वन्य जीव एवं जैव विविधता

शेरनी: पर्यावरणवाद को बखूबी समझने वाली एक बॉलीवुड फिल्‍म

Rajat Ghai

फिल्‍म पर बात करने से पहले एक सच बताना चाहता हूं। जो आखिरी फिल्‍म मैंने देखी, वो 26 जनवरी, 2017 को रिलीज हुई फिल्‍म रईस थी। उससे बहुत पहले से मेरा फिल्‍म देखना बड़ी हद तक कम हो गया था। लोकप्रिय सिनेमा से मुझे तमाम शि‍कायतें थीं, खासतौर से बॉलीवुड से, जिसको लेकर मुझे लगता था कि यह रूढ़िवाद और लंबे समय से चली आ रही विसं‍गतियों के दोहराव को बढ़ावा दे रहा है। 

अब मुझे लगता है कि शेरनी इसे बदल सकती है। मैं हैरान हूं कि पर्यावरणवाद, जिसे अक्‍सर एक आला विषय माना जाता है और जो मेरी भी आजीविका का साधन है, उसका मुख्‍यधारा सिनेमा में कितना खूबसूरत चित्रण किया गया है। एक वाक्‍य में कहूं तो, इस फिल्‍म ने देश के पर्यावरण संबंधी अधिकारों को एकदम ठीक समझा है। 

शेरनी का निर्देशन अमित मसुर्कर ने किया, जिन्‍होंने इससे पहल न्‍यूटन और सुलेमानी कीड़ा निर्देशित की थीं। ये दोनों ही फिल्‍में मैंने नहीं देखी हैं, लेकिन अब मैं यह जानता हूं कि दोनों ही फिल्‍में उत्‍कृष्‍ट थीं। 

शेरनी कई बेजोड़ कलाकारों से सजी है, जैसे संयमित और अदम्‍य नायिका विद्या विंसेंट के प्रमुख किरदार में विद्या बालन, दिग्‍गज कलाकार शरत सक्‍सेना, विजय राज, ईला अरुण और ब्रिजेंद्र काला, जिनकी मैं खासतौर पर तारीफ करना चाहूंगा, लेकिन बाद में।

इस फिल्‍म का नाम शेरनी एक उपमा है- नरभक्षी शेरनी टी-12 और विद्या विंसेंट के लिए। य‍ह फिल्‍म अवनी या टी-1 नाम की शेरनी के शिकार की असल घटना से प्रेरित है। खबरों के मुताबकि इस शेरनी ने महाराष्‍ट्र के यवतमाल जिले में पंढारकवड़ा-रालेगांव के जंगलों में 2016 से 2018 के बीच 13 लोगों का शिकार करके उन्‍हें अपना ग्रास बनाया था। 

हैदराबाद के नवाब और शिकारी शफ़त अली खान और उनके बेटे असग़र खान ने गोली चलाकर अवनी को मार डाला था, जब वे अवनी को बेहोश करने वाले थे, लेकिन उससे पहले अवनी ने उनपर हमला कर दिया। ऐसा लगता है, फिल्‍म में पिंटू भैया का किरदार, जिसे सक्‍सेना ने निभाया है, शफ़त अली खान पर आधारित है। पिंटू भैया भी शिकारी हैं और अपने हाथों मारे गए शेरों और तेंदुओं की गिनती बढ़ाना चाहते हैं।  

अवनी के दो शावक थे, जिनमें से एक मादा थी, और जिसे टप्‍पा चौकीदार सिदम प्रमिला इस्‍तारी ने बचाया, जो कि बालन के किरदार की प्रेरणा भी कही जा रही हैं। नर शावक को अब तक खोजा नहीं जा सका है। 

अवनी के शिकार के बाद पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसे हत्‍याबताते हुए कई विरोध प्रदर्शन किए। ये मामला अब तक सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इस पूरे घटनाक्रम पर आस्‍था टिकू ने फिल्‍म की पटकथा तैयार की है।  

यह फिल्‍म, मेरे लिए, तीन पहलुओं पर लीक से हटकर खड़ी होती है: भारत में वानिकी और वन्‍यजीवन जैसे पर्यावरण संबंधी मामलों पर इसका बेहद संतुलित पक्ष; वन्‍य सेवा से जुड़ी महिलाओं और पितृसत्‍ता व लैंगिक भेद-भाव से उनके रोजमर्रा के संघर्ष का बेहद प्रभावशाली चित्रण; और कहानी कहने की उत्‍कृष्‍ट कला। 

पहले बात करते हैं पर्यावरणवाद की। मेरे जैसे इंसान, जो धर्मेंद्र और आशा पारेख की शिकार और शशिकपूर-राखी की जानवर और इंसान जैसी फिल्‍मों में दिखाए गए वन और वन्‍यजीवों को देखकर बड़ा हुआ है, उसके लिए शेरनी जैसी फिल्‍म किसी अलग ही जमाने की प्रतीत होगी। 

