वन्य जीव एवं जैव विविधता

उत्तराखंड में विलुप्त हो चुकी उड़न गिलहरी की मौजूदगी के संकेत

उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने राज्य में उड़न गिलहरी की मौजूदगी को लेकर अध्ययन किया

Varsha Singh

जंगल के संसार के नन्हे जीव उड़न गिलहरी के बारे में जानकारी जुटाना आसान नहीं। सिर्फ रात में दिखने वाली ये नन्ही प्राणी वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के शेड्यूल-2 के तहत दर्ज है। यानी धरती पर इनकी कम होती संख्या के चलते इन्हें सुरक्षा की जरूरत है। इनका शिकार या किसी तरह से भी नुकसान पहुंचाना प्रतिबंधित है। अपने पंजों के बीच फर को पैराशूट की तरह इस्तेमाल कर ये गिलहरी 450 मीटर तक ग्लाइड कर सकती है। अपने इसी कमाल की वजह से ये उड़न गिलहरी कही गई।

उड़न गिलहरी का दिखाई देना ही अपने आप में एक खबर होती है। उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने राज्य में उड़न गिलहरी की मौजूदगी को लेकर अध्ययन किया। शोधार्थी ज्योति प्रकाश बताते हैं कि जंगल में इनका घोसला तलाशने में ही 10-12 दिन लग गए। 6-7 दिन लगातार कैमरा ट्रैप लगाए रखने के बाद इनकी कुछ तस्वीरें मिल सकीं। वह बताते हैं कि शिकार होने से बचने के लिए ये उड़न गिलहरी अमूमन पेड़ की छोटी खोखली जगह में अपना घोसला बनाती है। उल्लू, चील या सांप बड़ी खोखली जगह में आसानी से इनका शिकार कर सकते हैं। अध्ययन में ये भी सामने आया कि इस जीव को घोसला बनाने के लिए सुरई का पेड़ ज्यादा पसंद है।   

उड़न गिलहरी को लेकर अक्सर लोग ऐसी प्रतिक्रिया देते हैं कि आखिरी बार शायद दो बरस पहले देखा। ये भी कहा जाता है कि पहले ये ठीकठाक संख्या में दिख जाती थी लेकिन अब बेहद कम दिखाई पड़ती है। एक अध्ययन के मुताबिक विश्व में 15 पीढ़ियों की 40 से अधिक उड़न गिलहरी की प्रजातियां मौजूद हैं। इसमें से तीन उत्तर अमेरिका, दो उत्तरी यूरेशिया और ज्यादातर एशिया और भारत के जंगलों में मिलती है।

उत्तराखंड में उड़न गिलहरी की मौजूदगी पता लगाने के लिए वन अनुसंधान केंद्र ने इस वर्ष फरवरी में सभी 13 फॉरेस्ट डिविजन में अध्ययन शुरू किया। ताकि इनके संरक्षण के लिए नीति बनायी जा सके। उत्तराखंड के जंगलों से अच्छी खबर ये मिली कि वूली (woolly) उड़न गिलहरी की उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क के गंगोत्री रेंज में रिपोर्टिंग हुई है। हालांकि इसकी पुष्टि अभी नहीं हो सकी है। आईयूसीएन की रेड लिस्ट में शामिल वूली गिलहरी 70 वर्ष पहले विलुप्त मानी जाती थी। लेकिन वर्ष 2004 में पाकिस्तान के साई घाटी में ये दिखाई दी। इसके बाद देहरादून वाइल्ड लाइफ़ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों ने भी उत्तरकाशी के भागीरथी घाटी में भी इसकी मौजूदगी की बात कही।

उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र के सर्वेक्षण में राज्य के 13 फॉरेस्ट डिविजन में ये 18 अलग-अलग जगहों पर देखी गईं। ज्यादातर पौड़ी जिले में दिखाई दीं। इसके अलावा कोटद्वार के लैंसडोन फॉरेस्ट डिविजन में 30-45 सेंटीमीटर लंबी इंडियन जाएंट उड़न गिलहरी देखी गई। गले पर सफेद धारियों की वजह से स्थानीय लोग इन्हें पट्टा बाघ कहते हैं।

मसूरी और पौड़ी वन प्रभाग ने अपने क्षेत्र में बहुत सी इंडियन जाएंट उड़न गिलहरी दिखने की पुष्टि की। बागेश्वर के जंगलों में इक्का-दुक्का उड़न गिलहरी दिखने की जानकारी मिली। पिथौरागढ़ के वन कर्मचारियों ने भी धारचुला और तवाघाट में इनके दिखने की पुष्टि की। नरेंद्र नगर फॉरेस्ट डिवीजन में उड़न गिलहरी दिखने की पुष्टि हुई। चकराता वन प्रभाग ने बताया कि उनके क्षेत्र में पिछले चार वर्षों में सिर्फ दो बार उड़न गिलहरी देखी गई। कालागढ़ टाइगर रिजर्व और केदारनाथ वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में ये बेहद कम संख्या में देखी गईं।

चीड़, देवदार, खैर, तून, ओक और शीशम के जंगल इनका निवास स्थान हैं। भूरे, सुनहरे, लाल, स्याह रंगों में देखी गई उड़न गिलहरियों में से ज्यादातर इंडियन जाएंट उड़न गिलहरी थी। इसके अलावा कॉमन उड़न गिलहरी, सफेद पेट वाली उड़न गिलहरी और इंडियन रेड जाएंट गिलहरी भी देखी गई। उत्तरकाशी में स्याह रंग की वूली उड़न गिलहरी देखी गई।

उंचे पेड़ों पर घोसला बनाने वाली ये जीव पूरी तरह शाकाहारी है। जंगल में बीज बिखेरने और पॉलीनेशन में इनकी अहम भूमिका होती है। बीज के उपर की सख्त सतह को ये अपने पंजों से तोड़ देती हैं। जिससे बीज को पनपने का मौका मिलता है। कभी-कभार जादू की तरह दिख जाने वाली इस जीव के बारे में जितनी अधिक जानकारी होगी, इनका संरक्षण उतना ही आसान होगा। उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने इसी मकसद से ये अध्ययन कराया है।