वन्य जीव एवं जैव विविधता

भारत में अवैध व्यापार की भेंट चढ़ती शार्कें, 12 वर्षों में 16,000 किलोग्राम फिन्स किए गए जब्त

शार्क के पंखों और अन्य हिस्सों की जब्ती की सबसे ज्यादा करीब 65 फीसदी घटनाएं तमिलनाडु में सामने आई हैं

Lalit Maurya

भारत में शार्कों के किए जा रहे अवैध व्यापार को लेकर एक नई फैक्टशीट जारी की गई है। इस फैक्टशीट के मुताबिक जनवरी 2010 से दिसंबर 2022 के बीच 15,839.5 किलोग्राम शार्क पंख (फिन्स) जब्त किए गए हैं। गौरतलब है कि "नेटेड इन इलीगल वाइल्डलाइफ ट्रेड: शार्क्स ऑफ इंडिया" नामक यह रिपोर्ट वन्यजीवों के संरक्षण के लिए काम कर रहे गैर-सरकारी संगठन वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) और ट्रैफिक द्वारा जारी की गई है।

इस दौरान शार्क के शरीर के हिस्सों की जो जब्ती भारत में की गई, उनमें से 82 फीसदी मामलों में पंख बरामद किए गए। हालांकि इस दौरान बरामदगी की अलग-अलग घटनाओं में 1,600 किलोग्राम उपास्थि (कार्टिलेज) और 2,445 किलोग्राम दांत भी जब्त किए गए।

इस नई फैक्टशीट का मकसद भारत में चल रहे शार्क के अवैध व्यापार के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इस जीव पर मंडराते खतरों और संरक्षण संबंधी चिंताओं को उजागर करना है।

यह भी पता चला है कि शार्क के हिस्सों की जब्ती की सबसे ज्यादा करीब 65 फीसदी घटनाएं तमिलनाडु में सामने आई हैं। इसके बाद कर्नाटक, दिल्ली, गुजरात, केरल और महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्यों में भी इस तरह के मामले सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार जो उत्पाद जब्त किए गए हैं उन्हें सिंगापुर, हांगकांग, श्रीलंका और चीन जैसे देशों को भेजा जा रहा था।

आंकड़ों के अनुसार 24 फीसदी घटनाओं में जब्त किए उत्पाद सिंगापुर को भेजे जा रहे थे। वहीं 12 फीसदी घटनाओं में इन्हें श्रीलंका, छह फीसदी में चीन भेजा जा रहा था। वहीं जब्ती की 41 फीसदी घटनाओं में इन उत्पादों को कहां भेजा जा रहा था उसकी जानकारी नहीं मिल पाई है।

गौरतलब है कि 2010 से 2022 के बीच शार्कों के शरीर के विभिन्न हिस्सों की जब्ती के 17 मामले सामने आए हैं, जिनमें सबसे ज्यादा शार्क पंख जब्त किए गए थे। वहीं इनकी जब्ती की 35 फीसदी घटनाओं में अन्य वन्यजीवों से जुड़े उत्पाद जैसे कोरल्स, समुद्री खीरे, मूंगा, सीपियां, पैंगोलिन स्केल, हाथी के दांत, बाघ के पंजे, साही की खाल, कछुए के खोल आदि भी जब्त किए गए थे।

पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद मायने रखते हैं ये समुद्री शिकारी

रिपोर्ट के अनुसार इनकी बरामदी की सबसे ज्यादा घटनाएं 2019 में दर्ज की गई थी। वहीं 2018 में इनकी सबसे अधिक मात्रा यानी करीब 9,600 किलोग्राम जब्ती की गई थी। ट्रैफिक के भारत स्थित कार्यालय के एसोसिएट निदेशक डॉक्टर मर्विन फर्नांडीस ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि वैश्विक स्तर पर इनका बढ़ता शिकार मुख्य रूप से पंखों और मांस की बढ़ती मांग से प्रेरित है। उनके मुताबिक विशेष रूप से इनके पंखों से "शार्क-फिन सूप" बनाया जाता है, जिसके लिए इनकी बेहद मांग है।

