अब तक देश में कई प्रकार की मकड़ियों की खोज की जा चुकी है। इसी कड़ी में अब केरल विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम ने दो जंपिंग स्पाइडर यानी कूदने वाली मकड़ियों की खोज की है। केरल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बताया है कि हमने एपिडेलैक्सिया जीनस की जंपिंग स्पाइडर की दो नई प्रजातियों की खोज की है।
यह खोज केरल के शेंदुर्नी वन्यजीव अभयारण्य में की गई है। यह खोज बताती है कि पश्चिम घाट में समृद्ध जैव विविधता अब भी विद्यमान है। यह शोध केरल विश्वविद्यालय से असीमा ए. और जी. प्रसाद, सविता मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल्स से जॉन टी.डी. कालेब और भारत माता कॉलेज से मैथ्यू एम.जे. द्वारा किया गया है। यह शोध पत्र जर्नल जूटाक्सा के फरवरी 2025 के अंक में प्रकाशित हुआ है।
केरल विश्वविद्यालय में प्राणीशास्त्र विभाग के प्रमुख डॉ. प्रसाद के अनुसार वैलिमिया झारबारी और फिंटेला एक्सेंटिफेरा को केरल में पहली बार रिपोर्ट किया गया है। इरुरा और वैलिमिया प्रजातियां भी राज्य में पहली बार दिखाई दी हैं। अध्ययन में पश्चिमी घाट के साल्टिसिड जीवों (जंपिंग स्पाइडर परिवार) में आगे की खोज और शोध की आवश्यकता पर बल दिया गया है ताकि उनकी विविधता की समझ को बढ़ाया जा सके। डॉ. प्रसाद कहते हैं कि पश्चिमी घाट के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर इन उल्लेखनीय प्रजातियों के निरंतर अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए सरकारी निकायों द्वारा संरक्षण उपायों को शुरू करने की जरूरत है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि नई प्रजातियां केरल के कोल्लम जिले के कुलथुपुझा में क्षेत्र शुरू किए गए अभियानों के दौरान इन जंपिंग स्पाइडर की खोज की गई। ध्यान रहे कि यह अभियान दिसंबर 2022 से अप्रैल 2023 के बीच चलाया गया था। यह क्षेत्र अपने विविध पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए जाना जाता है जहां विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं।
खोजी गई मकड़ियों की दो नई प्रजातियों के नाम एपिडेलैक्सिया फाल्सीफॉर्मिस और एपिडेलैक्सिया पैलस्ट्रिस हैं। इनकी शारीरिक बनावनट काफी आकर्षक है। शोधार्थियेां ने बताया कि दोनों प्रजातियों की मादाओं पर प्रमुख रूप से पीला त्रिकोणीय निशान बना हुआ है। ई. फाल्सीफॉर्मिस के नर में एक भूरे रंग का कवच भी दिखाई पड़ता है जिसमें पीले-भूरे रंग की पट्टी होती है। ई. पैलस्ट्रिस के नर अपने किनारों पर हल्के भूरे रंग की पट्टी दिखती है। जहां तक इनके लंबाई और चौड़ाई का मामला है तो एपिडेलैक्सिया फाल्सीफॉर्मिस लगभग 4.39 मिमी की है जबकि इसके विपरीत ई. पैलस्ट्रिस नर 4.57 मिमी का है और मादा 3.69 मिमी की है। ये मकड़ियां अपने पर्यावरण के लिए अत्यधिक अनुकूलित हैं। पश्चिमी घाट के जंगलों के घने पत्तों वाले पेड़-पौधों में ये मकड़ियां पनपती हैं। जंगलों की यह स्थितियां उनको पर्याप्त मात्रा में शिकार करने का अवसर प्रदान करते हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इन नई प्रजातियों की खोज पश्चिमी घाट के जैव विविधता की समृद्धता को न केवल बताती है बल्कि यह इस बात पर जोर देती है कि यहां की पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में चल रहे अनुसंधान और संरक्षण प्रयासों को और महत्व दिए जाने की जरूरत है। उनका कहना है कि अब तक की खोजों से ऐसे भी संकेत मिलते हैं कि इस क्षेत्र में और भी अनदेखी प्रजातियां की खोज संभव है। इसके अलावा इन नई प्रजातियों की खोज जैव विविधता के हॉटस्पॉट के रूप में पश्चिमी घाट की महत्वपूर्ण भूमिका को भी इंगित करती हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों से बचने के लिए इन महत्वपूर्ण आवासों को संरक्षण किए जाने की जरूरत है। भविष्य में यह शोध इन पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए जागरूकता बढ़ाने और उसकी सुरक्षात्मक उपायों को और आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकेगा।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इन मकड़ियों की पारिस्थितिक भूमिकाओं और अन्य प्रजातियों के साथ उनकी अंतःक्रियाओं को समझने के लिए अभी और अधिक अध्ययन किए जाने की जरूरत है। शोधकर्ताओं का अब लक्ष्य है एपिडेलैक्सिया जीनस के भीतर आनुवंशिक विविधता का पता लगाना है और उनकी आबादी पर पर्यावरणीय परिवर्तनों के क्या संभावित प्रभाव पड़ रहे हैं, इसका विस्तृत रूप से आकलन करना है।