ियाघर और बॉटनिकल गार्डन में रहने वाले हिम तेंदुओं के मल के नमूनों का नई विधि की सटीकता का परीक्षण किया गया। पारंपरिक तरीकों की तुलना में पाया गया कि समान हार्मोन सांद्रता निकाली गई थी और इन सांद्रता में परिवर्तन का भी सटीक रूप से पता लगाया गया था।  

जानवरों में तनाव कम प्रजनन के साथ जुड़ा हो सकता है, इसलिए यह पता लगाना कि वातावरण में जानवरों पर किस तरह का दबाव पड़ता है, यह संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। इस तरह के सरल तरीके, शोधकर्ताओं, रेंजरों और चिड़ियाघर के रखवालों को हिम तेंदुओं की तनाव की स्थिति का अतिशीघ्र और आसानी से आकलन करने में मदद कर सकता है। डॉ. किनोशिता ने कहा इस तरह की विधि पशु कल्याण और संरक्षण योजना के प्रबंधन के लिए बहुत उपयोगी है।

डॉ. किनोशिता ने कहा कि नई तकनीक को चिड़ियाघर में कैद हिम तेंदुओं और अन्य जानवरों पर भी उपयोग किया जा सकता है। इस विधि में विश्लेषण किए गए हार्मोन आम तौर पर प्रजाति-विशिष्ट नहीं होते हैं, इसलिए इस विधि का उपयोग घरेलू, प्रयोगात्मक, चिड़ियाघर और जंगली जानवरों सहित विभिन्न प्रजातियों के आकलन करने के लिए किया जा सकता है।

हिम तेंदुओं को आईयूसीएन की लाल सूची में 'असुरक्षित' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और उन्हें शिकार, पशुओं पर हमलों के बाद जवाबी कार्रवाई और जलवायु परिवर्तन आदि से खतरा है। यह आशंका है कि इन निरंतर दबावों से हिम तेंदुओं में तनाव बढ़ेगा, जिससे उनकी आबादी में और गिरावट आएगी।

हिम तेंदुओं का अध्ययन करना भी बेहद मुश्किल है, मध्य एशिया में वे जिन पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करते हैं, वे बड़ी बिल्लियों को खोजना मुश्किल बनाते हैं और प्रयोगशालाओं तक शोधकर्ताओं की पहुंच को सीमित करते हैं। यह अध्ययन इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित हुआ है।

इस अध्ययन में डॉ. किनोशिता के द्वारा विकसित की गई नई विधि में हिम तेंदुए के मल में इथेनॉल मिलाया जाता है और फिर हार्मोन निकालने के लिए डिब्बे को दो मिनट तक हाथ से हिलाया जाता है। इसके बाद अर्क को इम्यूनो क्रोमैटोग्राफी टेस्ट स्ट्रिप पर गिरा दिया जाता है जो एंटीजन-एंटीबॉडी प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप लाल हो जाता है, जो एड्रेनोकोर्टिकल स्ट्रेस हार्मोन की उपस्थिति का संकेत देता है। रंग की तीव्रता से हार्मोन एकाग्रता को मापने के लिए एक स्मार्टफोन ऐप का उपयोग किया जाता है।

डॉ. किनोशिता ने चेतावनी देते हुए बताया कि यद्यपि इस नवीन पद्धति को अन्य प्रजातियों पर लागू किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक प्रजाति के लिए परीक्षण करने की आवश्यकता होगी। मल में पाए जाने वाले तनाव हार्मोन जानवर के तनाव को सटीक रूप से दर्शाते हैं, क्योंकि ये स्तर प्रजातियों के बीच अलग-अलग होते हैं।

डॉ. किनोशिता ने कहा मैं इसे न केवल जंगली जानवरों पर, बल्कि चिड़ियाघर के जानवरों और पालतू जानवरों पर भी लागू करना चाहूंगा ताकि इन जानवरों के तनाव को स्पष्ट किया जा सके और उनके रहने के वातावरण में सुधार किया जा सके।