वन्य जीव एवं जैव विविधता

पक्षी ही नहीं सांभर झील भी मर रही है अपनी मौत, 25 साल पहले लिखी थी पटकथा

17 हजार से अधिक प्रवासी पक्षियों की मौत के लिए जिम्मेवार सांभर झील में कम होते केचमेंट एरिया, अतिक्रमण, ब्राइन चोरी, दूषित पानी, टूरिज्म और निजी रिसॉर्ट पर सवाल नहीं उठ रहे हैं

DTE Staff

माधव शर्मा

सांभर में पक्षियों की मौत का सिलसिला बीते 10 दिनों से जारी है। मौत की अलग-अलग वजह बताई जा रही हैं। 10 दिनों में सरकार और तमाम एजेंसियां किसी एक नतीजे पर नहीं पहुंच सकी हैं कि आखिर पक्षियों की मौत का कारण क्या है?

प्रवासी पक्षियों की मौत के बीच यह जानना भी जरूरी है कि सांभर झील कीमौतकी पटकथा किस तरह बीते दो-तीन दशकों में लिखी गई है। झील अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। सैंकड़ों बीघा जमीन पर अतिक्रमण, ब्राइन चोरी, अच्छी बारिश के बावजूद पानी की कमी और पर्यटन बढ़ाने के नाम पर झील के आस-पास रिसॉर्ट खोल देने से झील का वातावरण पक्षियों के लिए कम अनुकूल होता जा रहा है।  

रिकॉर्ड्स के अनुसार 1996 में सांभर झील का केचमेंट एरिया लगभग 5,707.62 स्क्वायर किलोमीटर था, जो 2014 में घटकर करीब 4700 स्क्वायर किलोमीटर ही रह गया। झील की सैंकड़ों बीघा जमीन पर प्रभावशाली लोगों ने अतिक्रमण किया हुआ है। साथ ही झील में पानी की आवक जिन नदियों के जरिए होती थी, उनमें भी अतिक्रमण के चलते झील में आने वाला पानी बेहद कम हो गया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि बीते 10 सालों में 7 साल सामान्य से ज्यादा बारिश के बावजूद झील के कई हिस्से आज भी सूखे हैं।  

विशेषज्ञों का मानना है कि कई सालों से सूखे रहने के कारण इन जगहों पर जमीन में खारेपन या नमक की मात्रा काफी बढ़ गई। इस साल सांभर में सामान्य से 46% अधिक बारिश हुई तो झील के इन सूखे हिस्सों में भी पानी पहुंचा। सूखी जगहों पर वर्षों से जमे नमक में पानी पहुंचने से सोडियम की मात्रा काफी बढ़ गई। इससे पक्षियों में हाइपर न्यूट्रीनिया नाम की बीमारी हुई और इतनी संख्या में पक्षी मर गए। हालांकि कई जानकार इसे मानने से इंकार कर रहे हैं कि पानी में खारापन बढ़ने की वजह से पक्षी मर रहे हैं। उनका तर्क है कि इस क्षेत्र में करोड़ों साल से पानी में खारापन है, लेकिन इतिहास में ऐसे हादसे पहले कभी नहीं हुए हैं।

भारतीय वन्य जीव संस्थान की पक्षियों की मौत के बाद लिए गए पानी के सैंपल्स की रिपोर्ट के मुताबिक झील के पानी में खारापन बढ़ रहा है। झील के चार जगहों से लिए सैंपल में से तीन में तय मात्रा से दोगुने तक खारापन पाया गया है। पहले सैंपल में पानी में खारापन 19,170, दूसरे में 11,200, तीसरे में  10,300 और चौथे सैंपल में 850 मिलीग्राम/लीटर खारापन मिला है। जबकि यह 10 हजार मिलीग्राम/ लीटर से कम होना चाहिए। 

जल शक्ति मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार सांभर कस्बे की भी 43 बसावटों में पानी में सेलेनिटी यानी खारापन तय मात्रा 10500 मिलीग्राम/ लीटर से बढ़ा हुआ पाया गया है। सांभर ब्लॉक में करीब 9,119 पीने के पानी के स्त्रोत हैं। पानी के प्रदूषित होने का कारण झील के आसपास खुले निजी संस्थान और बारिश में बहकर आ रहे गंदे पानी को माना जा रहा है।

झील की 431 बीघा सरकारी जमीन पर अतिक्रमण, यहीं मृत मिले हैं पक्षी!