उनके मुताबिक अन्य शार्क उत्पादों की भी अच्छी खासी मांग है। जहां शार्क के मांस का सेवन किया जाता है, त्वचा का उपयोग चमड़े के लिए और लीवर से मिलने वाले तेल 'स्क्वैलीन' का उपयोग सौंदर्य उत्पादों, स्नेहक और विटामिन ए के स्रोत के रूप में किया जाता है। वहीं इनकी उपास्थि (कार्टिलेज) को दवाओं में उपयोग होने वाले कोनड्रोइटिन सल्फेट के लिए निकाला जाता है। वहीं जबड़े और दांतों का उपयोग कलाकृतियां बनाने के लिए किया जाता है।

भारत में बड़े पैमाने पर शार्कों का शिकार किया जाता है। देश के दक्षिणी हिस्से में यह एक स्थानीय व्यंजन है और इसकी बेहद मांग है।

शार्क समुद्री खाद्य श्रृंखला के शीर्ष शिकारियों में शामिल हैं जो हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे प्लवक, मछली, क्रस्टेशियंस और समुद्री स्तनधारियों जैसी विभिन्न प्रजातियों का शिकार करती हैं और उनकी आबादी के बीच संतुलन बनाए रखती हैं। वैश्विक स्तर पर शार्क की 500 से ज्यादा प्रजातियां हैं। 

हालांकि जिस तरह से शार्क का बेतहाशा शिकार किया जा रहा उसके और इन मछलियों की धीमी प्रजनन दर के कारण इनकी कई प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। वहीं यदि कई अन्य कशेरुकी जीवों की तुलना में देखें तो इनके विलुप्त होने का खतरा कहीं ज्यादा है।

यदि भारत में शार्क के संरक्षण की बात करें तो इनकी 160 प्रजातियों में से केवल 26 को संशोधित वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत अधिकतम सुरक्षा दी गई है और उन्हें इसकी अनुसूची I और II में सूचीबद्ध किया गया है।

इसी तरह इन्हें वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (सीआईटीईएस) के परिशिष्ट I और II में प्रजातियों के अधिनियम की IV अनुसूची में लिस्ट किया गया है।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत में जैव विविधता संरक्षण के वरिष्ठ निदेशक डॉक्टर दीपांकर घोष के मुताबिक इनका अवैध व्यापार भारत सहित दुनिया भर में शार्कों के संरक्षण के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। परमिट पर प्रासंगिक प्रजातियों की गलत जानकारी देना इनके अवैध व्यापार का एक सामान्य तरीका है।

इसी तरह  व्यापार की जा रही विभिन्न शार्क प्रजातियों के पंखों की पहचान में होने वाली कठिनाई इनके अवैध व्यापार को रोकने की राह में अड़चने पैदा कर रहा है। इसके साथ ही अपर्याप्त निगरानी तंत्र के कारण कानूनी और अवैध रूप से किए जा रहे शार्क व्यापार के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है।

जलवायु परिवर्तन भी कर रहा प्रभावित

देखा जाए तो किस्से-कहानियों और फिल्मों में शार्क को बेहद आक्रामक हत्यारे जीव के रूप में दर्शाया जाता रहा है, लेकिन सच यह है कि बढ़ते इंसानी लालच के चलते यह जीव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।

शार्क पिछले 40 करोड़ वर्षों से अस्तित्व में है, लेकिन इनके पंखों के प्रति बढ़ती इंसानी भूख ने इनकी कई प्रजातियों को विलुप्त होने के करीब पहुंचा दिया है। गौरतलब है कि आज दुनिया की हर तीसरी शार्क प्रजाति पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।

शार्कों को लेकर जर्नल करंट बायोलॉजी में प्रकशित एक अध्ययन से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर शार्क और रे मछलियों की करीब एक तिहाई से ज्यादा आबादी विलुप्त होने की कगार पर है। इसके पीछे  की सबसे बड़ी वजह इनका बड़े पैमाने पर किया जा रहा शिकार है।

देखा जाए तो जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहा है वो समुद्री जीवों के लिए भी खतरा बनता जा रहा है। इन बदलावों से शार्क, टूना जैसी शिकारी मछलियां भी सुरक्षित नहीं हैं। वहीं एक अन्य अध्ययन में सामने आया है कि तापमान बढ़ने से शार्क भ्रूण का विकास बहुत तेजी से हो रहा है जिस वजह से शार्क के बच्चे समय से पहले ही जन्म ले रहे हैं। इसके चलते उनका जिन्दा रहना और मुश्किल होता जा रहा है। इसका असर उनके आकार पर भी पड़ रहा है जो पहले से घट गया है।