राजस्थान के सिरोही जिले में बीते कुछ दिनों में ऊंटों की लगातार मौत हो रही है। पिछले 15 दिन में 32 से ज्यादा ऊंट मर चुके हैं। ज्यादातर ऊंट सिरोही शहर के पास पीपुल फॉर एनीमल्स नाम के सेंटर में हुई है। मौत का कारण जानने के लिए पशुपालन विभाग ने 17 दिसंबर को सैंपल उदयपुर भेजे थे, जिनमें मौत की वजह सर्रा बीमारी को बताया गया है।
सिरोही पशुपालन विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ. जगदीश बरबड़ ने बताया, “हमने 20 ऊंटों के ब्लड और यूरिन सैंपल लिए थे और सभी में सर्रा के जीवाणु मिले हैं। बीमार ऊंटों को टीके लगाने का काम शुरू कर दिया गया है। हालांकि सर्दी बढ़ने के कारण इन ऊंटों को निमोनिया भी हुआ है। इसीलिए मौत का कारण निमोनिया भी हो सकता है।”
राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर से रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. अनिल कुमार कटारिया ऊंटों की मौत का कारण सर्रा को नहीं मानते। वे कहते हैं, “सर्रा का कारण ट्राइपानोसोमा एवेन्साई नाम का परजीवी होता है। ऊंटों के खून में मिलकर ये उन्हें बेहद कमजोर कर देता है और ढाई-तीन साल में ऊंट की मौत हो जाती है। इसीलिए देसी भाषा में इसे तिब्बरसाल भी कहा जाता है। क्योंकि इस बीमारी में मरने में करीब तीन साल का समय लगता है।”
इसीलिए डॉ. कटारिया का मानना है कि ऊंटों के मरने की वजह निमोनिया हो सकता है। क्योंकि जिस पैटर्न से ऊंट मर रहे हैं, वो सर्रा का पैटर्न नहीं है। निमोनिया से ही ऊंटों को जुकाम होता है और रातभर में वे मर जाते हैं।
सिरोही पशुपालन विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉ. जगदीश भी इस बात से सहमत हैं। उन्होंने बताया कि सर्रा लंबी चलने वाली बीमारी है। उससे एक दिन में मौत नहीं हो सकती। इसीलिए रिपोर्ट में तो सर्रा आ सकता है, क्योंकि वह पहले से ही ऊंटों के शरीर में मौजूद है, लेकिन मौत का कारण निमोनिया हो सकता है। क्योंकि उनमें लक्षण सभी निमोनिया वाले ही हैं।
वह जोड़ते हैं, “चूंकि ये ऊंट रेस्क्यू किए होते हैं और लंबी-मुश्किल यात्रा के बाद यहां तक पहुंचते हैं। इसीलिए ट्राइपानोसोमा एवेन्साई परजीवी एक-दूसरे में ट्रांसफर होने के पूरे खतरे हमेशा रहते हैं।”
सिरोही के इस सेंटर में तस्करी किए गए ऊंटों के रेस्क्यू कर के लाया जाता है। इनमें अधिकतर ऊंट बीमार और बेहद घायल स्थिति में होते हैं। जिन ऊंटों की मौत हो रही है, उन्हें पश्चिम बंगाल से रेस्क्यू कर यहां लाया गया है। इसके अलावा मांडवाड़ा और ईसरा क्षेत्र में भी ऊंटों की मौत हुई है। हालांकि आस-पास के क्षेत्रों में अब स्थिति काबू में है।
इस सेंटर में आज भी करीब 12 ऊंट बीमार हैं। जिन्हें अच्छे इलाज की जरूरत है। डाउन-टू-अर्थ ने पड़ताल में पाया कि बीमार ऊंट सिर्फ सिरोही में ही हैं। बाकी जैसलमेर, बाड़मेर जैसे जिले जहां ऊंट सबसे अधिक संख्या में हैं, वहां स्थिति सामान्य है।
पीपुल फॉर एनीमल्स संस्था के वॉलेन्टियर अमित ने बताया, “सेंटर में फिलहाल 144 ऊंट हैं। एक महीने में 30 ऊंटों की मौत हो चुकी है। हर दूसरे दिन 2-3 ऊंट मर रहे हैं। चूंकि ये ऊंट रेस्क्यू किए गए हैं, इसीलिए घायल हैं। हालांकि जो ऊंट स्वस्थ दिख रहे हैं, उनकी शाम से तबीयत खराब होती है और सुबह तक उनकी मौत हो रही है। जुकाम और पेट दर्द के साथ-साथ मुंह से झाग भी निकल रहा है।”
उन्होंने बताया कि जैसे ही ऊंट मरने शुरू हुए, हमने स्थानीय पशु चिकित्सकों और पशुपालन विभाग को सूचित कर दिया था, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। आखिरकार जयपुर में पशुपालन विभाग से यहां फोन कराया, तब एक महीने बाद ऊंटों के सैंपल लिए गए हैं।
