सांभर झील में प्रवासी पक्षियों की मौत को एक साल पूरा हो गया है। पिछले साल नवंबर माह में सांभर झील में एवियन बोट्यूलिज्म बीमारी से 25 से ज्यादा प्रजातियों के लगभग 30 हजार पक्षियों की मौत हो गई थी। जिसके बाद राजस्थान हाइकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा। एक साल बाद भी मामले की कोर्ट में सुनवाई जारी है। अब तक नौ सुनवाई कोर्ट में हो चुकी हैं। लेकिन यह बात हैरान करने वाली है कि एवियन बोट्यूलिज्म बीमारी के बारे में राज्य सरकार ने ना तो रिसर्च कराई और ना ही इस तरह की बीमारियों को जांचने के लिए किसी लैब या इंस्टीट्यूट खोलने पर विचार किया गया।
ऐसे इंस्टीट्यूट्स या लैब की जरूरत इसीलिए भी है क्योंकि सांभर त्रासदी के वक्त काफी समय सैंपल भेजने और उनकी रिपोर्ट्स आने में लगा। इससे बचाव और राहत कार्यों में देरी हुई।
पिछले साल मृत पक्षियों की मौत का कारण जानने के लिए राजस्थान सरकार ने बरेली की भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्था, भोपाल की राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान, देहरादून में भारतीय वन्यजीव संस्थान और बीकानेर स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ वेटनरी एंड एनीमल साइंस में सेंपल भेजे थे। सैंपल भेजने और उसकी रिपोर्ट आने में ही कई दिन बर्बाद हुए। ऐसे में सभी संसाधनों के होते हुए भी राजस्थान में इस तरह की लैब की जरूरत महसूस हुई, ताकि सांभर जैसी आपदा के वक्त उसके कारणों की तह तक जल्दी पहुंचा जा सके।
पक्षियों की मौत के बाद राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ वेटनरी एंड एनीमल साइंस, बीकानेर से सबसे पहले सांभर पहुंचने वाले प्रोफेसर अनिल कुमार कटारिया से डाउन-टू-अर्थ ने इस संबंध में बात की। उन्होंने ही सबसे पहले पक्षियों में बोट्यूलिज्म की पुष्टि की थी। वह कहते हैं, ‘सांभर जैसी बड़ी त्रासदी के बाद सरकार का जो रवैया रहा है, वो काफी निराशाजनक है। सभी संबंधित विभागों ने अपनी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने की कोशिश की। बोट्यूलिज्म जैसे वैक्टीरिया को खत्म तो नहीं किया जा सकता, लेकिन अगर भविष्य में यह वापस आता है तो उसकी तैयारी हमारे पास बिलकुल नहीं है।’
वे आगे कहते हैं, ‘सांभर त्रासदी ने सरकार को वन्य जीव और प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा का एक बड़ा मौका दिया, लेकिन समय के साथ-साथ उसे सरकार गंवा रही है। राजस्थान के लगभग हर जिले में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। तीन टाइगर सेंचुरी रणथंभौर, सरिस्का और मुकुंदरा हैं। दो रामसर साइट सांभर और केवलादेव घना भी हैं। इसके अलावा जयपुर की मानसागर झील, खींचन, तालछापर, चंदलाई, चंबल नदी सहित कई जगहें हैं जहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। साथ ही 32,845 स्क्वायर किमी भू-भाग पर वन हैं। इतना सब होने के बाद भी हम केन्द्र की लैबों के भरोसे हैं। आपदा के वक्त में राज्य को केन्द्र की संस्थाओं के भरोसे ना रहकर आत्मनिर्भर होना चाहिए।’
वन विभाग ने मांगे 37 लाख, सरकार ने दिए सिर्फ 18 लाख रुपए
राजस्थान हाइकोर्ट ने सरकार से सांभर झील में गार्ड, अस्थाई रेस्क्यू सेंटर और पूरी मॉनिटरिंग के आदेश दिए थे। अगली तारीख पर इसकी सुनवाई होनी है, इसीलिए एक साल बाद कोर्ट के दिखाने के लिए वन विभाग ने अब नावां और सांभर के रतन तालाब पर अस्थाई रेस्क्यू सेंटर, एंबुलेंस जैसी सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। वन विभाग ने इस काम के लिए राज्य सरकार से 37 लाख रुपए मांगे थे, लेकिन सरकार ने मात्र 18 लाख रुपए ही जारी किए हैं।
झील की मुख्य समस्याओं पर ध्यान ही नहीं दिया
डाउन टू अर्थ ने पिछले साल हुई पक्षी त्रासदी पर झील की बर्बादी पर विशेष रिपोर्ट्स की थीं। इन रिपोर्ट्स में बताया गया था कि किस तरह झील में बना रिसोर्ट, अवैध बोरवेल, ब्राइन चोरी, पर्यटन के नाम पर यहां आने वाली प्रवासी पक्षियों के लिए वातावरण खराब किया जा रहा है। एक साल में इन समस्याओं पर वन विभाग, पशु पालन विभाग या सांभर साल्ट लिमिटेड ने ध्यान ही नहीं दिया है। झील में आज भी रिसोर्ट बना हुआ है। अवैध बोरवेल से ब्राइन की चोरी जारी है। झील की जमीन पर प्रभावशाली लोगों का अतिक्रमण है।
हाइकोर्ट की ओर से रिपोर्ट बनाने के लिए भेजे वकील नितिन जैन ने अपनी रिपोर्ट में झील के सुधार के लिए कई सुझाव दिए थे, लेकिन उनमें से किसी भी सुझाव पर काम नहीं हुआ है। इन सुझावों में झील के आस-पास के दो किमी को बफर जोन घोषित करने, पर्यटन, रिसॉर्ट, चोरी, अतिक्रमण को हटा कर वेटलैंड के नियम लागू करने की सिफारिश की गई थी। नितिन जैन डाउन-टू-अर्थ को बताते हैं, ‘सरकार या उसका कोई भी विभाग झील को लेकर बिलकुल भी गंभीर नहीं है। अब सालभर बाद दिखाने के लिए थोड़े संसाधन वहां इकठ्ठे किए जा रहे हैं जबकि मुख्य समस्याओं पर काम नहीं हो रहा।’
वे आगे कहते हैं, हाइकोर्ट ने सरकार से झील के विकास को लेकर एक कमेटी बनाने का आदेश दिया था, लेकिन सालभर बाद तक राज्य सरकार ने वो कमेटी तक नहीं बनाई है जो झील के विकास और संवर्धन के लिए सुझाव देने वाली थी।’ बता दें कि ये कमेटी चार हफ्तों के अंदर कोर्ट को झील के विकास से संबंधित सुझाव देने वाली थी, लेकिन सरकार ने आजतक इसका गठन ही नहीं किया।
नितिन कहते हैं, ‘एक साल केस लड़ने के बाद मेरा अनुभव कहता है कि सरकार की झील के सुधार के लिए कोई मंशा ही नहीं है। सभी विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालते दिखते हैं।’
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक उम्मेद सिंह का दावा है कि विभाग ने चार सदस्यों के निगरानी दल का गठन किया है। इसके अलावा इस साल दो पशु चिकित्सक और दो पशुधन सहायकों की भी टीम बनाई है जो किसी इमरजेंसी के वक्त काम करेंगे।