सांभर झील करीब 233 किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। सांभर साल्ट लिमिटेड के मुताबिक 156 किमी एरिया में प्राकृतिक झील है और लगभग 78 किमी एरिया में नमक का उत्पादन होता है। 

राजस्थान सरकार ने जुलाई माह में विधानसभा में रखे आंकड़ों के मुताबिक झील की 431 बीघा जमीन पर नमक चोरों ने अतिक्रमण किया हुआ है।  ये चोर इतने प्रभावशाली हैं कि सरकार इन पर कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। आंकड़ों के मुताबिक जयपुर जिले की 175 बीघा भूमि पर नमक चोर करीब 1.31 लाख मीट्रिक टन नमक उत्पादन कर रहे हैं और इससे करीब 23 करोड़ रुपए सालाना कमा रहे हैं। इसके अलावा नागौर जिले के नावां में 256 बीघा जमीन पर कब्जा कर 1.93 लाख मीट्रिक टन नमक पैदा किया जा रहा है। अवैध व्यापारी इससे करीब 33 करोड़ रुपए सालाना कमाई कर रहे हैं। इस तरह 431 बीघा जमीन पर 3.24 लाख टन से ज्यादा अवैध नमक पैदा कर नमक चोर 55 करोड़ रुपए सालाना कमा रहे हैं। 

नमक का अवैध काम करने वाले माफियाओं ने झील में 250-300 फीट गहराई तक ट्यूबवैल खुदवाए हुए हैं। पूरी झील में कम से कम 10 हजार अवैध बोरिंग नमक माफियाओं ने की हुई हैं। ब्राइन की यह चोरी इतनी ज्यादा है कि दिसंबर तक झील का आधे से ज्यादा पानी खत्म हो जाता है। नतीजतन पक्षी यहां से उड़ जाते हैं। जबकि पक्षी विशेषज्ञ डॉ. हर्षवर्धन की मानें तो अगर झील में पानी रहे तो प्रवासी पक्षी फरवरी माह तक यहां रह सकते हैं, लेकिन नमक माफिया हजारों पक्षियों का घर उजाड़ रहे हैं। 

अवैध बोरिंग से ब्राइन चोरी कर निजी क्षेत्र के नमक उत्पादकों ने सांभर सॉल्ट लिमिटेड को पछाड़ दिया है। राजस्थान में सरकारी और को-ऑपरेटिव संस्थाओं ने 2018-19 में सिर्फ 2.81 लाख टन नमक पैदा किया। वहीं, निजी उत्पादकों ने 22.93 लाख टन नमक का उत्पादन किया। 2018-19 में राजस्थान में सबसे ज्यादा नमक नागौर जिले में (15,25,700 मीट्रिक टन) उत्पादन हुआ है। जयपुर जिले में 29,580 मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ है। गौरतलब है कि नागौर में ही सबसे ज्यादा ब्राइन यानी नमक बनाने योग्य पानी की चोरी की जाती है। हालांकि ब्राइन चोरी का कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन झील की क्यारियों में बनाया जा रहा नमक ज्यादातर चोरी के पानी का है। बता दें कि सांभर और नागौर के नावां में ही हजारों देशी-विदेशी प्रवासी पक्षियों की मौत हुई है। 

वहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सितंबर 2017 में वेटलैंड नियमों की पालना के लिए झील से अवैध बोरिंग, अतिक्रमण और बिजली की केबल हटाने के आदेश सांभर सॉल्ट लिमिटेड को दिए थे। खानापूर्ति के लिए इस साल जून में कंपनी ने हजारों ट्यूबवैल में से सिर्फ एक दर्जन ही नष्ट किए।

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