चूंकि सेंटर में तस्करी से मुक्त कराए ऊंट रखे जाते हैं। इसीलिए संभव है कि बीमारी और चोटों के कारण ऊंट तनावग्रस्त हों। जयपुर के वरिष्ठ पशु चिकित्सक तपेश माथुर कहते हैं, “क्योंकि ऊंट लंबी दूरी से यहां लाए जाते हैं। बीमार और चोटिल भी हैं। इसीलिए ऊंट तनावग्रस्त भी हो सकते हैं। तनाव का असर शरीर के सभी अंगों पर होता है। इसीलिए संभव है कि तनाव के कारण ऊंटों को निमोनिया हुआ हो। हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट और जांच आने के बाद ही मौत का कारण साफ हो पाएगा।”
पाली जिले में लोकहित पशुपालक संस्था चलाने वाले हनवंत सिंह राठौड़ इसके पीछे रेस्क्यू सेंटर तक ऊंटों को लाने की प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े करते हैं। वे कहते हैं, “राजस्थान से हैदराबाद, बंगाल और दक्षिण भारत में ऊंट तस्करी किए जाते हैं। वहां से इन्हें रेस्क्यू किया जाता है और वापस राजस्थान लाया जाता है। इस दौरान एक ट्रक में कई ऊंट भर दिए जाते हैं। ना ठीक से खाने के लिए मिलता है और ना ही इलाज दिया जाता है। रेस्क्यू सेंटर आने तक ही आधे ऊंट मर जाते हैं। सेंटर में आने के बाद बीमारी और थकान से ऊंट तनावग्रस्त हो जाते हैं। कुलमिलाकर इन ऊंटों की हालत ऐसी हो जाती है कि लगता है इससे बेहतर इन्हें मौत ही मिल जाती।”
राठौड़ दूसरी समस्या की ओर भी इशारा करते हैं। बताते हैं, “गाड़ियों में चलने वाले ऊंटों की तस्करी सबसे अधिक होती है। ये ऊंट जैसलमेर, बाड़मेर जैसे जिलों से होते हैं। रेस्क्यू के बाद इन्हें दक्षिण राजस्थान के सिरोही में भेज दिया जाता है। जबकि हमारी मांग है कि इन्हें वहां भेजा जाए, जहां से इन्हें ले जाया गया था। ताकि उन्हें वापस वहीं वातावरण और खाना मिल सके। माहौल और खाना बदलने से इनके शरीर पर बुरा असर पड़ता है। इससे ये बीमार ऊंट, देखरेख के बावजूद भी और अधिक बीमार हो जाते हैं।”
अमित भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि बीते एक महीने में मरने वाले सभी ऊंट जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर जैसे जिलों से तस्करी किए गए थे। हालांकि डॉ. तपेश माथुर इसे नकारते हैं। उनका कहना है, “ऊंट किसी भी माहौल में रह सकता है। बाड़मेर और सिरोही के ओवरऑल वातावरण में ज्यादा अंतर नहीं हैं। इसीलिए यह कहना कि क्लाइमेट और आबो-हवा बदलने से ऊंट ज्यादा बीमार हो रहे हैं, ये ठीक नहीं होगा।”
सिरोही सहित पूरे राजस्थान में बीते एक हफ्ते से सर्दी बढ़ी है। मौसम विभाग की वेबसाइट पर जारी आंकड़ों के अनुसार बीते तीन दिन से शीतलहर चल रही हैं। अगले कुछ और दिन पूर्वी और पश्चिमी राजस्थान में शीतलहर जारी रहने के पूर्वानुमान विभाग की ओर से जारी किए गए हैं। विभाग के अनुसार पूरे राज्य में अगले 3-4 दिन में तापमान में 2-3 डिग्री की गिरावट हो सकती है।
अमित का भी कहना है कि बीते 8 दिन से सर्दी और शीतलहर बढ़ी है। रात में तापमान 7-8 डिग्री तक पहुंच रहा है। माउंट आबू में तापमान शून्य डिग्री हो चुका है। शीतलहर के कारण बीमार ऊंट और ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। सर्दी के कारण उन्हें जुकाम, गले में परेशानी हो रही है और वे मर रहे हैं।
सिरोही के पिंडवाड़ा तहसील निवासी ऊंट पालक सेवाराम देवासी के अनुसार शुरूआत में ऊंटों के बीमार होने की खबरें आसपास के गांवों से आईं। इनमें भिमाणा, रोहिड़ा, बाटेरा, खाकरवाड़ा, नितोड़ा गांव थे। इन गांवों में करीब 700-800 ऊंट हैं। पिंडवाड़ा तहसील में कुल दो-ढाई हजार ऊंट हैं। सेवाराम के पास 15 ऊंट हैं।