एक अध्ययन के अनुसार, समुद्र का स्तर बढ़ने से दुनिया के कई हिस्सों में जहां समुद्री कछुए द्वारा अण्डे देने के लिए घोसला बनाया जाता है, उन मैदानों में बाढ़ आ सकती है। निष्कर्ष बताते हैं कि बाढ़ कछुओं के घोंसले की जगहों को नुकसान पहुंचा सकती है और लेदरबैक कछुए के घोंसले विशेष रूप से खतरे में पड़ सकते हैं।
अध्ययनकर्ता मार्गा रिवास और उनके सहयोगियों ने 2010 से 2100 के बीच मध्यम और भारी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की परिस्थितियों में बाढ़ की आशंका का अनुमान लगाया। इनमें अलग-अलग इलाके शामिल थे जहां कछुए प्रजनन करते हैं, इन इलाकों में 2,835 समुद्री कछुओं के घोंसले वाली जगहों का विश्लेषण किया गया।
प्रजनन के मैदान में कोस्टा रिका में मोंडोंगुइलो बीच, क्यूबा में गुआनाहाकाबिबेस प्रायद्वीप, डोमिनिकन गणराज्य में सोना द्वीप, ऑस्ट्रेलिया में इक्वाडोर के तट, राइन द्वीप, अमेरिका के फ्लोरिडा में सेंट जॉर्ज द्वीप राइन द्वीप, नीदरलैंड में सिंट यूस्टेशियस में स्थित थे।
प्रजनन के मैदानों का इस्तेमाल पांच समुद्री कछुओं की प्रजातियों, जिनमें लेदरबैक, लॉगरहेड, हॉक्सबिल, ओलिव रिडले और ग्रीन हरे कछुए शामिल थे।
अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि एक मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य (आरसीपी 4.5) के तहत, सपाट समुद्र के तटों पर स्थित प्रजनन मैदान बाढ़ के लिए सबसे ज्यादा खतरे में थे। राइन द्वीप और सोना द्वीप पर स्थित 100 फीसदी घोंसले-कम ऊंचाई वाले मैदानों के भीतर समतल समुद्र तटों पर 2050 तक बाढ़ की चपेट में आने का अनुमान है।
उसी उत्सर्जन परिदृश्य के तहत, अध्ययनकर्ताओं का अनुमान है कि सेंट जॉर्ज द्वीप और मोंडोंगिल्लो समुद्र तट पर 100 फीसदी घोंसले वाली जगहें भी बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं।
कई कछुओं की प्रजातियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्रजनन के मैदानों के भीतर, अध्ययनकर्ताओं का अनुमान है कि प्रत्येक प्रजाति द्वारा पसंद किए जाने वाले घोंसले की जगहों में अंतर के कारण लेदरबैक कछुए के घोंसले विशेष रूप से बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं।
लेदरबैक कछुए हाई-टाइड लाइन के पास खुले क्षेत्रों में घोंसला बनाते हैं, जबकि हॉकबिल और हरे कछुए टिब्बा और खड़ी चट्टानों के करीब अधिक ऊंचाई पर घोंसला बनाते हैं। सेंट यूस्टैटियस में, अध्ययनकर्ताओं का अनुमान है कि मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत, औसतन 50 फीसदी लेदरबैक, 18 फीसदी हॉक्सबिल और 13 फीसदी हरे कछुए के घोंसले के स्थान 2050 तक बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं।
जैसा कि मादा समुद्री कछुए उसी समुद्र तट पर घोंसला बनाने के लिए लौटती हैं, अध्ययनकर्ताओं ने अनुमान लगाया हैं कि समुद्र का स्तर बढ़ने से कई कछुओं को बाढ़ वाले समुद्र तटों पर घोंसला बनाना पड़ सकता है और यह कछुओं की संख्या को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
अध्ययनकर्ता ने गौर किया कि, समुद्री कछुओं की आबादी पर इसके लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभाव वर्तमान में स्पष्ट नहीं हैं। यह जांचने के लिए और शोध की आवश्यकता है कि कछुए घोंसले के निवास स्थान की बाढ़ के लिए कितनी जल्दी ढल सकते हैं।
अध्ययनकर्ताओं का सुझाव है कि उनके निष्कर्ष समुद्र के स्तर में वृद्धि के प्रभावों को कम करने और समुद्री कछुओं के लचीलेपन को बढ़ाने के लिए रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं जैसे कि समुद्र तटों पर घोंसलों में रेत भर जाना, घोंसले की जगहों में बदलाव आदि। यह अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।