फिल्‍म का हर सीन बारीकी से तैयार किया गया है। जैसे उदाहरण के तौर पर, वन विभाग का दफ्तर। किसी पिछड़े इलाके का सामान्‍य सरकारी दफ्तर जहां पुरानी फाइलों पर धूल जमी है और जाले लगे हैं। विद्या के भ्रष्‍ट, जाहिल और मसखरे बॉस बंसल का डेस्‍क, जो कांच से ढंका है। सजावट के लिए रखे गए मरे हुए जानवर और कुर्सी के पीछे लगी बंगाल टाइगर की बड़ी सी तस्‍वीर।

यह पुराने समय के भारत की झलक है। जैसे विद्या के साथ काम करने वाले साईं कहते हैं: भारत का वन विभाग अंग्रेजों का तोहफा है। हम अधिकारियों को उनकी तरह काम करना चाहिए। रिवेन्‍यू लाओ और प्रमोशन पाओ।  

लेकिन फिल्‍म के अन्‍य दृश्‍य बताते हैं कि भले ही लोगों के व्‍यवहार में बदलाव न हुआ हो, लेकिन विज्ञान में तो हुआ है। मध्‍यप्रदेश के दूर-दराज इलाके में, जहां विद्या तैनात है, वहां गांववालों के पास अब मोबाइल फोन हैं। फॉरेस्‍ट गार्ड अब कैमरा ट्रैप और अन्‍य आधुनिक इलेक्‍ट्रॉनिक उपकरणों का इस्‍तेमाल करते हैं। और डीएनए सैंपलिंग की भी मदद ली जाती है। 

यह फिल्‍म जंगलों और वन्‍यजीवों से जुड़े कई मसलों पर रोशनी डालती है: इंसानों और वन्‍यजीवों के बीच संघर्ष, मांसाहारी जीवों द्वारा मवेशियों को मारने पर लोगों को मिलने वाला मुआवजा, वृक्षारोपण के नाम पर गांव की साझी जमीन पर सागौन के पेड़ लगवाने का षडयंत्र, वन क्षेत्र में खनन, जंगलों में रहने वालों के अधिकार और सिमटते जा रहे वन्‍यजीवों के प्राकृतिक निवास और गलियारे। 

इसके बाद बारी आती है वन विभाग के कर्मचारियों के उन किरदारों की जिनकी ज्‍यादा बात नहीं होती, खासतौर पर महिलाओं की। स्‍त्री होने के कारण विद्या के किरदार को हर कदम पर अपमान सहना पड़ता है। दूसरे पुरुषों के आगे बंसल उसकी हर बात को खारिज कर देता है; ‘महिला अफसर’ होने के बावजूद ‘संकट की स्थिति’ में मौजूद होने पर पीके उसका मजाक उड़ाता है। विद्या की सास कहती है कि सोने के जेवर ज्‍यादा पहनो और मां बच्‍चा पैदा करने का जोर डालती है। इन सब के बाद भी विद्या खुद को मजबूत बनाए रखती है, शांत, संयमित और जुझारू बनी रहती है।

इस पूरी कहानी को कहने का तरीका इस फिल्‍म का सबसे अच्‍छा हिस्‍सा है। कलाकारों के मंझे हुए अभिनय, शानदार कैमरावर्क (राकेश हरिदास) और पार्श्‍वसंगीत के दम पर, फिल्‍म अपनी गति से आगे बढ़ती है और धीमी शुरुआत के बाद रफ्तार पकड़ लेती है। 

सभी कलाकारों ने बारिकी से अभिनय किया है, लेकिन ब्रिजेंद्र काला द्वारा निभाया गया बंसल का किरदार सबसे उम्‍दा है। वह पतंगे और तितली में फर्क नहीं बता पाता, दफ्तर में ग़लत उर्दू शेर पढ़ता है और दफ्तर की पार्टियों में भद्दे तरीके से नाचता है। वह T12 को पकड़ने के अपने उद्देश्‍य में सफल होने के लिए दफ्तर में यज्ञ कराता है। एक वक्‍त पर तो वह जालों से भरे फाइलरूम में छिपता भी है। 

फिल्‍म में विजय राज जीवविज्ञान के नामी प्रोफेसर और वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले किरदार में है। फिर सक्‍सेना है, जिसकी पसंदीदा लाइन है- मैं शेर की आंखों में देखकर बता सकता हूं कि वह नरभक्षी है या नहीं। 

फिल्‍म के अंतिम दृश्‍य से मैं गंभीर रूप से प्रभावित हुआ। यह दिखाता है कि जितना ज्‍यादा भारत बदलने की कोशिश करता है, उतनी ज्‍यादा चीजें जस की तस रहती हैं। मैं सिर्फ यह उम्‍मीद कर सकता हूं कि यह फिल्‍म भारत के वन प्राधिकरण के लिए आह्वान होगी कि वे अपने काम करने की शैली में सुधार ले आएं। कम से कम हमारी भावी पीढियों के लिए ही सही। 

इस दौरान, मैं दोबारा लोकप्रिय सिनेमा न देखने के अपने विचार पर फिर से विचार करूंगा। 

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शेरनी

कलाकार: विद्या बालन, विजय राज, ब्रिजेंद्र काला, नीरज काबी, मुकुल चड्ढा, शरत सक्‍सेना

निर्देशन: अमित वी मसुर्कर 

अमेजन प्राइम पर देखी जा सकती है

रेटिंग: 4 / 5